सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड योजना, FCRA संशोधन से जुड़ी याचिकाओं पर अलग-अलग करेगा सुनवाई, केंद्र से मांगा जवाब
Electoral Bond Scheme
नई दिल्ली: Electoral Bond Scheme: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना(Electoral Bond Scheme), राजनीतिक दलों को सूचना(Information to political parties) के अधिकार कानून के दायरे में लाने और विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम(Foreign Contribution Amendment Act) में संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अलग-अलग सुनवाई की जाएगी. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि याचिकाओं में तीन अलग-अलग मुद्दों को उठाया गया है और इसलिए, उनपर अलग-अलग सुनवाई की जरूरत है. याचिकाओं के एक समूह में चुनावी बॉन्ड योजना के जरिए राजनीतिक दलों के वित्तपोषण की अनुमति देने वाले कानूनों को चुनौती दी गई है, जबकि दूसरे में पार्टियों को सूचना का अधिकार अधिनियम(right to information act) (आरटीआई) के दायरे में लाने का अनुरोध किया गया है.
जनहित याचिकाओं के तीसरे समूह में 2016 और 2018 के वित्त अधिनियम के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 में किए गए संशोधनों को चुनौती दी गई है. संशोधित एफसीआरए राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा प्राप्त करने की कथित तौर पर अनुमति देता है. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इन याचिकाओं को अलग-अलग सुने जाने की जरूरत है. पीठ ने केंद्र से पुरानी सहित कुछ याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को भी कहा. उसने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मार्च के तीसरे तीसरे सप्ताह में सुनवाई होगी, जबकि राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने के अनुरोध संबंधी याचिकाओं पर अप्रैल के पहले सप्ताह में सुनवाई होगी.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘एफसीआरए संशोधनों से संबंधित याचिका की सुनवाई अप्रैल के मध्य में होगी.’ एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ द्वारा दायर याचिका सहित सात याचिकाएं मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थीं. उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना के जरिए राजनीतिक दलों के वित्तपोषण की अनुमति देने वाले कानूनों को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर वह जनवरी 2023 के अंतिम सप्ताह में सुनवाई करेगा. राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में चुनावी बॉन्ड को पेश किया गया है.
जनहित याचिका के याचिकाकर्ता एनजीओ, ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’(Association for Democratic Reforms) की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने न्यायालय से कहा था कि याचिकाओं में कई संवैधानिक सवाल शामिल हैं, जिनका चुनावी प्रक्रिया की शुचिता पर प्रभाव है. उन्होंने कहा था कि मुद्दे को संविधान पीठ को सौंपना है या नहीं, इस मुद्दे पर पहले गौर किया जा सकता है. इससे पहले, भूषण ने उस जनहित याचिका को शीर्ष अदालत द्वारा तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था, जिसमें केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि राजनीतिक दलों के वित्तपोषण और उनके बैंक खातों में कथित तौर पर पारदर्शिता की कमी से संबंधित मामले की सुनवाई लंबित रहने के दौरान चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए कोई और खिड़की न खोली जाए.
एनजीओ ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों को कथित तौर पर अवैध तरीके से एवं विदेश से मिलने वाले चंदे और उनके खातों में पारदर्शिता की कमी के कारण भ्रष्टाचार बढ़ता है तथा इससे लोकतंत्र को नुकसान होता है. एनजीओ ने पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव से पहले मार्च 2021 में एक अंतरिम अर्जी दायर की थी और अनुरोध किया था कि चुनावी बॉन्ड की बिक्री की खिड़की फिर से न खोली जाए. बीस जनवरी 2020 को, शीर्ष अदालत ने 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और योजना पर रोक लगाने के अनुरोध वाली एनजीओ की एक अंतरिम अर्जी पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा था. सरकार ने दो जनवरी, 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना अधिसूचित की थी.
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