आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला; SC-ST कोटे में सब-कैटेगरी बनाने की मंजूरी, अब चुनिंदा जातियों को कोटा के अंदर कोटा
Supreme Court Big Decision SC-ST Quota Reservation Sub-Category
SC-ST Reservation: एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कोटे के भीतर कोटे को मंजूरी दे दी है। यानि राज्य सरकारें अब अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में शामिल जातियों के बीच सब-कैटेगरी भी बना सकती हैं। मतलब एससी-एसटी कोटे में अधिक पिछड़ी, कमजोर और उत्पीड़ित जातियों का उप-वर्गीकरण होगा। इन जातियों के कई वर्ग बनाए जा सकेंगे और ऐसे वर्गों के लिए एससी-एससी कोटे के अंदर अलग से स्पेशल कोटा बनाया जा सकेगा। जिसके तहत ऐसी चुनिंदा जातियों के किसी वर्ग के लिए ज्यादा आरक्षण का रास्ता साफ हो जाएगा। राज्य सरकारें उस वर्ग को ज्यादा आरक्षण का लाभ दे सकेंगी।
सात जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से फैसला दिया
चीफ जस्टिस (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की संविधान पीठ ने SC-ST कोटे में सब-कैटेगरी बनाने के मामले में सुनवाई की। जबकि इस मामले में फैसला 6:1 के बहुमत से दिया गया। दरअसल, संविधान पीठ में चीफ जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ के साथ-साथ जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा ने इसके पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन सिर्फ जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने इसमें असहमति जताई।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का फैसला देने के बाद 2004 के अपने ही फैसले को पलट दिया है। दरअसल, 2004 में दिये उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती। तब 5 जजों ने यह फैसला दिया था। बता दें कि, भारतीय संविधान के अनुसार देश की आबादी को अलग-अलग जातियों के आधार पर मूल रूप से चार वर्गों (सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति) में बांटा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सब-कैटेगरी बनाने का आधार उचित हो
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि, जब SC-ST कोटे में सब-कैटेगरी बनाई जायें तो उनका आधार राज्य के मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहरना चाहिए। सब-कैटेगरी का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए। इस मामले में यह तय किया जाये कि पिछड़ेपन की सीमा के विपरीत जाकर कोई निर्णय न हों उन्हें ही इसका फायदा मिले। जिन्हें अलग कोटे की वाकई सबसे ज्यादा जरूरत है।
संविधान पीठ ने कहा कि, SC-ST कोटे में होने के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के केवल कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। वहीं जमीनी हकीकत से यह इनकार नहीं किया जा सकता कि एससी/एसटी के भीतर ऐसे कई वर्ग हैं, जिन्हें आज भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और वह एससी-एसटी आरक्षण का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। इसलिए सब-कैटेगरी बनाने का आधार यही है कि उन्हें लाभ मिले।
क्रीमी लेयर को एससी-एसटी कोटे से बाहर करना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह भी कहा है कि, राज्यों को SC-ST कोटे से क्रीमी लेयर को भी बाहर करना चाहिए। क्योंकि SC-ST के क्रीमी लेयर (संपन्न वर्ग) के बच्चों की तुलना गांव में मैला ढोने वाले SC-ST व्यक्ति के बच्चों से नहीं की जा सकती। ऐसा करना बेईमानी होगी। इसलिए राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए।
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि, राज्य को एससी एसटी श्रेणी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के दायरे से बाहर करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए। सच्ची समानता हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है। वहीं जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि, ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर सिद्धांत एससी-एसटी पर भी लागू होता है।
वहीं जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि, आरक्षण केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित होना चाहिए। यदि पहली पीढ़ी का कोई सदस्य आरक्षण के माध्यम से उच्च स्थिति तक पहुँच गया है, तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का हकदार नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि वह न्यायमूर्ति गवई के दृष्टिकोण से सहमत हैं कि एससी/एसटी के रूप में क्रीमी लेयर की पहचान का मुद्दा राज्य के लिए एक संवैधानिक अनिवार्यता बन जाना चाहिए।