Sikh riots convict sentenced after 41 years, victory of justice
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Editorial: सिख दंगों के दोषी को 41 साल बाद सजा, न्याय की जीत  

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Sikh riots convict sentenced after 41 years, victory of justice

Sikh riots convict sentenced after 41 years, victory of justice: साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके परिवार, पार्टी और देश के लिए त्रासदी थी। देश और दुनिया में वह दिन बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था, जब श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या का समाचार फैला। हालांकि इस वारदात के बाद देश में सिख समाज ने जो झेला, उसका दर्द न आज तक दूर हो पाया है और न ही भविष्य में यह संभव है। बेशक, उस दर्द को झेलते हुए अनेक परिवार ईश्वर को प्यारे हो गए। कांग्रेस पार्टी 84 के सिख विरोधी दंगों के लिए कभी  क्षमा की मानसिकता में नहीं रही है। उसके नेताओं ने जहां उन दंगों की वास्तविकता को छिपाया वहीं इससे ही इनकार किया कि ऐसा कुछ भी हुआ था।

हालांकि अब 41 साल बाद पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को सिख विरोधी दंगों के दौरान एक पिता-पुत्र की हत्या कर उनके घर को आग के हवाले करने के मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू की विशेष अदालत ने दोषी करार दिया है, जोकि सिख समाज के जख्मों पर मरहम है।  अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि दोषी ने हथियारों के साथ भीड़ को दंगे के लिए भडक़ाया। जाहिर है, यह टिप्पणी उन आरोपों को साबित करती है, जिनके मुताबिक किसी एक नहीं, दो नहीं, अपितु सैकड़ों की तादाद में दंगाइयों ने जिनका संबंध कांग्रेस था, सडक़ों पर उतर कर कोहराम मचाया। सिखों के घरों, दुकानों और उनके प्रतिष्ठानों में घुसकर हत्या, आगजनी की। आखिर सच का सच स्वीकार करने में अब भी कितना समय लगेगा। न जाने क्यों जनसामान्य के साथ घटी घटना कोई मूल्य नहीं रखती होती है, जबकि महामना की मानसिक पीड़ा तक का इतना ख्याल रखा जाता है। सिख विरोधी दंगों की वजह से सिख समाज ने एक बार फिर देश के विभाजन जैसी पीड़ा को झेला था।

गौरतलब है कि इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों के द्वारा हत्या कर दी गई थी। यह अपने आप में हैरान करने वाला घटनाक्रम था, क्योंकि इससे पहले किसी ने इसका अंदाजा तक नहीं लगाया था कि एक प्रधानमंत्री के अंगरक्षक ही उनकी हत्या कर देंगे। ऑपरेशन ब्लू स्टार की कार्रवाई से हताश होकर सिख अंगरक्षकों ने इस करतूत को अंजाम दिया था, लेकिन इसकी सजा पूरे सिख समाज ने भुगती थी। यह अब भी मंथन का विषय है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार कितना जरूरी था, लेकिन यह भी सच है कि अगर यह कार्रवाई अंजाम नहीं दी जाती तो आतंकवादियों के हौसले अनवरत जारी रहने थे और यह पंजाब की आंतरिक सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा था। बतौर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जो कदम उठाए वे रणनीतिक थे। हालांकि उनकी हत्या के बाद जो घटनाक्रम देश की राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश में सिख समाज के लोगों के साथ घटा, वह घोर पीड़ादायक और नृशंस था। यह सब उस देश में हो रहा था, जोकि लोकतंत्र का जनक कहलाता है, जहां कानून के शासन की रखवाली के लिए संविधान को सर्वोपरि माना गया है।

गौरतलब है कि अदालत में दोषी सज्जन कुमार ने कहा था कि शिकायतकर्ता के बयान को सही नहीं कहा जा सकता, क्योंकि देरी से उसने उसका नाम लिया और उसे आरोपी की पहचान भी नहीं थी। हालांकि अदालत ने इसे स्वीकार नहीं किया। दरअसल, शिकायतकर्ता ने कहा कि उसमें इतना साहस नहीं था कि वह किसी को भी दंगे के लिए उकसाने वाला बता सके। हालांकि जब जस्टिस रंगनाथ मिश्रा जांच आयोग की ओर से अखबारों में नोटिस प्रकाशित हुआ, उसके बाद उन्होंने इसकी हिम्मत की कि दोषी का नाम ले सके। जाहिर है, ऐसे तमाम आरोपी हैं, जिनका सच इसी कारण उजागर नहीं हो सका है, क्योंकि वे राजनीति के शिखर पर थे और सत्ता के सबसे बड़े ठेकेदार भी बने हुए थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर के खिलाफ भी अदालत ने केस की सुनवाई जारी रखने के आदेश दिए हुए है।

 जाहिर है, 41 साल बाद न्याय का मिलना बहुत बड़ी सफलता नहीं है और अभी भी दोषी के पास ऊपर की अदालतों में जाने का वक्त है। यानी जरूरी नहीं कि निचली अदालत के फैसले पर अमल हो जाएगा। देश में न्यायिक प्रणाली इसी प्रकार संचालित हो रही है। यहां कसूरवार तमाम उपायों के जरिये खुद को सुरक्षित रखते रहते हैं। यह कितना दुखद है कि एक पिता और पुत्र की हत्या हो गई और उनके घर को जला दिया गया लेकिन फिर भी अदालत को सबूत और गवाह चाहिएं थे। शिकायतकर्ता पत्नी और मां को दोषी को सजा दिलाने के लिए 41 साल लड़ना पड़ा, तब  सारी व्यवस्था इसकी निगरानी करती रही कि देखते हैं, उनमें कितना साहस और संकल्प बाकी है। यानी कोई वारदात का दंश भी झेले और फिर आरोपी को सजा दिलाने के लिए भी लड़े। और इस बीच आरोपी अपनी आजादी का पूरा लुत्फ उठाए। वह शिकायतकर्ता के आरोपों पर भी सवाल उठा सकता है, लेकिन शिकायतकर्ता को इसका हक नहीं है कि वह अपने कहे पर ही विश्वास करने की मंशा जाहिर कर सके।  

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