Selfish politics in the name of Dr. Ambedkar must be stopped

Editorial: डॉ. अंबेडकर के नाम पर स्वार्थ की राजनीति होनी चाहिए बंद

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Selfish politics in the name of Dr. Ambedkar must be stopped

Selfish politics in the name of Dr. Ambedkar must be stopped आखिर वह कौन सा दिन होगा, जब देश में संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर का नाम नहीं लिया जाता। किसी न किसी रूप में डॉ. अंबेडकर आजकल हमारे बीच हैं। आज की स्थिति यह है कि पक्ष-विपक्ष डॉ. अंबेडकर के नाम को रट रहा है। चुनाव में संविधान की छोटी पुस्तक को लेकर लोग निकल रहे हैं और उसे दिखाकर वोट मांग रहे हैं। संविधान की वही छोटी पुस्तक संसद में उस समय भी दिखाई जा रही है, जब नवनिर्वाचित सांसद शपथ ले रहे होते हैं। अब तक जैसे ही अपने अधिकारों पर चोट पहुंचने की आशंका होती है, तुरंत संविधान की छोटी पुस्तक और डॉ. अंबेडकर याद आ जाते हैं।

दरअसल, संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह बयान किस प्रकार अपमानजनक समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि एक फैशन हो गया है... अंबेडकर, अंबेडकर। इतना नाम भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। यह बयान कांग्रेस और विपक्ष के उन नेताओं पर कटाक्ष है, जिन्होंने डॉ. अंबेडकर के नाम को अपना हथियार और ढाल बना लिया है। हालांकि जब सच्चाई उजागर हो रही है तो उन्हें कष्ट भी हो रहा है। शीत सत्र की शुरुआत से ही कांग्रेस और विपक्षी विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं और अब जैसे उनकी चाह पूरी हो गई है, जब डॉ. अंबेडकर के रूप में उन्हें एक मुद्दा मिल गया।

शाह की डॉ. अंबेडकर के नाम को लेकर की गई टिप्पणी किसी भी प्रकार से अपमानजनक नहीं है। उसमें कुछ भी व्यक्तिगत बात नहीं कही गई है। डॉ. अंबेडकर को लेकर आजकल कांग्रेस और विपक्ष का रवैया यह बताने को काफी है कि किस प्रकार आज के कांग्रेसी डॉ. अंबेडकर के पैरोकार बन कर दलित और दमित समाज के हिमायती बनना चाहते हैं। हालांकि इतिहास गवाह है कि विपक्ष ने हमेशा ही इस वर्ग को अपने वोट बैंक के रूप में समझा है। बेशक, भाजपा ने डॉ. अंबेडकर के सम्मान में अभिवृद्धि करते हुए उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न मरणोपरांत प्रदान किया और संसद भवन में उनकी प्रतिमा भी स्थापित करवाई। इसके अलावा अनेक शिक्षण संस्थान और अध्ययन केंद्र उनके नाम पर संचालित किए जा रहे हैं। इस सबके बावजूद यह देखना थोड़ा चकित करता है कि आजकल एकाएक डॉ. अंबेडकर सभी दलों के लिए इतने प्रिय कैसे हो गए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि डॉ. अंबेडकर के प्रति नकारात्मक शब्द या विचार के बाद पैदा होने वाले रिएक्शन से डरते हुए उनका इस कदर सम्मान हो रहा है। क्योंकि यह भी अनोखा लगता है कि जो कांग्रेस आजीवन डॉ. अंबेडकर की खिलाफत करती रही, आज उसी कांग्रेस के नए नेता डॉ. अंबेडकर के चित्र लेकर संसद भवन के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि इस दौरान उन्हीं महान व्यक्तित्व की अध्यक्षता में निर्मित संविधान की अनदेखी करके संसद की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लिया जाता या फिर कार्यवाही हल्ले की शिकार हो जाती है। जिसके बाद उसे स्थगित करना पड़ता है। क्या संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर का नाम अपने हित के लिए उपयोग में नहीं लाया जा रहा?

बेशक, इस मामले ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की प्रेस कॉन्फ्रेंस यह बताने को काफी है कि एकाएक बदले घटनाक्रम के बाद किस प्रकार केंद्र सरकार और भाजपा को इसका अहसास हुआ कि डॉ. अंबेडकर के संदर्भ में दिए गए बयान को किस प्रकार इस्तेमाल कर लिया गया है। यही वजह है कि उन्होंने कहा कि वे डॉ. अंबेडकर का अपमान करने की सपने में भी नहीं सोच सकते। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शाह के समर्थन में बयान जारी कर कहा कि उन्होंने सच उजागर किया तो कांग्रेस अब नाटकबाजी कर रही है।

जाहिर है, यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक है। हैरानी इसकी है कि किस प्रकार देश की महान शख्सियतों के जरिये सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी चालें चलने में लगा है। विपक्ष की इस पूरी कवायद के पीछे मंशा यही नजर आती है कि वह लोकसभा चुनाव में अपनी हार से खफा है वहीं सत्तापक्ष को भी अपने अंकों के कम होने की चिंता है। जिसके बाद वह ऐसे तीखे हमले कर रहा है। अब बीच बहस डॉ. अंबेडकर आ गए हैं। होना तो यही चाहिए कि डॉ. अंबेडकर की विचारधारा के अनुरूप देश में वंचितों, दलितों, दमितों के उद्धार के सकारात्मक प्रयास हों, लेकिन पार्टियों ने उन्हें अपनी कामयाबी का मूलमंत्र बना लिया है, जिनका सिर्फ नाम रटा जा रहा है। हालांकि इतना तय है कि डॉ. अंबेडकर दलित वर्ग के लिए भगवान हैं, उनका नाम इस समाज के लिए मोक्षदायी है। 

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