शरद यादव थे छात्र राजनीति की आंधी, इंदिरा गांधी को भी दिखा दिए थे तेवर
27 की उम्र में लोकसभा चुनाव जीता, पहली बार संसद पहुंचे
socialist leader Sharad yadav dies : भारत में समाजवादी सोच को आगे बढ़ाकर उसे जन आंदोलन का आकार देने वाले जयप्रकाश नारायण जेपी और मधु लिमये जैसे नेताओं ने जिनमें अपनी विरासत को देखा, उनमें से एक शरद यादव भी थे। मध्य प्रदेश के होशांगाबाद में जुलाई, 1947 में जन्मे शरद यादव जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से गोल्ड मेडलिस्ट थे, लेकिन यह उनकी पहचान नहीं थी। उनकी पहचान खालिस वह चेहरा थी, जोकि आम आदमी को आगे बढ़ाने की बात करता था। मुलायम सिंह यादव के बाद शरद यादव का अवसान समाजवाद की विचारधारा के और सिमटने की सच्चाई को जाहिर करता है। शरद यादव, राममनोहर लोहिया और जेपी के सामाजवादी विचारों से प्रभावित होकर ऐसे समाज की रचना की चाह रखते थे, जहां सामाजिक, आर्थिक विषमता न हो। हालांकि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में अब समाजवाद महज पुस्तकों तक सीमित रह गया लगता है।
जय प्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन शुरू किया तो उसमें से अनेक हीरे-मोती बाहर आए। (student politics of india) छात्र आंदोलन का भारतीय राजनीति पर कितना असर हुआ था, इसकी पहली बानगी 1974 में देखने को मिली थी। जय प्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन के बाद जिस पहले उम्मीदवार को हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया वो शरद यादव थे।
27 साल के शरद यादव तब जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष थे और छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे। जेल से ही उन्होंने जबलपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीत लिया। 1977 में जनता पार्टी की आंधी की पहली झलक शरद यादव के चुनाव से ही लोगों को मिली थी। वे कुल सात बार लोकसभा सांसद रहे जबकि तीन बार राज्य सभा सदस्य चुने गए।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, समाजवादी राजनीति में शरद यादव बड़ी संभावना के तौर पर उभरे थे। 1976 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय लोकसभा का कार्यकाल 5 साल के बदले छह साल कर दिया था। इसके विरोध में दो ही सांसदों ने इस्तीफा दिया था, एक थे मधु लिमये और दूसरे थे शरद यादव।
शरद यादव अपने अक्खड़ स्वभाव और बेबाक बोल के लिए भी जाने जाते रहे। संसद के अंदर महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण के मसले पर उन्होंने सवर्ण महिलाओं के लिए बाल कटी शब्द का इस्तेमाल किया था। उनके इस शब्द को लेकर जहां संसद में हंगामा हुआ, वहीं देश में भी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की गई। शरद यादव के खिलाफ प्रदर्शन हुए और उन्हें महिला विरोधी करार दिया गया।
शरद यादव की राजनीतिक विरासत को अब कौन संभालेगा? यह सवाल सियासी गलियारों में है। उनकी बेटी सुभाषिनी और बेटा शांतनु बुंदेला दोनों राजनीति में सक्रिय हैं। सुभाषिनी 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में मधेपुरा के बिहारीगंज से चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था।
जबकि उनके बेटे शांतनु मधेपुरा में राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में कितने कामयाब होंगे, यह तो समय ही बताएगा।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि शरद यादव को ऐसे राजनेता के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा जिन्होंने कई सरकारों को बनाने और गिराने में अहम भूमिका निभायी। जिनसे दोस्ती की, वक्त आने पर उनसे दुश्मनी भी खूब निभायी। सिंगापुर में अपना इलाज करा रहे लालू प्रसाद यादव ने उन्हें याद करते हुए कहा भी कि उनसे लड़ाई हो जाया करती थी, लेकिन इसका असर आपसी संबंधों पर नहीं रहा।
शरद यादव का जन्म भले ही मध्य प्रदेश में हुआ हो लेकिन उनकी छात्र राजनीति में कॉलेज की पंचायत से लेकर लोकतंत्र की सबसे बड़ी अदालत संसद तक उनकी आवाज गूंजती रही।
छात्र राजनीति से संसद तक का सफर तय करने वाले शरद यादव ने मध्य प्रदेश मूल का होते हुए भी अपने राजनीतिक जीवन की धुरी बिहार और उत्तर प्रदेश की सियासत से बनाई। शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में अपना राजनीतिक दबदबा दिखाया और राष्ट्रीय राजनीति में अपना अलग स्थान बनाया।
गौरतलब है कि शरद यादव का वीरवार को गुुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल मेें 75 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। वे लंबे समय से बीमारी से ग्रस्त थे।