पंद नद शोध संस्थान की बैठक में हुआ गोष्ठी का आयोजन

पंद नद शोध संस्थान की बैठक में हुआ गोष्ठी का आयोजन

पंद नद शोध संस्थान की बैठक में हुआ गोष्ठी का आयोजन

पंद नद शोध संस्थान की बैठक में हुआ गोष्ठी का आयोजन

डा. अंबेडकर का आधुनिक भारत की दिशा तय करने में योगदान विषय पर हुई चर्चा

यमुनानगर, 20 अप्रैल (आर. के. जैन):
पंचनद शोध संस्थान के द्वारा डा. भीमराव अंबेडकर का आधुनिक भारत की दिशा तय करने में योगदान विषय पर हुडा सैक्टर-17 में राष्ट्रपति पुरूस्कार प्राप्त सेवानिव प्राचार्य सुरमुख सिह गिल की अध्यक्ष्ता में एक गोष्ठ  का आयोजन किया गया। इस गोष्ठ में पंच नद शोध संस्थान के अध्यक्ष सुरेश पाल मुख्य वत्ता के रूप में उपस्थित रहे। मुख्य वत्ता व सेवानिव प्राचार्य सुरेश पाल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत रत्न डा. भीमराव अंबेडकर विधिवेक्ता, प्रोफेसर, प्राचार्य, अथशात्री, शिक्षाविद, राजनीति, समाज सुधारक, लेखक, अशिक्षित श्रमिको, किसानों, दबे कुचले लोग के मसीहा व सामािजक समरसता के प्रतीक होने के साथ-साथ प्रखर राष्ट्रभक्त थे। उनके द्वारा चलाए गए आंदोलनों का उद्देश्य दलितों की सर्वांगीण उन्नति करना, हिंदू समाज को स्वयं सुधार लाने के लिए प्रेरित करना तथा राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ करना था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उनकी अध्यक्षता में बने भारत के संविधान में सर्वधर्म समभाव, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी का भी धर्म, जाति, नस्ल, लिंग भेद विहीनता की प्रमुखता थी। 11 जनवरी 1950 को मुंबई में विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अब हमें अपनी सोच बदलनी है विघटन व संघर्ष का मार्ग छोड़कर सांस्कृतिक समरसता और राष्ट्रीय एकता को महत्व देना होगा। हमें अपने हितों की चिंता के साथ-साथ देश की स्वतंत्रता की रक्षा करने की चिंता भी करनी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि डा. अंबेडकर के व्यक्तित्व के लुप्त लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को सामने लाने की आवश्यकता है। डा. अंबेडकर ने समाज सुधार की जो प्रेरणा दी है आज उस दिशा में देश आगे बढ़ रहा है। संस्थान के कोषाध्यक्ष एसोसिएट प्रोफेसर डा. हेमंत मिश्र ने कहा डा. भीमराव अंबेडकर देश के विभाजन के पक्ष में नहीं थे। वे चाहते थे कि यदि जरूरी ही हो तो विशुद्ध धार्मिक आधार पर बंटवारा हो, और पत्र लिखकर पंडित जवाहरलाल नेहरू से मांग की थी कि पाकिस्तान के दलित वर्ग के लोगों को भारत लाने का तुरंत प्रबंध करें। डा. मिश्र ने कहाकि डा. अंबेडकर ने 1939 में संघ के शिविर के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा था कि मैं आश्चर्यचकित हूं कि शिविर में कोई भी स्वयंसेवक एक दूसरे की जाति नहीं पूछता। संघ की विचारधारा समान नागरिक संहिता को अपनाने की है ताकि देश की एकता एवं अखंडता को न केवल सुदृढ़ किया जा सके अपितु उसे अक्षुण्ण भी रखा जा सके। अध्यक्षीय संबोधन में सुरमुख सिंह गिल ने कहा कि डा. भीमराव अंबेडकर के दिल में सदा अनुसूचित समाज और देशहित ही रहा। धारा 370 का भी उन्होंने विरोध किया था वे मानते थे कि यह अनुच्छेद राष्ट्र की एकता में बाधा है। इस अनुच्छेद के कारण ही पाकिस्तान से आकर जम्मू कश्मीर में रहने वाले दलित समाज के लोगों को सरकारी नौकरी व अन्य सुविधाएं नहीं मिलती थी। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज कुछ राजनीतिक पार्टियां जाति भेद व वर्ग भेद को बढ़ावा दे रही है जो डा. अंबेडकर के मूल चिंतन, नीतियों और आदर्शों के पूर्णतया विपरीत है। देश की एकता व अखंडता के लिए हम सबको एकजुट रहकर देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। गोष्ठी का समापन कल्याण मंत्र के साथ हुआ। इस अवसर पर प्रोफेसर ललित कौशल, प्राचार्य मुकेश कुमार, प्रिथीसैनी, सेवानिवृत्त प्रवक्ता तरसेम चंद, बृजपाल, कपिल मित्तल सहित अनेक शिक्षाविद उपस्थित रहे।