Sports should not be affected by players entering politics

Editorial: खिलाड़ियों के राजनीति में आने से खेल पर नहीं आए आंच

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Sports should not be affected by players entering politics

Sports should not be affected by players entering politics: खेल और राजनीति का अपना-अपना स्थान है। हालांकि दोनों अगर एक हो जाएं तो फिर मामला गड़बड़ ही समझिए। वैसे बीते कुछ महीनों में देश में जो भी खेल और राजनीति में हुआ है, वह सभी को अचंभित कर रहा है। बीते वर्ष सर्दियों की बात ही है, जब राजधानी दिल्ली की सडक़ों पर कुश्ती पहलवान आंदोलन कर रहे थे और उनका आरोप था कि भारतीय कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई की जाए क्योंकि उन्होंने एक महिला पहलवान से आपत्तिजनक व्यवहार किया।

इसके बाद पूरे देश में बवाल था और राजनीतिक दल दो हिस्सों में बंटे नजर आ रहे थे। एक तरफ सत्ताधारी भाजपा थी वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस समेत सभी दूसरे विपक्षी दल। आरोप इसके लगाए कि सत्ताधारी भाजपा अपने सांसद को बचा रही है। खैर, इस मामले में बृजभूषण शरण सिंह का कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा हुआ और उन्हें भाजपा ने इस बार टिकट भी नहीं दिया, यानी उनके राजनीतिक करियर पर ग्रहण लग गया।

अब एक और तस्वीर देखते हैं। महिला पहलवानों के उस आंदोलन के अगुवा रहे दो रेस्लर अब राजनीति जॉइन कर चुके हैं। यह सब भी काफी नाटकीय जान पड़ता है। पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने में असफल ही विनेश फौगाट और ओलंपियन बजरंग पूनिया कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने हाथों-हाथ विनेश फोगाट जहां जुलाना हलके से विधानसभा चुनाव में टिकट दे दिया वहीं बजरंग पूनिया को किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। अब दोनों पहलवानों की ओर से राजनीति में आने के बाद ऐसे बयान सामने आ रहे हैं, जिनका संबंध धुर राजनीति से है। हालांकि उन पर अब भाजपा की ओर से राजनीतिक हमले हो रहे हैं।

खुद बृजभूषण शरण सिंह की ओर से विनेश फौगाट के संबंध में काफी तीखे बयान दिए हैं, इसके बाद भाजपा नेतृत्व की ओर से उन्हें ऐसा न करने को निर्देशित किया गया है। जाहिर है, यह उचित निर्णय है। हालांकि राजनीति में आने के बाद अगर कोई ऐसी बातों को सुनने से परहेज करना चाहता है, जोकि उसे पसंद नहीं हैं तो यह नाइंसाफी ही कही जाएगी। राजनीति के दंगल में कोई छोटा-बड़ा नहीं रह जाता। बावजूद इसके मर्यादा का निर्वाह आवश्यक है, जोकि आजकल लगभग खत्म हो गई है।

गौरतलब है कि ऐसे बयान सामने आए हैं, जिनमें यह कहा गया है कि पेरिस ओलंपिक के दौरान संबंधित महिला पहलवान का ध्यान नहीं रखा गया और इसकी वजह से उनका वजन बढ़ गया और वे मुकाबले में हिस्सा नहीं ले पाई। इसके आरोप सरकार पर मढ़े गए हैं। अब ओलंपिक के दौरान ही यह बात साफ हो चुकी है कि इसके लिए किसी स्टाफ की जिम्मेदारी नहीं बनती, क्योंकि जो भी स्टाफ वहां था, वह खिलाड़ी का अपना था। तब सरकार पर इसका आरोप क्यों मढ़ दिया गया कि उसने कोताही बरती, जिसकी वजह से गोल्ड मैडल नहीं मिल पाया। यह अपने आप में राजनीति करने का सबसे बड़ा सबूत नहीं है तो और क्या है।

वैसे निष्पक्ष होकर देखा जाए तो खिलाड़ी देश के होते हैं, लेकिन ऐसे बयान भी सामने आए हैं, जब कहा गया है कि संबंधित महिला खिलाड़ी जोकि अब चुनाव भी लड़ रही हैं, देश की बेटी नहीं रही। हालांकि यह प्रश्न भी अहम है कि एक खिलाड़ी देश के लिए लड़ता और जीतता-हारता है, विनेश फोगाट के मामले में केंद्र सरकार एवं हरियाणा की भाजपा सरकार ने तमाम प्रयास किए और विनेश को सरकार की ओर से पुरस्कार राशि भी दी गई। बेशक, सरकार ने चुनाव आचार संहिता की वजह से सम्मान समारोह नहीं किया। लेकिन अब वही महिला रेस्लर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में हैं, और उन्हीं बातों जोकि संभव है देशहित में निष्पक्ष रखी जानी चाहिएं को राजनीतिक मुद्दा बना रही हैं, क्या यह उचित है। अगर बृजभूषण शरण सिंह जोकि एक राजनीतिक हैं, विनेश फोगाट पर राजनीतिक आरोप लगा रहे हैं तो क्या यह अनुचित हो गया।

यह तो नहीं होना चाहिए कि नियम एक के लिए ऐसे हों और दूसरे के लिए दूसरे जैसे। दरअसल, देशहित में और खेल की मूल भावना को समझते हुए ऐसी बातों से दूूर रहने की जरूरत है, जिसमें खेल पर कालिख के छींटे पड़ते हों। इसमें दोनों ही पक्षों का ध्यान रखे जाने की जरूरत है। लेकिन ऐसा होगा, इसमें पर्याप्त संशय है। आखिर कांग्रेस ने विनेश फोगाट को टिकट इसलिए दिया है, ताकि वह ऐसे मुद्दों को हवा दे सके। बेशक, अगर संबंधित खिलाड़ी भाजपा की तरफ जाते तो उस समय भी कुछ अलग बात सुनने को मिल सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वास्तव में मुद्दे गुमराह करने वाले नहीं होने चाहिए। गांव-देहात में बैठे लोगों को भावनात्मक रूप से गुमराह होने में देर नहीं लगती, लेकिन शहरी लोग भी आजकल गुमराह होने से खुद को रोक नहीं पाते। सभी मुद्दों पर बहस होनी चाहिए और सही को सही और गलत को गलत ही समझा जाना चाहिए। 

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