Silent vote may cost heavily on the candidates

साइलेंट वोट प्रत्याशियों पर पड़ सकती है भारी, दो हैवीवेट कैंडीडेटों के बीच है चंडीगढ़ के रण में जबरदस्त टक्कर

Silent vote may cost heavily on the candidates

Silent vote may cost heavily on the candidates

Silent vote may cost heavily on the candidates- चंडीगढ़ (खुशविंदर धालीवाल)I चंडीगढ़ की संसदीय सीट देश की सबसे हॉट सीटों में एक बनी हुई है। भाजपा के संजय टंडन और पेशे से चार्टड् अकाउंटेंट, कांग्रेस-आप गठबंधन के मनीष तिवारी जो पेशे से वकील हैं के सामने उतरे हैं। मुख्य बात यह है कि दोनों की गिनती हैवीवेट कैंडीडेटों में हो रही है। मनीष तिवारी कांग्रेस की सरकार के दौरान देशभर में एक जाना माना नाम रहे हैं तो दूसरी ओर संजय टंडन स्थानीय होने का दावा करते हुए जीत के प्रति आश्वस्त हैं।  भाजपा चुनाव घोषणा पत्र समिति के सदस्य ओम प्रकाश धनखड़ ने बताया कि उनका घोषणा पत्र पार्टी के नेता नहीं बल्कि देश की जनता तैयार कर रही है। चंडीगढ़ का संकल्प पत्र भी इसी आधार पर बनाया गया है। वहीं कांग्रेस अपनी पांच गारंटी योजना को लेकर जीतने का दावा कर रही है।

भाजपा स्पष्ट तौर पर सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है। इस बात से अवगत होकर, पार्टी ने चंडीगढ़ से दो बार की सांसद किरण खेर की जगह भरोसेमंद सिपाही संजय टंडन को मैदान में उतारा है , जो पंजाब में मंत्री रहे और छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलराम दास टंडन के बेटे हैं।

वर्ष 2014 में किरण खेर ने 69,642 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी जो 2019 में घटकर 46,970 वोटों पर आ गई। डड्डूमाजरा लैंडफिल साइट को हटाने और यातायात प्रबंधन के लिए नए फ्लाईओवर जैसे स्थानीय मुद्दों के अलावा, लोगों के दिमाग में यह बात भी चल रही है कि किस तरह से चंडीगढ़ मेयर चुनाव में धांधली हुई और कैसे आप-कांग्रेस उम्मीदवार को विजेता घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ी। सेक्टर 26 फ्रू ट मार्केट के दुकानदार विशाल कुमार कहते हैं कि भाजपा की मजबूत रणनीति हर जगह काम नहीं कर सकती। लोग अब बदलाव चाह रहे हैं। वहीं दूसरी और इसी सेक्टर के आढ़ती संगठन ब्राह्मण समाज सभा और जेएंडके डोगरा सभा स्पष्ट रूप से भाजपा के समर्थन की बात करते हैं।

अगर सेक्टरों की बात करें तो उसमें  शत प्रतिशत भाजपा की लहर देखने को मिल रही है।  यदि कॉलोनी में वोट प्रतिशत ज्यादा पड़ता है तो कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है। यदि सेक्टर में वोट प्रतिशत ज्यादा होता है तो भाजपा जीत दर्ज कर सकती है। गठबंधन की केमिस्ट्री भले ही तिवारी के लिए काम कर रही हो, लेकिन चंडीगढ़ में कांग्रेस एक विभाजित घर है। चंडीगढ़ से तीन बार के सांसद पवन बंसल तिवारी के लिए प्रचार नहीं कर रहे हैं। भीतरघात हालांकि भाजपा को भी नुकसान पहुंचा रहा है। पूर्व सांसद सत्यपाल जैन संजय टंडन के प्रचार से नदारद दिखे। किरण खेर भी बहुत कम ही नजर आई। 13 अप्रैल को जब कांग्रेस ने तिवारी को पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया था, उसके बाद से उन्हें किसी भी पार्टी समारोह में नहीं देखा गया। प्रियंका गाँधी की रैली में वह जरूर पहुंचे। सवाल ये भी है कि चंडीगढ़ में कौन सी पार्टी नारी शक्ति को रिझाने में कामयाब होती है , इस पर दारोमदरा रहेगा। चंडीगढ़ की महिलाएं, जो शहर के कुल मतदाताओं का 48.2 फीसदी हैं, अपनी चिंताओं और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। महंगाई इनके लिये सबसे बड़ा मुद्दा है। लगभग 6.59 लाख मतदाताओं में से लगभग 3.15 लाख महिलाएं और 3.38 लाख पुरुष हैं।

शहर का अल्पसंख्यक चाहे खामोश है लेकिन पूर्व में भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं के हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र संबंधित बयान भाजपा के लिए बखेड़ा खड़ा कर सकते हंै। सार्वजनिक मंच पर  मुस्लिम समाज के किसी भी स्थानीय नेता को अभी तक भाजपा का मंच साँझा करते हुए नहीं देखा गया। यहीं स्थिति कमोबेश कांग्रेस की भी है जो बड़े अल्पसंख्यक समुदाय से पार्टी के पदाधिकारी हैं। अर्थ प्रकाश संवाददाता ने जब मतदाता की राय जानी तो कई जगह भाजपा तो कई जगह कांग्रेस बढ़त पर दिख रही है। कुछ जगहों पर बसपा उममीदवार को अप्रत्याशित समर्थन मिल रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इससे किसे नुकसान होता है।