पक्ष में आ रहा था फैसला, फाइनल तस्वीर बदली; सेम सेक्स कपल को शादी का कानूनी हक नहीं, बच्चे गोद लेने की भी इजाजत नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया डिसीजन
Supreme Court Final Judgement on Same Sex Marriage Hearing Latest
Same Sex Marriage Judgement Update: सेम सेक्स मैरिज यानि समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का फाइनल फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स कपल (समलैंगिक जोड़ों) को शादी का कानूनी हक देने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि शादी का अधिकार संविधान में कोई मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए समलैंगिक कपल इसे मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले के संबंध में पूरी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार अधिकार क्षेत्र में डाल दी है। कोर्ट ने कहा कि, इस बारे में संसद ही कानून बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स कपल को बच्चे गोद लेने का भी अधिकार नहीं दिया है।
पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने दिया फैसला
बता दें कि, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 3-2 के बहुमत के साथ यह फैसला सुनाया। मलसन, संवैधानिक बेंच के सभी जजों की राय इस मामले पर एक जैसी नहीं दिखी। बेंच के तीन जज समलैंगिक जोड़ों को शादी का कानूनी हक देने के विरोध में थे, साथ ही उन्हें बच्चे गोद लेने का भी अधिकार नहीं देना चाहते थे। वहीं सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदीश अग्रवाल ने कहा कि, मैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करता हूं जहां उन्होंने समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी है। क्योंकि ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती।
पहले फैसला पक्ष में लग रहा था, फाइनल में बदल गई पूरी तस्वीर
समलैंगिक विवाह को कानूनी हक देने के संबंध में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ फैसला पढ़ रहे थे। शुरू में जब चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना फैसला पढ़ना शुरू किया था तो लग रहा था कि समलैंगिक जोड़ों के पक्ष में फैसला आएगा। इस दौरान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने के अधिकार की भी बात कही थी. लेकिन फाइनल फैसले में न तो बच्चे गोद लेने का अधिकार समलैंगिक जोड़ों को मिला और न ही शादी का कानूनी हक।
बताया जाता है कि, समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने के अधिकार के संबंध में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने विरोध किया था। आयोग ने कहा था कि, इसकी इजाजत न दी जाए। आयोग ने कोर्ट में कहा था कि इस तरह का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि शोध से पता चलता है कि समलैंगिक जिस बच्चे का पालन करेंगे उसका मानसिक और भावनात्मक विकास कम हो सकता है।
सेम सेक्स कपल से न हो कोई भेदभाव...
हालांकि, चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि सेम सेक्स कपल से उनके यौन रुझान के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव न होने पाए। यह तय हो कि, कहीं उनके के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंचने में कोई कोई भेदभाव तो नहीं हो रहा। चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करे। साथ ही सरकार हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर 'गरिमा गृह' बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए।
चीफ जस्टिस ने कहा कि, न्यायालय ने यह माना है एक लिंग के आधार पर समानता से वंचित रखना कहीं से भी जायज नहीं है। समानता की मांग है कि समलैंगिक व्यक्तियों सहित सभी व्यक्तियों को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का न्याय करने का अधिकार है। सीजेआई का कहना था कि विषमलैंगिक जोड़ों को भौतिक लाभ/सेवाएं देना और समलैंगिक जोड़ों को इससे वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
चीफ जस्टिस ने कहा कि, केंद्र सरकार समलैंगिक समुदाय में व्यक्तियों के अधिकारों और हकों को तय करने के लिए एक समिति का गठन भी करेगी। यह समिति समलैंगिक जोड़ों को राशन कार्डों में 'परिवार' के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने, पेंशन, ग्रेच्युटी से मिलने वाले अधिकारों पर विचार करेगी। समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा। चीफ जस्टिस ने ने कहा मैं फिर कह रहा हूँ कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेश समलैंगिक समुदाय के अधिकारों के खिलाफ नहीं जाएंगे और भेदभाव नहीं करेंगे।
याचिकाकर्ता बोले- हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराश
LGBTQIA+ याचिकाकर्ताओं में एक याचिकाकर्ता ने कहा कि, "हम लंबे समय से यह लड़ाई लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने हमें शादी का कानूनी हक नहीं दिया। साथ ही गोद लेने के संबंध में भी कुछ नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि पहले लगा था कि फैसला हमारे पक्ष में आयेगा। क्योंकि सीजेआई ने फैसला पढ़ते हुए शुरुवात में जो कहा वह बहुत अच्छा था लेकिन बाद में जो फैसला आया वह हमारे लिए निराशाजनक है। यह कैसा लोकतंत्र है कि हम अपने ही नागरिकों को बुनियादी अधिकारों से वंचित कर रहे हैं।
वहीं एक अन्य याचिकाकर्ता ने कहा कि, अंत में फैसला हमारे पक्ष में नहीं आया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई कई टिप्पणियाँ हमारे पक्ष में थीं। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार पर डाल दी है। इसलिए हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी चुनी हुई सरकार, सांसदों और विधायकों के पास जाएं और उन्हें बताएं कि हम दो लोगों की तरह अलग हैं।
11 मई को फैसला रखा था सुरक्षित
बता दें कि, सेम सेक्स मैरिज यानि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले में सुनवाई की और इसके बाद 11 मई को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा मामले की सुनवाई करने वाले जजों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
बता दें कि, 25 से ज्यादा LGBTQIA+ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग की थी। इन्होंने स्पेशल मैरिज ऐक्ट और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधान को चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि समलैंगिकों की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाए। उनका कहना है कि स्पेशल मैरिज एक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है। यह गैर संवैधानिक है।
याचिकाकर्ताओं में से एक याचिकाकर्ता ने कहा कि, हम LGBTQIA+ लोग शादी क्यों नहीं कर सकते?... अगर मैं किसी पुरुष से शादी करना चाहता हूं और वह सहमत है तो इसमें समाज का क्या मतलब है? विवाह व्यक्तियों के बीच होता है.. याचिकाकर्ता ने कहा कि हमें समाज के और लोगों की तरह सभी समान अधिकार मिलने चाहिए। यह हमारा मौलिक अधिकार है।
समलैंगिकों की शादी के खिलाफ केंद्र सरकार की क्या दलीलें?
इधर, समलैंगिकों की शादी को लेकर केंद्र सरकार ने दलीलें अलग हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि, इस पूरे मुद्दे को संसद पर छोड़ दिया जाए। क्योंकि सेम सेक्स मैरिज का मुद्दा बहुत जटिल है। इसका समाज पर गहरा असर पड़ेगा। केंद्र सरकार का कहना है कि, समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग हैं जिन्हें किसी भी तरह से समान नहीं माना जा सकता है।
केंद्र का कहना है कि सेम सेक्स संबंध पति-पत्नी और उनसे पैदा होने वाले बच्चों की फैमिली की अवधारणा पर आधारित नहीं है। ऐसे संबंध की तुलना खासतौर पर एक भारतीय समाज और फैमिली से बिलकुल भी नहीं की जा सकती। वहीं केंद्र ने कहा कि, प्रारंभ से ही भारतीय विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से विपरीत सेक्स के मिलन को मानती है। विपरीत सेक्स के दो व्यक्तियों का मिलन ही विवाह है। इसलिए सेम सेक्स संबंध यानि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि ऐसी याचिकाओं को खारिज किया जाए।
समलैंगिक संबंध को अपराध से बाहर कर चुका है सुप्रीम कोर्ट
मालूम रहे कि, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से समलैंगिक संबंध पर 2018 में बड़ा फैसला दिया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने भारत में समलैंगिक संबंध को मंजूरी दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध से श्रेणी से बाहर माना है। यानि एक ही लिंग के दो लोग सहमति से समलैंगिक संबंध रख सकते हैं। यह अपराध नहीं है। लेकिन अब समलैंगिक संबंध में विवाह की मान्यता को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी नहीं दी।