Sanitation workers have the right to strike
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सफाई कर्मियों को हड़ताल का हक, हालात बिगाडऩे का नहीं

 Sanitation workers have the right to strike

Sanitation workers have the right to strike

Sanitation workers have the right to strike- हरियाणा में स्थानीय निकायों के सफाई और अग्निशमन कर्मचारियों की हड़ताल से हालात बद से बदतर हो गए हैं। शहरों के हर कोने-नुक्कड़ पर कूड़े ढेर जमा हैं, सडक़ों पर सीवरेज से निकाल कर कीचड़ डाला जा रहा है। कचरे से आती बदबू दमघोट रही है। सफाई कर्मचारियों ने अपनी हड़ताल को सिर्फ धरने-प्रदर्शन तक सीमित नहीं रखा है, अपितु वे न सफाई कर रहे हैं और न ही करने दे रहे हैं। कैथल में तो पार्षदों के घर के बाहर मरे हुए सुअर और कुत्ते तक डाल दिए गए। ये पार्षद खुद शहर में सफाई कराने निकले थे। सफाई कर्मचारियों का ऐसा प्रदर्शन अनुचित ही कहा जाएगा, उनकी मांगों के प्रति सभी को सहानुभूति हो सकती है, लेकिन आज के समय में मांगों को मनवाने के लिए जनता धरना प्रदर्शन की बजाय, उत्तेजक और हिंसात्मक होकर अपना काम निकलवाना ज्यादा पसंद कर रही है। सफाई कर्मचारियों का न खुद सफाई करने और न ही दूसरों को करने देने के रवैये को बिल्कुल भी सही नहीं ठहराया जा सकता।  

हड़ताल से जहां हालात चिंताजनक बन चुके हैं, वहीं इस मामले को लेकर सरकार के ठंडे रवैये पर भी सवाल उठना लाजिमी है। 40 हजार सफाई और अग्निशमन कर्मी खुद के नियमितीकरण व पक्की भर्ती समेत अन्य मांगों को लेकर पिछले दस दिनों से हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार की ओर से अभी तक महज एक बार उनसे बातचीत की गई है। निकाय कर्मचारियों की हड़ताल पहले भी हो चुकी है, लेकिन इस बार त्योहारों के अवसर पर हड़ताल किए जाने से इसका असर और ज्यादा भयंकर नजर आ रहा है। शहर कचरे के ढेर में तब्दील हो गए हैं और जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। आखिर राज्य सरकार को किस बात का इंतजार है, लगभग प्रत्येक शहर में हड़तालियों और पुलिस के बीच झड़पें हो रही हैं। ऐसे भी हालात बन रहे हैं कि शहर में आग लगने पर दमकल कर्मियों की तंगी महसूस हो रही है। दिवाली पर गोहाना में आग लगने पर वहां महज एक नियमित दमकल कर्मी ने तीन जगह जाकर अकेले आग पर काबू पाया। क्या यह सामान्य बात है? गोहाना में ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यहां एक को छोडकऱ बाकी दमकल कर्मी अनुबंध पर हैं।

प्रदेश में अनुबंध आधार पर कर्मचारियों की तैनाती सिर्फ सफाई और दमकल विभागों में ही नहीं है, अन्य विभागों में भी है। अनुबंध आधार पर नियुक्ति अब सामान्य बात हो गई है। राज्य सरकार भी ऐसी भर्तियां करके अपनी जिम्मेदारी से बचती नजर आती है। हड़ताल के संबंध में हरियाणा के निकाय मंत्री का बयान भी सामने आया था, जिसमें उन्होंने स्थाई किए जाने की किसी भी संभावना से इनकार किया है। नगर पालिका कर्मचारी संघ और सरकार के बीच इन मांगों को लेकर लंबे समय से ज्ञापन और चर्चा का दौर जारी है, लेकिन सरकार टस से मस नहीं हो रही। वहीं अब विपक्ष ने भी इस मसले को जोर-शोर से उठा दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तो हड़ताली कर्मचारियों की मांगों का समर्थन कर दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से तुरंत हस्तक्षेप करने की भी मांग की है। वैसे, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना काल के दौरान सफाई कर्मचारियों ने अपनी जान पर खेल कर सफाई की अपनी जिम्मेदारी को निभाया है, ऐसे में नियमित किए जाने की उनकी मांग उचित कही जा सकती है, लेकिन सरकार के समक्ष भी यह विडम्बनापूर्ण स्थिति है कि इस मांग को पूरा कैसे किया जा सकता है।

बावजूद इसके कर्मचारी संगठनों के साथ बातचीत तो की जानी ही चाहिए, उस बातचीत में किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है, लेकिन सरकार की ओर से फिर से बातचीत शुरू न किए जाने से यह मामला सुलझने वाला नहीं है। कर्मचारी संगठनों ने 29 अक्तूबर तक का अल्टीमेटम दिया था, लेकिन अब वह तारीख भी पार होने को है। खट्टर सरकार ने कर्मचारियों की हड़ताल के आगे नरम न पडऩे का संकेत दिया है, लेकिन इस तरह से तो न हड़ताली पीछे हटेंगे और न ही सरकार मानेगी। तब जनता तो दोनों के बीच में पीस कर रह जाएगी। कर्मचारी संघ का यह आरोप गंभीर है कि सरकार बलपूर्वक हड़ताल समाप्त कराना चाहती है। जाहिर है, सरकार एस्मा तक लगा कर देख चुकी है, लेकिन फिर भी हड़तालियों ने पीछे हटने से इंकार किया है। यानी इस बार वे आर-पार की लड़ाई के मूड में है। इन हालात के बीच यहां यह कहना उचित होगा कि सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल का पूरा हल है, लेकिन हालात बिगाडऩे का नहीं, इसलिए सरकार व हड़ताली कर्मियों को जल्द से जल्द इसका हल निकालने का प्रयास करना चाहिए, हड़ताल के कारण कोई भयंकर बीमारी फैले उससे पहले ही ही निकाल लेना चाहिए।