The altercation between MP and the presiding officer in Parliament is unfortunate

Editorial:संसद में सांसदों की पीठासीन अधिकारी से तकरार दुर्भाग्यपूर्ण

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The altercation between MP and the presiding officer in Parliament is unfortunate

The altercation between MP and the presiding officer in Parliament is unfortunate

केंद्र में नई सरकार के गठन के बाद जिस प्रकार तू-तू मैं-मैं लोकसभा और राज्यसभा में देखने को मिली है, वह संसदीय परंपराओं के पूरी तरह तिरोहित होने और दंबगई, अखड़पन, एकाकी सोच, वर्चस्व की जंग, स्वीकारोक्ति न होना। सम्मान न होना और संविधान के मुताबिक पद एवं कार्य व्यवहार को स्वीकार न करना। खलल डालना और जनता की ओर से निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनका हक प्रदान न करना। गुमराह होना और करना। एकता के नाम पर देश के विकास को बाधित करना और उसे जनसरोकार से जुड़ा बताना आदि के आरोपों पर आधारित है।  क्या यह माना जा सकता है कि विपक्ष इस बात से प्रेरित है कि राजग को देश की जनता ने बहुमत नहीं दिया था और अगर ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें सरकार बनाने का अधिकार नहीं था। क्या वास्तव में विपक्ष के पास इतना आंकड़ा था कि वह केंद्र में सरकार बना लेता। तब किस बात की खीझ है?

 लोकसभा में स्पीकर ओम बिड़ला पर विपक्ष के कई सांसदों ने इसका आरोप लगाया कि वे कथित रूप से पक्षपात कर रहे हैं। इसके बाद एक-दो विपक्षी सांसद ऐसे भी हैं, जिन्होंने कहा कि स्पीकर ने उन्हें लताड़ दिया और ऐसा करके उनका अपमान किया। यह भी कहा गया कि स्पीकर सिर्फ दो बार के सांसद हैं और विपक्षी सांसद जिन्हें लताड़ा गया वे पांच बार के सांसद हैं, ऐसे में वरिष्ठ कौन है, यह खुद समझ लेना चाहिए। यह कितनी कारुणिक स्थिति है कि लोकसभा में स्पीकर जोकि उसका सर्वोच्च होता है, का इस प्रकार अपमान किया जाता है और कहा जाता है कि वे प्रधानमंत्री के समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं, जबकि उन्हें सख्त रवैया रखते हुए प्रधानमंत्री के प्रति उपेक्षा का भाव रखना चाहिए। ऐसा नेता विपक्ष राहुल गांधी की टिप्पणियों से और सदन में उनकी बातों से जाहिर हो चुका है। हालांकि स्पीकर स्पष्ट कर चुके हैं कि यह उनका शिष्टाचार है और प्रधानमंत्री का सम्मान, स्पीकर क्यों न करें। वास्तव में यह विपक्ष का बेतुका आरोप है, जिसके जरिये उसने यह जाहिर कराने की कोशिश की है कि वह किस प्रकार सरकार की निगरानी कर रहा है और सत्तापक्ष के हर हाव-भाव और उसके कार्यकलाप को भी वह परख रहा है, क्योंकि इस बार जनता ने उसे अच्छा-खासा बहुमत प्रदान कर दिया है।

 इस बीच राज्यसभा में शुक्रवार को उपराष्ट्रपति एवं सभापति जगदीप धनखड़ में सदस्य जया बच्चन के बीच जो संवाद हुआ, वह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है। क्या वास्तव में संसद देश की सेलिब्रिटिज की सैरगाह है कि वे इस बात को जाहिर करेंगे कि उनके पास किस तरह का ज्ञान है और वह ज्ञान उन्होंने कहां से प्राप्त किया है। क्या संसद किसी फिल्म का शूटिंग स्थल है, जहां बार-बार रिटेक करके किसी दृश्य की शूटिंग की जाएगी और धूप-गर्मी, सर्दी से हीरो-हीरोइन को परेशानी हुई तो वह नाराज होकर सेट छोडक़र चला जाएगा या चली जाएगी।  हिंदी फिल्मों की मैगजीनों में ऐसी बातों का खूब उल्लेख होता है। अगर एक महिला राज्यसभा सांसद ने अपने नामांकन में पति का नाम भी अपने नाम के साथ जोड़ा है और सदन में सभापति उनके पूरे नाम के साथ उन्हें बोलने के लिए पुकार रहे हैं तो इसमें क्या गलत है। और टोन जैसा मामला क्या है? क्या एक उपराष्ट्रपति एवं सभापति पर जोकि निर्वाचन के बाद वहां पहुंचे हैं, पर ऐसा आरोप लगाया जा सकता है। यह आरोप कहीं उसी गर्वित भावना के तहत तो नहीं लगाया गया है, जिसमें विपक्ष को लग रहा है कि जनता ने उसे सरकार बनाने का जनमत दिया था, लेकिन राजग ने उसे कब्जा लिया।

पूरे देश ने उस संवाद को सुना है जोकि सभापति धनखड़ और सांसद जया बच्चन के बीच हुआ है। जया बच्चन ने तो खुद को यह कहने से भी नहीं रोका कि हम और आप कुलीग हैं, आप केवल उस चेयर पर बैठे हैं। वास्तव में एक सांसद की सभापति के प्रति यह शैली स्वीकार्य नहीं हो सकती। कल को न्यायपालिका में अदालती कार्यवाही के दौरान जजों की ओर से अधिवक्ताओं और अन्य को लताड़े जाने पर भी सवाल उठेंगे। कहा जाएगा कि अदालत ने अपमान कर दिया। हालांकि अदालत का मकसद अनुशासन कायम करना होता है। यही काम लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में सभापति करते हैं। वैसे आजकल तो आरोपों के घेरे से न राज्यपाल बच रहे हैं, और न ही उपराष्ट्रपति। विपक्ष ने इस मामले को हाथों-हाथ लेते हुए जिस प्रकार स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी की है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। अब तो ऐसे सांसद भी नहीं रहे जोकि मध्यस्थता करके इस स्तर पर मामले को पहुंचने से रोकें। यह कैसा विचित्र समय है, जब सडक़ से लेकर संसद तक हर कोई बस निजी चाहत, सोच और स्वार्थ के वशीभूत हो गया है। क्या हम इन हालात को बदल नहीं सकते। आखिर यह असहिष्णुता का चरम नहीं है तो और क्या है? 

 

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