एसवाईएल : बैठक में निकले समाधान
- By Vinod --
- Wednesday, 12 Oct, 2022
SYL: The solution came out in the meeting
सतलुज-यमुना लिंक नहर का मुद्दा फिर चर्चा में है। सर्वोच्च न्यायालय ने बीते दिनों में टिप्पणी की थी कि पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को आपस में बैठकर इस मसले का समाधान तलाशना चाहिए। अब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पंजाब के उनके समकक्ष भगवंत मान 14 अक्तूबर को एक मंच पर आने को तैयार हो गए हैं। इस मामले के समाधान के लिए हरियाणा हमेशा तत्पर रहा है,राज्य ने अपने हिस्से में जहां नहर का निर्माण कार्य कभी का पूरा किया हुआ है वहीं अब लगातार इस मुद्दे के शांतिपूर्ण हल के लिए कार्य कर रहा है। मुख्यमंत्री खट्टर तो कह भी चुके हैं कि हम निश्चित रूप से इस मुद्दे को सुलझाने का कोई रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे।
उन्होंने पिछले महीने कहा था कि एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए महत्वपूर्ण है। खट्टर ने यह भी कहा है कि एक तरफ हमें यह पानी नहीं मिल रहा है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली हमसे और पानी की मांग कर रही है। इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करने के लिए समय सीमा तय करना बहुत जरूरी हो गया है। वहीं पंजाब में, विपक्षी दलों ने हाल ही में मुख्यमंत्री मान से कहा था कि वे राज्य की भलाई के लिए इस मुद्दे पर मजबूती से खड़े रहें। एसवाईएल नहर से जल बंटवारा कई दशकों से दोनों राज्यों के बीच विवाद का विषय रहा है। अब दोनों राज्यों की नजर इस बैठक पर टिकी है, वहीं पूरा देश भी इसकी निगरानी करेगा। यह तब है, जब हरियाणा में आदमपुर उपचुनाव और पंचायत चुनाव हो रहे हैं, वहीं आम आदमी पार्टी पंजाब में सत्ता हासिल करने के बाद अब दूसरे राज्यों में प्रयत्नशील है।
पंजाब रावी-ब्यास नदी के पानी की मात्रा के पुनर्मूल्यांकन की मांग कर रहा है, जबकि हरियाणा एसवाईएल नहर को पूरा करने की मांग कर रहा है ताकि उसे नदी के पानी का 35 लाख एकड़ फुट का अपना हिस्सा मिल सके। केंद्र सरकार ने छह सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि पंजाब सरकार विवाद को सुलझाने में सहयोग नहीं कर रही है। केंद्र की ओर से तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने बेंच को बताया था कि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में एक सौहार्दपूर्ण समाधान का आह्वान किया था और वह अपने जल संसाधन मंत्रालय के माध्यम से दोनों राज्यों को एक ही मंच पर लाने की कोशिश कर रहा था। शीर्ष कानून अधिकारी ने कहा कि दुर्भाग्य से, पंजाब सहयोग नहीं कर रहा है।
हालांकि, पंजाब के वकील ने पिछले महीने जस्टिस एस.के. कौल की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया था कि राज्य सरकार इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए बहुत उत्सुक है। दोनों राज्यों के बीच आधिकारिक स्तर की बातचीत चल रही है, केंद्र दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच बैठकों पर जोर देता रहा है। केंद्र के अटॉर्नी जनरल की ओर से कहा गया था कि बेंच पंजाब के वकील को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दे सकती है कि मुख्यमंत्री अपने हरियाणा समकक्ष के साथ चर्चा में भाग लें। बेंच ने कहा कि अटॉर्नी जनरल ने ठीक ही कहा है कि पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की बैठक होनी थी और होनी चाहिए थी और हमारे सामने मौजूद वकील ने इस पर सहमति जताई है कि इस तरह की बैठक इसी महीने में होगी।
वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय की एसवाईएल के पानी को लेकर बीते दिनों की गई टिप्पणी और इसके बाद अब पंजाब एवं हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच बैठक का तय होना अपने आप में बेहद अहम बात है। हालांकि इस बैठक में कोई निर्णय होगा, इस पर भी आशंका है। मामला यह है कि क्या आप सरकार पंजाब में एसवाईएल की आवाज के विपरीत कोई फैसला लेने में सक्षम है। अब तक कोई कोई भी सरकार इसके खिलाफ जाने का साहस नहीं कर पाई है। यह कितनी विडम्बना है कि एक राज्य देश के संविधान की आभा को मंद करते हुए अपने हितों की पूर्ति की ही सोच रहा है। मामला पानी की आपूर्ति का है, लेकिन पंजाब ने इसे अपने रसूख की लड़ाई बना लिया है और हरियाणा को उसके हक से वंचित कर रहा है। सर्वोच्च न्यायालय की भी टिप्पणी है कि पानी एक प्राकृतिक संसाधन है और जीवित प्राणियों को इसे साझा करना सीखना चाहिए, चाहे वह व्यक्तिगत हो या राज्य। मामले को केवल एक शहर या राज्य के नजरिए से नहीं देखा जा सकता।
यह सच है कि एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए संजीवनी साबित होगा, ऐसे में पंजाब का यह तर्क जांचे जाने की आवश्यकता है कि क्या वास्तव में उसके पास हरियाणा को देने के लिए पानी नहीं है, या फिर इसकी वजह राजनीतिक है। हालांकि यह देखने में आया है कि पंजाब का हरियाणा के प्रति रूख पक्षपातपूर्ण है और हरियाणा को विरोधी राज्य के रूप में देखा जाता है। हालांकि बदले परिदृश्य में हरियाणा अपने संसाधनों से पंजाब से कहीं ज्यादा विकसित और समृद्ध हो गया है और उसकी यह प्रगति निरंतर जारी है।
वैसे, सतलुज यमुना लिंक नहर निर्माण के मामले में हरियाणा का पक्ष पंजाब पर हर बार भारी रहा है। सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर अगर हरियाणा के पक्ष को मजबूत मानते हुए पंजाब सरकार को फटकार लगाई है तो यह हरियाणा के लिए अहम है। दोनों राज्यों में यह पानी राजनीति का अहम पहलू है। हरियाणा में विपक्ष अब सरकार पर मामले की ठीक से पैरवी न करने का आरोप लगा रहा है। हालांकि यह भी सच है कि अगर हरियाणा की तमाम सरकारें और मौजूदा भाजपा-जजपा सरकार अगर इसकी पैरवी नहीं करती तो आज सर्वोच्च न्यायालय पंजाब के संबंध में ऐसी टिप्पणी नहीं करता। अब अगर सर्वोच्च न्यायालय ने चार माह में इस मामले का हल निकालने के आदेश देते हुए दोनों राज्यों से आपस में बात करने को कहा है तो यह पंजाब के लिए विचारणीय होगा। वास्तव में अगर सर्वोच्च न्यायालय यह मानता है कि पानी में हरियाणा की हिस्सेदारी है तो फिर पंजाब अदालत के निर्णय को क्यों स्वीकार नहीं कर पा रहा है। हरियाणा की तरफ से आरोप लगाया गया है कि पंजाब इस मामले के समाधान में रुचि नहीं ले रहा है। सर्वोच्च न्यायालय 10 नवंबर 2016 को एसवाईएल के मुद्दे पर हरियाणा के पक्ष में अपना फैसला दे चुका है। इसमें शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था कि एसवाईएल का बकाया काम पूरा कर हरियाणा को पर्याप्त पानी मिले। इसके बाद 28 जुलाई 2020 को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को इस मामले में दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता करने का आदेश दिया।
अब यह वक्त की मांग है कि दोनों राज्य इस मसले का निर्णायक समाधान तलाशें और सदैव के लिए इस चैप्टर को बंद कर दें। पंजाब एवं हरियाणा एक समय संयुक्त थे, दोनों बड़े और छोटे भाई की तरह हैं, उनके हित भी साझा हैं, ऐसे में पंजाब को बड़ा दिल दिखाना चाहिए। हरियाणा को पानी की जरूरत का मतलब यह है कि दिल्ली का भी उसी पानी से गुजारा होना है।