Old Pension Scheme

Editorial: पुरानी पेंशन योजना को बंद करना ही एकमात्र उपाय है, क्या?

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The only solution is to close the old pension scheme

The only solution is to close the old pension scheme पुरानी पेंशन स्कीम यानी ओपीएस देश में जी का जंजाल बन चुकी है। केंद्र सरकार इससे निजात पाना चाहती है लेकिन राज्यों में विपक्ष की सरकारों ने इस योजना के जरिये ही सत्ता में वापसी का साधन तलाश लिया है। राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश वह राज्य हैं, जहां पुरानी पेंशन योजना को लागू किया जा चुका है।

हालांकि यह सवाल अभी भी अनुत्तर है कि इस योजना को वास्तव में ही खत्म कर दिया जाए या फिर जारी रखा जाए। एक कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद पेंशन ही एकमात्र सहारा होती है। देश में सरकारी कर्मचारियों को पेंशन सबसे लुभावना उपक्रम होती थी, लेकिन अब सरकारी कर्मचारियों को भी पेंशन से हाथ धोने पड़ रहे हैं। हालांकि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। मोदी सरकार Modi Government जब आर्थिक सुधारीकरण में जुटी है और देश के लिए नवीन संसाधन जुटाने की उसकी कवायद जारी है, तब पुरानी पेंशन योजना उसके रास्ते की बड़ी अड़चन बन रही है। यही वजह है कि उसने पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया है।

हालांकि न सरकारी कर्मचारी यह चाहते हैं और न ही विपक्ष के दल। मोदी सरकार और भाजपा की सरकारों का मानना है कि अगर पुरानी पेंशन योजना लागू रही तो 2030 तक देश की अर्थव्यवस्था दिवालियापन के कगार पर पहुंच सकती है।

पुरानी पेंशन योजना old pension scheme अब राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है और इस वर्ष होने वाले नौ राज्यों के चुनावों में और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा प्रमुखता से उठेगा। हरियाणा में भाजपा सरकार ने पुरानी योजना को लागू करने से साफ इनकार किया है, वहीं दूसरे राज्यों जिन्होंने पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया है, से इस पर विचार करने को कहा है। आंकड़ों से यह सामने आ रहा है कि जिन राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना लागू की है, उनमें सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा गया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्यों पर अपनी नई सांख्यिकी हैंडबुक-2022 में इसका जिक्र किया है।

सामने आया है कि सबसे पहले ओपीएस लागू करने वाले राजस्थान में पेंशन बिल 16 गुणा तक बढ़ चुका है, वर्ष 2004-05 में केवल 19 प्रतिशत की तुलना में 2020-21 में अपने स्वयं के कर राजस्व का 28 प्रतिशत इस मद में खर्च हुआ है। राज्य में सरकारी कर्मचारियों की संख्या में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो आने वाले वर्षों में पेंशन बिल में बढ़ोतरी का संकेत है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में पेंशन बिल 12 गुणा तक बढ़ गया है, लेकिन राज्य के कर राजस्व में उसी अनुपात में बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसे ही आंकड़े पंजाब से भी मिल रहे हैं, जहां पेंशन की देनदारी का बिल 7 गुणा तक बढ़ चुका है। हालांकि कर राजस्व में यहां भी इसी हिसाब से बढ़ोतरी नहीं हुई है।

दरअसल, पुरानी पेंशन योजना को लागू करने वाली राज्य सरकारों को यह साफ तौर पर बताना चाहिए कि इस योजना के लागू करने से उन्हें फायदा हो रहा है या नुकसान। पुरानी पेंशन योजना को लागू रखे रहने का औचित्य सवालों में रहेगा। समय के साथ सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ रही है, उनकी सेवानिवृत्ति पर पेंशन का खर्च उठाना किस प्रकार संभव होगा।

पेंशन रिटायरमेंट की उम्र के बाद बड़ा सहारा होती है, लेकिन क्या इसका कोई विकल्प नहीं है। निश्चित रूप से कर्मचारी हमेशा चाहेंगे कि उनके वेतन भत्ते और पेंशन में किसी प्रकार की कटौती न हो, लेकिन देश या राज्य में महज सरकारी कर्मचारी ही तो संसाधनों का इस्तेमाल नहीं करते, निजी क्षेत्र के कर्मचारी भी इसी समाज का हिस्सा हैं।

सरकारी कर्मचारियों की पेंशन पर खर्च होने वाला पैसा अगर सार्वजनिक कार्यों में इस्तेमाल होगा तो यह कहीं ज्यादा सर्व उपयोगी होगा। देश में रेवड़ी संस्कृति की धूम बीते कुछ वर्षों से अपनी हदें पार करती जा रही है, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, सरकारी बसों, ट्रेन में मुफ्त सफर, पेंशन, भरपूर सब्सिडी आदि के जरिये राजनीतिक दल जनता को लुभा कर सत्ता में आ रहे हैं। हालांकि इन लुभावनी घोषणाओं के लिए फंड कहां से आएगा, इसका सीधा जवाब नहीं मिल पाता।

 पुरानी पेंशन योजना old pension scheme एक जरूरत है लेकिन इसके साथ विडम्बना भी जुड़ी है। वहीं नई पेंशन योजना जोकि शेयर बाजार के साथ जोड़ी गई है, अनिश्चित है। अगर व्यापक हित में सोचा जाए तो पुरानी पेंशन योजना बड़ा भार साबित होने वाली है, लेकिन सरकार अपने पूर्व कर्मचारियों और उनके वारिसों को अनिश्चितता के भंवर में क्यों डालना चाहती है।

हरियाणा में नई पेंशन योजना में सरकार का हिस्सा बढ़ाने का प्रस्ताव है। क्या कोई बीच का रास्ता नहीं निकाला  जा सकता। सुधारीकरण के लिए क्या कर्मचारियों के हकों पर तलवार चलाना ही एकमात्र उपाय है। सरकारें अगर अपने खर्च कम करें और लुभावनी घोषणाओं पर रोक लगे तो संभव है, पुरानी पेंशन बंद होने के हालात ही न बनें। इस पर विचार जरूरी है।

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