Editorial: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की चुनौती है, लोकतंत्र को जीवित करना
- By Habib --
- Friday, 09 Aug, 2024
There is a challenge of interim government in Bangladesh
The challenge for the interim government in Bangladesh is to keep democracy alive बांग्लादेश मेें नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया गया है। निश्चित रूप से यह हिंसा की आग मेंं जल रहेे देश के लिए उचित कदम है। हालांकि प्रश्न यह है कि अगर देश के लोग इसी प्रकार कथित लोकतंत्रवादी प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं तो फिर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को लोकतांत्रिक तरीके से अविश्वास प्रस्ताव लाकर क्यों नहींं हटाया गया। इसके लिए हिंसा फैला कर और देश को जला कर अपनी बात मनवाई गई है, वह बेहद दुखद है। अब अंतरिम सरकार के मुखिया जिन्हें पेरिस से बुला कर सरकार का संचालन सौंपा गया है, पर व्यापक जिम्मेदारी है। यह देखना है कि वे देश में नए सिरे सेे किस प्रकार चुनाव करातेे हैं।
हालांकि इसके बावजूद यह सवाल अहम रहेगा कि चुनाव भी कितने लोकतांत्रिक तरीके से होंंगे, क्योंंकि विपक्ष ने तो सरकार को भगा दिया, अब तो विपक्ष ही सरकार है। देश के अंदर एक धर्म के लोगों की सुनी जा रही है और उन्हें ही आगे बढ़ाया जा रहा है। इसकी पूरी संभावना है कि चुनाव मेंं उसी की सुनी जाएगी जिसने हिंसा के बल पर सत्ता को कब्जा लिया है।
इस देश के लोगों ने अब लोकतंत्र का जैसा उपहास उड़ाया है, वह विचित्र एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। पूरी दुनिया ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में जो तस्वीरें देखी हैं, वे बेहद दुखद और अराजकता का प्रतीक है। इससे पहले अफगानिस्तान, श्रीलंका जैसे देशों में दुनिया ने इन हालात को देखा और अब बांग्लादेश के लोगों ने भी अपनी तथाकथित आजादी को हासिल करने के लिए न केवल देश के निर्माता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियों, चित्रों को तोड़ कर उनको अपमानित किया है, अपितु लोकतांत्रिक प्रक्रिया से लगातार चौथी बार देश में सरकार बनाने वाली अवामी लीग की नेता पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
आखिर रिर्जेवेशन कोटा का मामला इतना कितना गंभीर था, जिसका समाधान नहीं हो सकता था, लेकिन लगता है रिर्जेवेशन कोटा के नाम पर अराजकता का जैसा तांडव विदेशी ताकतों ने बांग्लादेश में कराया है, वही उसी ले डूबा है। अब पूछा जा रहा है कि बांग्लादेश का भविष्य क्या होगा। मौजूदा परिस्थितियों में कोई भी इसका आकलन करके नहीं बता सकता, हालांकि इन हालात ने भारत के समक्ष नई चुनौतियां पैदा कर दी हैं।
बांग्लादेश के इन विकट हालात का नुकसान देश के अंदर रहे अल्पसंख्यकों को भी भयानक रूप से हो रहा है। हसीना सरकार के समय भी हिंदुओं पर हमले हो रहे थे और उन्हें देश छोड़ने को मजबूर किया जा रहा था, हालांकि अब जब देश में अराजकता है और निर्वाचित सरकार ही जबरन खत्म कराई जा चुकी है, तब अल्पसंख्यकों को बचाने की जिम्मेदारी भगवान की हो सकती है। क्योंकि कट्टरपंथियों ने अवामी लीग और अल्पसंख्यकों पर जो कहर बरपाया है, वह यह बताता है कि इस पूरे प्रकरण के पीछे स्टूडेंट प्रोटेस्ट नहीं है, अपितु आतंकी संगठनों का हाथ है जोकि बांग्लादेश को ऐसी स्थिति में लाना चाहते हैं, जिसमें उसका सुधारीकरण ठप हो जाए और वह भारत जैसे प्रगतिशील देशों से मित्रता न रख पाए।
बांग्लादेश में भारत की मदद से संसाधन विकसित हो रहे थे और दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा था। यह सब भारत और बांग्लादेश की प्रगतिशील सरकार की सोच का परिणाम था, हालांकि अब बांग्लादेश जहां पर सेना ने सत्ता को अपने हाथ लेकर उसे अगली सरकार को सौंपने बात कही है, शायद वह रफ्तार कभी हासिल कर पाए जोकि इस अराजकता की वजह से वह खो चुका है। देश के साथ दुनिया के देशों को अब अपने संबंधों को आगे बढ़ाने पर सोचना होगा, क्योंकि इतनी अराजकता में कोई क्या फैसला ले सकता है।
गौरतलब है कि बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत की चिंताएं बहुत बढ़ चुकी हैं। हालांंकि अंतरिम सरकार के गठन पर जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए कार्यवाहक को शुभकामनाएं देतेे हुए बांग्लादेश के साथ बेहतर रिश्तों की कामना की है। यह भारत सरकार का दायित्व है, लेकिन बांग्लादेश की ओर से अभी भारत के संबंध में कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहींं दी गई हैै। निश्चित रूप से यह संकट काल सिर्फ बांग्लादेश का नहीं है, यह भारत का भी है। भारत के आसपास जो कुछ भी घटता है, उसका असर हम पर पड़ता ही है। अब बांग्लादेश में जो भी सरकार बनेगी वह चीन और पाकिस्तान परस्त होगी, इसमें कोई संशय है। ऐसे में भारत की घेराबंदी करने में चीन और पाक को और आसानी होगी, तब भारत की चौकसी प्रणाली को और मजबूत करने की जरूरत सामने है। बांग्लादेश में शांति भारत की जरूरत है और इस दिशा में भारत सरकार काे गहन कूटनीति का परिचय देना होगा।
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