मध्यप्रदेश में माता महालक्ष्मी के एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां दिवाली पर प्रसाद के रूप में मिलता है सोना-चांदी
- By Habib --
- Sunday, 23 Oct, 2022
Such a unique temple of Mata Mahalakshmi in Madhya Pradesh
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष दिवाली पर 24 अक्टूबर के दिन मनाया जाएगा। जैसा कि आप जानते हैं की दिवाली के दिन भगवान की पूजा अर्चना के बाद प्रसाद बांटा जाता है। कहीं मिठाई तो कहीं खिल-बतासे को प्रसाद के रूप में भी दिए जाते हैं।
लेकिन मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहां सोने-चांदी के रूप में प्रसाद वितरित किया जाता है। जी हां! आपने सही सुना यहां माता महालक्ष्मी की पूजा के बाद दर्शन करने आए भक्तों को सोना चांदी से बने आभूषण प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं। इसके साथ यहां आए लोग माता महालक्ष्मी के मंदिर में सोना चांदी इत्यादि अर्पित करते हैं और जीवन में सफलता की प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से साल के अंत में उनकी आय दोगुनी हो जाती है।
धनतेरस के दिन खुलते हैं इस अद्भुत मंदिर के कपाट
मध्यप्रदेश के रतलाम में स्थित माता महालक्ष्मी का यह मंदिर भक्तों के लिए केवल धनतेरस के ही दिन शुभ मुहूर्त में खोला जाता है। इसके बाद 5 दिनों तक यहां माता महालक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है और बड़े ही हर्षोल्लास के साथ दीपावली पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त माता महालक्ष्मी के श्रृंगार के लिए घर से आभूषण लाता है उसकी आय दोगुनी हो जाती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
दिवाली के अवसर पर सजाया जाता है मंदिर
दिवाली के समय मंदिर की सजावट ऐसी की जाती है कि दर्शन करने आए श्रद्धालु के मुंह भी खुले के खुले ही रह जाते हैं। यहां पूरे मंदिर को नोट और आभूषणों से सजाया जाता है। जिसकी कीमत 100 करोड़ तक पहुंच जाती है। इतना धन मंदिर की सजावट के लिए श्रद्धालु दान करते हैं। जिसके बाद उन्हें वह वापस भी कर दिया जाता है। उन्हें बकायदा इस धनराशि की रसीद दी जाती है और भाई दूज के दिन टोकन वापस देने पर धन और आभूषण को वापस भी कर दिया जाता है।
प्रसाद में मिठाई नहीं मिलते हैं सोने व चांदी के आभूषण
इस मंदिर की खास बात यह है कि दिवाली पर्व के दौरान दर्शनार्थियों को प्रसाद के रूप में आभूषण-नकदी इत्यादि दी जाती है। इस प्रसाद को प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से इस मंदिर में भक्तों का ताता लगता है। लेकिन यहां मिलने वाले आभूषण को श्रद्धालु खर्च नहीं करते हैं बल्कि उन्हें तिजोरी में रख देते हैं। यह मान्यता है कि ऐसा करने से चौगुनी तरक्की होती है।