So everything will be fine if elections are conducted on ballot papers?

Editorial: तो बैलेट पेपर पर चुनाव कराने से सब सही हो जाएगा?

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So everything will be fine if elections are conducted on ballot papers?

So everything will be fine if elections are conducted on ballot papers?: यह विडंबना ही है कि एक तरफ देश की प्रमुख पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ईवीएम से चुनाव कराने के बजाय बैलेट पेपर से चुनाव के लिए जन जागरण यात्रा निकालने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट उस याचिका को खारिज कर रहा है, जिसमें चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग की जा रही थी। ईवीएम, बैलेट पेपर और चुनाव का यह चक्कर आज की बात नहीं है, ऐसा तब से है, जबसे देश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने चुनाव में हार का सामना करना शुरू किया है, वहीं अनेक छोटे दल देश के लोकतंत्र में उग आए हैं। एक समय वह भी था, जब देश में आम चुनाव के नतीजे पूर्णतया आने में एक हफ्ते का समय लग जाता था। इस दौरान पूरा देश दूरदर्शन पर नजरें टिकाए बहस सुनता रहता था।

हालांकि चुनाव में हार का सामना करने वाले राजनीतिक दलों को आज अपनी कमियां नजर नहीं आती, बजाय इसके वे ईवीएम और चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाते हुए इन्हें हराने के लिए जिम्मेदार ठहराते रहते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े पहले कांग्रेसी नहीं हैं, जिन्होंने ईवीएम पर सवाल उठाए हैं, हालांकि इस बार उन्होंने बैलेट पेपर के जरिये चुनाव कराने की मांग को लेकर जैसा अभियान शुरू करने की बात कही है, अचरज उस पर हो रहा है। क्या वास्तव में आज का समय ऐसा है, जब बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाएं और क्या देश की जनता इसे स्वीकार करेगी। आखिर जनता को गुमराह करने के लिए इस प्रकार के शिगूफे क्यों छोड़े जाते हैं। क्या देश की जनता को यह नहीं कहना चाहिए कि इस चुनाव-चुनाव के खेले से उसे बचाया जाए। एक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रणाली के जरिये कम से कम समय में चुनाव को संपन्न करा कर सरकार का गठन कराया जाए।

यह बेहद हैरानी की बात है कि कांग्रेस ने हरियाणा में चुनाव हार गई तो उसे ईवीएम में बुराई नजर आने लगी। उसके बाद महाराष्ट्र में उसकी हार हुई तो वहां भी उसे ईवीएम खराब लगी। लेकिन वायनाड में जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जीत गईं तो वहां ईवीएम ठीक हो गई। इसी प्रकार झारखंड में भाजपा को मात मिली तो वहां भी ईवीएम ठीक थी। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में भी जब कांग्रेस की गठबंधन दोस्त नेशनल कॉन्फ्रेंस को कामयाबी मिली तो ईवीएम बेदाग हो गई। अब खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को कहा है कि जब विपक्ष के बड़े नेता हार जाते हैं तो उन्हें ईवीएम में बुराई नजर आती है, लेकिन जब वे जीत जाते हैं तो सब ठीक ठाक होता है।

आखिर ईवीएम को लेकर यह प्रहसन कब तक चलता रहेगा। विपक्ष के नेता एक तरफ संविधान, न्यायपालिका आदि में भरोसे की बात करते हैं, लेकिन जब उनके स्वार्थ पूरे नहीं होते तो वे इन्हीं संस्थाओं पर पक्षपाती होने के आरोप मढ़ देते हैं। यह बेहद चिंताजनक बात है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने न केवल जनादेश को स्वीकार करने से मना किया अपितु चुनाव आयोग पर भी लांछन लगाए। हालांकि आयोग ने उन आरोपों का जवाब दिया लेकिन कांग्रेस  ने इसके बावजूद अपनी भूल को स्वीकार करने का साहस नहीं दिखाया। अब दिलचस्प यह है कि लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने 5 सीटें जीती थीं, उस समय ईवीएम उसके लिए सही थी वहीं चुनाव आयोग ने भी उस समय निष्पक्ष काम किया था।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोई इसी साल अप्रैल में ईवीएम के हैक होने संबंधी आशंकाओं पर अपने फैसले में कह चुका है कि सिर्फ संदेह के आधार पर ईवीएम पर कोई आदेश नहीं दिया जा सकता।   अदालत ने कहा था कि बगैर किसी तथ्य के इस संबंध में फैसला नहीं दिया जा सकता। अदालत का स्पष्ट मत है कि जब ईवीएम को हैक करने संबंधी ठोस सबूत ही नहीं हैं तो फिर उस पर कैसे फैसला दिया जा सकता है। इस बीच चुनाव आयोग का यह तर्क स्वीकार्य होना चाहिए कि ईवीएम और वीवीपैट मशीन से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट की ओर से ईवीएम को लेकर उठ रही आशंकाओं पर स्पष्ट मत प्रदान किया है।

वीवीपैट पर्चियों की ईवीएम से शत प्रतिशत मिलान की मांग पर सुनवाई के दौरान जो बातें अदालत ने जाहिर की हैं, वे ईवीएम पर उठने वाले सवालों का उचित जवाब है। अदालत का कहना है कि इस संबंध में भरोसा करना होगा और सिस्टम को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। यह गया है कि ईवीएम के जरिये सत्ताधारी राजनीतिक दल चुनाव में धांधली करते हैं, हालांकि अचरज वाली बात यह है कि ऐसे आरोप उसी राजनीतिक दल की ओर से लगाए जाते हैं, जोकि चुनाव हार गया है, या हार रहा होता है। जब हालात उसके पक्ष के होते हैं, तो उसके आरोप यह नहीं होते।

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