Editorial: देश के गौरव गान के बीच पहलवानों से ऐसा सलूक?
- By Habib --
- Monday, 29 May, 2023
Such treatment of wrestlers in the midst of the country's pride anthem?
Such treatment of wrestlers in the midst of the country's pride anthem? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब देश नए संसद भवन के लोकार्पण से गौरवान्वित महसूस कर रहा था, उसी समय वे युवा जोकि देश के लिए सम्मान अर्जित करके आए हैं, और उन्हें देश ने पद्मश्री एवं खेल रत्न जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया है, दिल्ली की सडक़ों पर डंडे और धक्के खा रहे थे। वे बैरिकेड पर चढक़र सत्ता को चुनौती दे रहे थे और अपने साथ हुए कथित अन्याय के लिए न्याय की मांग कर रहे थे।
दिल्ली में 28 मई की तारीख ऐसे विपरीत माहौल की भी गवाह बनी है, जब एकतरफ देश की संसद में राष्ट्रगान ध्वनित हो रहा था और दूसरी ओर पहलवान महिला खिलाड़ी एवं उनके समर्थक लोग पुलिस की मार झेल रहे थे। भारतीय कुश्ती महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों ने इसी दिन को अपने संघर्ष को चरम पर ले जाने का अवसर चुना था। इसके लिए हरियाणा और दूसरे राज्यों से पहलवानों के समर्थन में लोग दिल्ली में जुटे थे।
हालांकि हरियाणा में पुलिस ने नाकाबंदी करके दिल्ली में खाप प्रतिनिधियों, किसानों और प्रदर्शनकारी महिला एवं अन्य युवाओं को प्रवेश से रोक दिया, लेकिन फिर भी दिल्ली में पहलवानों के समर्थन में व्यापक भीड़ यह संदेश दे रही थी कि पहलवान इस लड़ाई को किसी मुकाम पर ले जाने को तैयार हैं।
दिल्ली पुलिस ने अब पहलवानों समेत 109 के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया है। वहीं 1331 के करीब लोग हिरासत में लिए गए हैं। इससे पहले पहलवान जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण तरीके से धरना दे रहे थे, उनके समर्थन में विपक्ष के नेता और दूसरे लोग पहुंच रहे थे। यह सब कुछ ऐसा कार्यक्रम था, जिसे दिल्ली पुलिस भी नहीं रोक पा रही थी, लेकिन एकाएक प्रदर्शनकारी पहलवानों ने अपने संघर्ष को इतना आक्रोशित कर दिया कि न केवल पुलिस को सख्त कार्रवाई करनी पड़ी, जबकि खुद प्रदर्शनकारी पहलवान भी धरना स्थल से वंचित हो गए। वास्तव में यह मामला बेहद पेचीदा हो गया लगता है।
एक तरफ शासन व्यवस्था है, दूसरी तरफ पहलवान। एक तरफ आरोपी है, दूसरी तरफ शिकायतकर्ता। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर कुश्ती महासंघ अध्यक्ष पर केस दर्ज हो चुका है, उसकी जांच भी जारी है लेकिन महिला पहलवानों को यह कमतर लग रहा है, वे अब उनकी गिरफ्तारी की मांग पर अड़ी हैं। हालांकि कुश्ती महासंघ अध्यक्ष अब नारको टेस्ट के लिए भी तैयार हैं। क्या एक आरोपी इतना साहस दिखा सकता है, क्या उन्हेंं अपने सत्ता में होने का इतना दंभ है कि वे समझते हंै कि किसी भी रिपोर्ट को वे बदलवा देंगे। ऐसा हो सकता है तो यह भारतीय न्याय व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल होगा।
वैसे यही आशंका प्रदर्शनकारी पहलवानों को है। लेकिन क्या उनकी इस आशंका को राजनीति प्रेरित नहीं माना जा सकता है। इस मामले की सच्चाई सामने आए तो कैसे आए। दोनों पक्ष अपने-अपने मोर्चों पर टिके हैं, कोई भी पक्ष इसके भी संकेत सामने आने नहीं दे रहा है कि राजनीति से प्रेरित होकर भी यह मामला उठाया जा रहा है। लेकिन फिर इस मामले के क्षेत्रवाद, जातिवाद और परिवारवाद में बंटे होने का भी उदाहरण सामने आता है।
भारत में विचार की आजादी है, शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन की भी स्वतंत्रता है, लेकिन अगर व्यवस्था भंग करने की कोशिश की जाएगी तो निश्चित रूप से कार्रवाई का विषय होगा। पहलवानों ने उस दिन को अपनी पंचायत के लिए चुना जोकि देश के लिए सबसे बड़ी तारीख है। आखिर देश से बढक़र क्या हो सकता है। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान भी प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर चढक़र तिरंगे के समकक्ष एक और झंडा लगा दिया था वहीं लाल किले के प्रांगण में अराजकता कायम कर दी थी। किसी समस्या का समाधान इस तरीके से तो कदापि नहीं हो सकता।
देश में ऐसे भी पूर्व राजनयिक हैं, जोकि कहते हैं सरकार उन पर अगर कार्रवाई करती है तो उनके समर्थन में इतने लोग खड़े हो जाएंगे कि इन्हें (सरकार) मुश्किल हो जाएगी। ऐसे बयान अराजकता की स्थिति कायम करने को उकसाते हैं, कानून सभी के लिए समान है तो फिर कुछ लोग उसे अपनी सुविधा के अनुसार क्यों ढाल लेना चाहते हैं।
वास्तव में जरूरत इस बात की है कि आरोपी चाहे वह कोई भी हो उसे कानून के कठघरे में लाया जाए। लेकिन इस बीच पहलवानों की यह बेचैनी भी समझी जानी चाहिए कि आखिर महज कहने भर से ऐसा नहीं होगा। एक आरोपी अगर ऊंची हैसियत रख रहा है तो क्या उस पर कार्रवाई नहीं होगी? वहीं यह भी समझने बात है कि आरोपी के भी मानवाधिकार हैं, आखिर कैसे एकाएक किसी की प्रतिष्ठा को गर्त में डाला जा सकता है। इस मामले में पूरा सच सामने आना जरूरी है, लेकिन दोनों पक्षों को संयम का परिचय देना होगा।
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