श्री 108 सुबल सागर जी महाराज
Shri 108 Subal Sagar Ji Maharaj
Shri 108 Subal Sagar Ji Maharaj: चंडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27-बी में चल रहे श्रीमद् पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव का प्रथम दिन जहां सभी इंद्रगणों के द्वारा श्री जी का मंदिर में अभिषेक एवं गुरुमुख से शांतिधारा के मंगल बीजाक्षरों का उच्चारण हुआ l घट यात्रा में मुख्य मंगल कलश लेकर चलने का सौभाग्य सौधर्म इंद्र की शचि रानी श्रीमति को प्राप्त हुआ इसके पश्चात श्रीमान अमित जी एवं श्रीमति के द्वारा ध्वजारोहण संपन्न हुआ फिर श्रीमान कमल कुमार कमलांकुर जी भोपाल से आए मुख्य प्रतिष्ठाचार्य एवं श्रीमान सन्मति जी कोल्हापुर महाराष्ट्र से आए सहप्रतिष्ठाचार्य जी के निर्देशन में पंडाल मंच एवं वेदिका की शुद्धि की गई l
समस्त इन्द्रो की इंद्र प्रतिष्ठा भी की गई फिर हल्दी, मेहंदी आदि मांगलिक क्रिया इंद्रो की हुई आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक पाषाण भी पूज्यता को प्राप्त हो जाता क्या कारण है समझ में नहीं आता है एक अचेतन जिसमें चेतन नहीं है सोचने समझने जानने की शक्ति नहीं फिर भी मंत्रों की शक्ति से वह पाषाण भी पूज्यता पवित्रता को धारण कर लेता है l ऐसा क्या कारण रहा की एक चेतन आत्मा पूज्यपने को प्राप्त नहीं हो पा रही तो ज्ञात होता है गुरु के उपदेश से की मन की प्रवृत्ति वचनों का उपयोग और कार्य की अस्थिरता इनके कारण इस जीव का संसार भ्रमण चल रहा है और अपने स्वरूप का ज्ञान नहीं हो पा रहा है l
मुनि महाराज अपनी आत्मा के ध्यान में इतने तल्लीन रहते हैं कि जंगली पशु भी उनकी स्थिर मुद्रा को देखकर उन्हें पाषाण समझकर अपने शरीर की खाज खुजा जाते हैं लेकिन वे मुनिराज अपने ध्यान में स्थित रहते हैं l इतनी सरलता सहजता और सौम्यता रहती है उनके व्यवहार में ऐसी प्रवृत्ति वाला ही कर्मों को क्षयकर भगवान बनने की योग्यता रखता है समस्त संकल्प विकल्पों को छोड़कर एक मात्र अपनी आत्मा का ध्यान करते हैं संसार की समस्त वैभव, संपदा, पूंजी, घर व्यवसाय परिजनों के उदासीन होकर अपने आत्म स्वभाव में बैठकर दोषों को नष्ट करते है और आत्मा की अनंत ज्ञान, अनंतसुख और आनंद शक्ति आदि गुणों का चिंतन करते हैं यह चिंतवन ही उनकी आत्म बल, विश्वास को मजबूत करता है और सिद्धतत्व अवस्था को देने वाला है l आप और हम सभी इस भव्य महामहोत्सव में प्रहार कर अपने जीवन को धन्य करें l यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी l
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