'महावीराष्टक के दीपार्चन' से ज्ञान अध्यात्म की धारा

'महावीराष्टक के दीपार्चन' से ज्ञान अध्यात्म की धारा

Deeparchan of Mahavirashtak

Deeparchan of Mahavirashtak

चंडीगढ, 21 मार्च। Deeparchan of Mahavirashtak: जैन धर्म के लिए मार्गदर्शक पुस्तक महावीराष्टक के दीपार्चन का विमोचन  सेक्टर 27 स्थित दिगंबर जैन मंदिर(Digambar Jain Temple) में समाज के गणमान्य लोगों की उपस्थित  में हुआ। चण्डीगढ़ में पधारे  सन्त क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी महाराज(Kshullak Shri Pragyanshsagar Ji Maharaj) के द्वारा निर्मित भक्तामर स्तोत्र की तरह विख्यात श्री महावीराष्टक स्तोत्र का दीपार्चन बनाया गया है ।साथ ही उसके यन्त्र, मन्त्र और चित्र आदि के द्वारा बहुत महत्त्वपूर्ण कृति जैन जगत् को दी है।

वास्तव में जैन धर्म में जिनेन्द्र भगवान् की अनेक प्रकार से पूजा करने का उपदेश मिलता है उन्हीं में से एक है दीपकों से जिनेन्द्र भगवान् की अर्चना करने का तरीका। सारे जगत् में भगवान् आदिनाथ जी की तो भक्तामर स्तोत्र के माध्यम से दीप अर्चना होती ही है लेकिन  श्री महावीर स्वामी की दीप अर्चना अब तक नहीं होती थी लेकिन  क्षुल्लक श्री 105 प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव का ध्यान गया और उन्होंने प्रसिद्ध महावीराष्टक स्तोत्र पर ही दीपाचनम् बना भक्तों की जिन्दगी में उजाला भरने का प्रयास किया है।  जैन समाज  के वक्ताओं ने कहा कि प्रज्ज्वलित दीपक हमें प्रकाश के साथ-साथ बहुत अधिक मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा देता है और यदि इसे ही विशेष मन्त्रों के माध्यम से भगवान् के समक्ष अटूट श्रद्धा-भाव से समर्पित करते है तो यह दीपक हमें और हमारे जीवन में, हमारे वातावरण में नये प्रकाश के साथ-साथ अद्भुत ऊर्जा से भर देते हैं।

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