So Tirupati Balaji temple was made a medium of politics

Editorial: तो तिरुपति बाला जी मंदिर को बनाया राजनीति का माध्यम

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So Tirupati Balaji temple was made a medium of politics

So Tirupati Balaji temple was made a medium of politics: आंध्र प्रदेश में तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद के रूप में मिलने वाले लड्डू में चर्बी युक्त घी की मिलावट का मुद्दा इतना जटिल हो गया है कि समझना मुश्किल है कि सच में ऐसा हुआ है या फिर यह सब एक राजनीतिक प्रोपेगंडा है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री से पूछा है कि अगर सबूत नहीं थे, तो फिर यह क्यों कहा गया कि घी में मिलावट की गई है। गौरतलब है कि इससे पहले गुजरात की एक लैब की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया था कि घी में मिलावट की गई थी, हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वह सबूत सामने नहीं आ रहा।

क्या वास्तव में यह माना जाए कि मंदिर को राजनीति में घसीटा गया है और देश-विदेश के लाखों लोगों की आस्था से खिलवाड़ किया गया है। अगर ऐसा हुआ है तो यह बेहद गंभीर बात है और निश्चित रूप से सभी पक्षों से जांच की मांग करती है। मालूम हो, स्वयं माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है कि कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखा जाए। हालांकि यह भी सच है कि देश में राजनीति मंदिर, मस्जिद और दूसरे धार्मिक स्थानों के ईद-गिर्द ही घूमती आई है और अब भी वही हो रहा है। तो यह कथन कि देश के राजनीतिक भगवान को तो कम से कम बख्श देंगे, ज्यादती कही जाएगी।  

आखिर जो लोग सात्विक भाव से जीवन जीते हुए मांसाहार से दूर रहते हैं, उन्हें अगर यह मालूम हो कि उन्होंने पशुओं और उसमें भी गाय-भैंस के मांस से बने घी के प्रयोग से बने प्रसाद का सेवन किया है, तो उनकी आस्था और विश्वास को कितनी ठेस पहुंची होगी। अब यह भी कहा जा रहा है कि जिन लड्डूओं को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, उनमें यह मिलावट नहीं थी बल्कि अन्य खाद्य पदार्थों में इसकी मिलावट की जाती थी। यह सब अपने आप में विचित्र जान पड़ता है, क्योंकि मिलावट, मिलावट है और उसमें जानवरों के मांस से बने पदार्थों की मिलावट अगर की गई है तो यह अपने आप में भयानक मामला बनता है। लेकिन अचरज इसका है कि पूरे देश में इस घटना के बाद से हाहाकार मच चुका है और अब देशभर के मंदिरों में वितरित हो रहे प्रसाद को लेकर तमाम बातें सुनने को मिल रही हैं, यह भी कहा गया है कि दुकानों पर निर्मित प्रसाद नहीं अपितु घरों में बने प्रसाद को ही मंदिरों में लाया जाए। यानी मंदिर प्रबंधन इसकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है कि किसी प्रसाद में ऐसी मिलावट सामने आए जिसमें आपत्तिजनक पदार्थों का मिश्रण किया गया हो।

ऐसे में यह सच उजागर होना जरूरी हो जाता है कि आखिर तिरुपति बालाजी के मंदिर में मिलने वाले प्रसाद का सच क्या है। क्या वास्तव में उसमें मिलावट की जाती रही है तो ऐसा क्यों हुआ। इसकी जांच आवश्यक है, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर इसकी क्या वजह है कि इस मामले पर राजनीति की गई। क्या मौजूदा सरकार का प्रयोजन पूर्व सरकार को बदनाम करना था।

 गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाए थे कि प्रसाद के अंदर ऐसी मिलावट की जा रही है। गुजरात स्थित नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की लैब में जांच के बाद इसका दावा किया गया था। तिरुपति तिरुमला देवस्थानम ट्रस्ट इस मंदिर का संचालन कर रहा है, यह ट्रस्ट सरकार के अधीन है। तिरुपति देश के सबसे धनवान मंदिरों में सर्वोपरि है। यहां रोजाना करोड़ों रुपये का चढ़ावा आता है, इस दौरान स्वर्ण और अन्य आभूषणों की संख्या का तो अंदाजा तक नहीं लगाया जा सकता। इन सब बातों के मद्देनजर क्या यह नहीं कहा जा सकता कि इस धनवान मंदिर के जरिये न जाने कितने लोग अरबपति बन चुके हैं और आस्था से खिलवाड़ करने वालों की सच्चाई को छिपाकर रहे हैं।

वास्तव में यह बेहद गंभीर मामला है और केंद्र सरकार की ओर से अगर ऐसा बयान आया है कि इस संदर्भ में कड़ी कार्रवाई की जाएगी तो यह जरूरी है। देश में पहले से हिंदुओं की आस्था पर हमले होते रहते हैं और जब इसके खिलाफ आवाज उठती है तो इसका मजाक बनाने की कोशिश होती है। हालांकि दूसरे धर्मों के संदर्भ में अगर कुछ ऐसी बात सामने आ जाए तो जमीन-आसमान एक हो जाता है। दरअसल, ऐसी बातों को अपराध ही माना जाएगा और फिर यह जरूरी है कि उसके दोषियों को सजा मिले। तिरुपति बालाजी मंदिर के मामले में सभी पक्षों से जांच होनी चाहिए और उन सभी लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए जोकि इसके लिए दोषी हैं।  

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