Terror must be curbed

आतंक पर अंकुश जरूरी, घुसपैठियों की रोकथाम के लिए उठें कदम

Editorial

Terror must be curbed

देश के लिए यह चिंता की बात है कि बॉर्डर क्षेत्रों में सुरक्षा से जुड़ी सूचनाएं लीक हो रही हैं। यह बातें आम नागरिकों की समझ में नहीं आती हैं, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों (security agencies) के लिए ऐसी घटनाएं बेहद चौंकाने वाली और चिंताजनक हैं। ऐसी रिपोर्ट हैं कि सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या असंतुलन बढ़ रहा है, जोकि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से पंजाब सहित बॉर्डर से सटे राज्यों में नागरिक सर्वे जहां वक्त की मांग है, वहीं समय रहते उठाया गया सही कदम भी है।

हालांकि ऐसे सर्वे भारत की धर्मनिरपेक्षता के उलट जाते प्रतीत होते हैं। यह तब है, जब देश में समान नागरिकता संहिता बनाने की मांग उठ रही है और गुजरात जैसे राज्य में भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया है। देश में अब किसी एक वर्ग की तुष्टिकरण की नीति खत्म हो चुकी है और सभी धर्मावलंबियों को एक नजर से देखा जाने लगा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत जहां जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत बता चुके हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक धर्म विशेष के लोगों की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए उसे कंट्रोल करने की जरूरत पर बल दे चुके हैं। ऐसे में धार्मिक आधार पर किए जाने वाले सर्वे पर सवाल उठना लाजमी है। हालांकि देश पहले ही धार्मिक कट्टरता की सजा भुगत रहा है और जिहाद के नाम पर जो घाटी में हो रहा है, वह स्वीकार नहीं हो सकता।

दरअसल, ऐसी रिपोर्ट है कि बॉर्डर एरिया में मुस्लिम वर्ग की आबादी तेजी से बढ़ रही है। बताया गया है कि यूपी और असम में अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर से लगते जिलों में पिछले दस वर्ष में अप्रत्याशित जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ है। उत्तर प्रदेश के हालिया विधानसभा चुनाव में बॉर्डर इलाकों से ऐसी रिपोर्ट सामने आई थी, जिनमें बताया गया था कि किस प्रकार बांग्लादेश से आए लोगों के वोटर कार्ड बन चुके हैं और ऐसा होने में मदद करने वाले मुस्लिम समाज के नेता हैं।

खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि बॉर्डर के साथ लगते जिलों में मुस्लिम आबादी 2011 के मुकाबले 32 फीसदी तक बढ़ चुकी है। जबकि पूरे देश में यह बदलाव दस फीसदी से लेकर 15 फीसदी के बीच है। कहने का अभिप्राय यह है कि मुस्लिम आबादी सामान्य से 20 फीसदी ज्यादा बढ़ चुकी है। यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में एक हजार से अधिक ऐसे गांव बस चुके हैं, जिनमें से 116 गांवों में मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ज्यादा हो चुकी है। यह सब कैसे हो रहा है, इसकी एकमात्र वजह घुसपैठ है। नेपाल, बांग्लादेश के जरिए घुसपैठिए लगातार भारतीय सीमा में घुसकर यहां रह रहे हैं।
  

निश्चित रूप से सुरक्षा के लिहाज से यह चिंताजनक बात है। बीते दिनों में सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ की जांच का दायरा भी 100 किलोमीटर किया गया है। हालांकि पंजाब सरकार की ओर से इसका विरोध किया गया और विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित किया गया। उस समय केंद्र सरकार की ओर से ऐसा करने की जरूरत बॉर्डर इलाकों में सुरक्षा बढ़ाने की मंशा के रूप में इसे जाहिर किया गया था, हालांकि अब पंजाब समेत, राजस्थान, गुजरात, यूपी, बिहार, पं बंगाल और असम समेत पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में बढ़ते जनसंख्या असंतुलन के चलते ऐसा करना आवश्यक हो गया है। अगर देश की सीमाओं की सुरक्षा ही सुनिश्चित नहीं होगी तो फिर आंतरिक सुरक्षा कैसे संभव है। ऐसे में ऐसे सर्वे की जरूरत और उसकी उपयोगिता को बखूबी समझा जा सकता है।
  

बेशक, धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत के अनुरूप किसी एक धर्म विशेष के लोगों की गणना उचित नहीं कही जा सकती, लेकिन किसी इलाके में जनसंख्या असंतुलन का होना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। पिछले एक टीवी न्यूज चैनल पर बहस के दौरान विवादित टिप्पणी के बाद जिस प्रकार से संप्रदायिक दंगे भडक़े थे और राजस्थान में सांप्रदायिक वारदातों में इजाफा हुुआ है, उसके बाद से इन राज्यों में सावधानी बरतना जरूरी हो गया है। रिपोर्ट है कि यह सर्वे सबसे पहले राजस्थान में ही होगा।

जाहिर है, ऐसे कार्य विवादित हो जाते हैं, हालांकि सुरक्षा एजेंसियों की नीयत पर सवाल नहीं उठना चाहिए, उनका प्राथमिक दायित्व देश की सुरक्षा है। वैसे भी आतंक का न कोई धर्म होता है और न ही जात। भारत की सुरक्षा में छेद करने वाले हर आरोपी को बेनकाब किया जाना जरूरी है।