Supreme Court Collegium: जज का बेटा अब नहीं बन सकेगा जज! सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उठाने जा रहा ऐतिहासिक कदम

जज का बेटा अब नहीं बन सकेगा जज! सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उठाने जा रहा ऐतिहासिक कदम, सरकार के पास नहीं भेजी जाएगी सिफारिश

Supreme Court Collegium to End Nepotism in Judicial System News Update

Supreme Court Collegium to End Nepotism in Judicial System News

Supreme Court Collegium: न्यायिक व्यवस्था (Judicial System) में फेरबदल की तैयारी चल रही है। रिपोर्ट्स की माने तो जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। CJI संजीव खन्ना की अगुवाई वाला सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इस दिशा में परिवारवाद (नैपोटिज्म) को खत्म करने पर विचार कर रहा है और जल्द ही इस संबंध में ऐतिहासिक कदम उठा सकता है।

दरअसल, न्यायिक सेवा में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। नियुक्ति प्रक्रिया में झलकती नैपोटिज्म की तस्वीर आलोचना का केंद्र बनती रही। यह माना जाता रहा कि, मनमाने ढंग से जजों की नियुक्ति होती है और परिवारवाद चलता है और जजों के बेटे और उनके रिशतेदारों को वरीयता मिलती है। जबकि डिजरविंग एडवोकेटस पीछे रह जाते हैं।

यह आलोचना लोगों के बीच तक ही सीमित नहीं रही बल्कि 'जजेज सिलेक्टिंग जजेज' वाला कॉन्सेप्ट एक बार के लिए भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट को आमने-सामने ले आया था। खैर वो कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर टकराव था।

लेकिन जब कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर इस तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं कि हाईकोर्ट में बड़े पैमाने पर जजों के सगे संबंधियों की नियुक्ति होती है और वही जज बाद में सुप्रीम कोर्ट आते हैं। ऐसे में इस आलोचना को दूर करने और न्यायिक व्यवस्था में परिवारवाद (नैपोटिज्म) को खत्म करने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम यह कदम उठाने के मूड में है कि जज का बेटा या कोई रिश्तेदार जज नहीं बन सकेगा।

सरकार के पास नहीं भेजी जाएगी सिफारिश

न्यायिक व्यवस्था के प्रति लोगों में किसी भी तरह की शंका और आलोचना पर ब्रेक लगाने और स्वस्थ न्यायिक व्यवस्था कायम रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अब इस तरह की व्यवस्था पर पूरी तरह से विराम लगाने की तैयारी में है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में यह विचार किया जा रहा है कि, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड या वर्तमान जज के परिवार से किसी भी सीनियर मोस्ट एडवोकेट के नाम की सिफारिश सरकार के पास जज बनाने के लिए नहीं भेजी जाएगी।

कॉलेजियम मीटिंग में विचार-विमर्श

रिपोर्ट्स की माने तो कॉलेजियम मीटिंग के दौरान इस दिशा में विचार-विमर्श किया गया है। बताया जाता है कि, कॉलेजियम के एक मेंबर ने विचार रखा कि लोगों में यह एक आम धारणा है कि फर्स्ट जेनरेशन एडवोकेट ( जिनके परिवार से कोई जज नहीं रहा है ) की अपेक्षा जजों के संबंधी एडवोकेट्स को वरीयता मिलती है और फर्स्ट जेनरेशन एडवोकेट कम ही जज बन पाते हैं। इसलिए जजों के फैमिली मेंबर्स के नाम की सिफारिश पर रोक होनी चाहिए।

जानकारी के मुताबिक, इस पूरे मामले पर कॉलेजियम के बाक़ी जजों ने भी लगभग अपनी सहमति जताई है। यानि CJI संजीव खन्ना की अगुवाई वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सभी जजों के बीच आम सहमति अगर बन जाती है तो वास्तव में यह एक ऐतिहासिक कदम होगा। हालांकि, इस मामले में विचार-विमर्श के बीच यह बात भी रखी गई है कि ऐसा होने से कुछ योग्य एडवोकेट जो जज नियुक्त होने की योग्यता रखते हैं, वे किसी जज का सगा होने से जज नहीं बन पाएंगे। तो ऐसे में क्या होगा?

बताया जाता है कि, इस मामले को लेकर कॉलेजियम में विचार हुआ कि, ऐसे केस में कोई सीनियर मोस्ट एडवोकेट बिना जज बने भी अपनी योग्यता और प्रतिष्ठा बरकरार रख सकता है। वह एडवोकेट की शक्ल में बेहतरीन वकालत कर सकता है और अच्छी कमाई कर सकता है। बल्कि जज से भी ज्यादा कमाई उसकी वकालत में है। साथ ही उसकी योग्यता और प्रतिष्ठा उसकी वकालत के अंदाज में।

हाईकोर्ट में 50 फीसदी जज संबंधी

रिपोर्ट्स की माने तो हाईकोर्ट में नियुक्त होने वाले अधिकांश जजों के परिवार में पहले से ही कोई जज रहा होता है। किसी के पिता जज रहे होते हैं, किसी के चाचा-ताऊ जज रहे होते हैं या किसी के नजदीकी संबंधी जज होते हैं। बताया जाता है कि, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग NJAC मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में ये बात आई थी कि करीब 50 फीसदी हाईकोर्ट जज, सुप्रीम कोर्ट या हाइकोर्ट के किसी जज के संबंधी हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसे जज हैं और रहे हैं जो पहले से परिवार के किसी जज के संबंधी हैं।

कैसे काम करता है कॉलेजियम सिस्टम?

कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित सुप्रीम कोर्ट के चार मोस्ट सीनियर जज होते हैं। यही पांच लोग मिलकर तय करते हैं कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कौन जज बनेगा। जिन्हें जज बनाना होता है कॉलेजियम उन नामों को सरकार के पास भेजती है। वहीं कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सिफारिश को सरकार एक बार ही लौटा सकती है। इसके बाद सरकार कॉलेजियम के द्वारा दूसरी बार भेजी गई सिफारिश को मानने के लिए बाध्य है।

मौजूदा कॉलेजियम में सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई, सूर्यकांत, हृषिकेश रॉय और ए एस ओका शामिल हैं। अगर देखा जाए तो सीजेआई संजीव खन्ना भी उस परिवार से हैं जिसमें उनके चाचा सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके है और इन्दिरा गांधी की वजह से सीजेआई नहीं बन पाये थे। इसके अलावा इससे पूर्व CJI चंद्रचूड़ भी उस परिवार से आते हैं। जिसमें उनके पिता सीजेआई रहे।

सुप्रीम कोर्ट ने नहीं मंजूर किया था NJAC

आपको ज्ञात रहे कि, ‘जजेज सिलेक्टिंग जजेज’ वाली कॉलेजियम व्यवस्था की कमियों को दूर करने के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बना था। सरकार चाहती थी कि, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की जो नियुक्ति हो। इसके द्वारा हो। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की संवैधानिक पीठ ने इसे रद्द कर दिया था। NJAC में चीफ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर मोस्ट जज, केन्द्रीय कानून मंत्री के अलावा सिविल सोसाइटी के दो लोगों को भी शामिल करने का प्रस्ताव था।

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