Salasar Balaji Miraculous Story: यहां स्वयं प्रकट हुए हनुमानजी; हर मनोकामना कर देते हैं पूरी, जानिए दिव्य धाम का रहस्य

यहां स्वयं प्रकट हुए हनुमानजी; हर मनोकामना कर देते हैं पूरी, चमत्कारों की फेहरिस्त है बड़ी लंबी, जानिए दिव्य धाम का क्या है रहस्य

Salasar Balaji Miraculous Story

Salasar Balaji Miraculous Story Miracles For Devotees Rajasthan News

Salasar Balaji Miraculous Story: यह धरती रहस्यों और चमत्कारों से भरी पड़ी है। जिससे यह एहसास और द्रढ़ हो जाता है कि, ईश्वर की सत्ता वाकई विद्दमान है। आज हम बात कर रहे हैं राजस्थान के चुरू जिले में स्थित सालासर बालाजी धाम की। जहां शक्तियों का अहसास होता है। यह ऐसा धाम है जहां चमत्कार होता है। यहां चमत्कारों के दावों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है। यह ऐसा धाम है जहां किसी की तकदीर और तस्वीर पल में बदल जाती है।

स्पष्ट कहें तो हनुमानजी का यह मंदिर अपनेआप में चमत्कारिक कहानी और दिव्यता का अद्भुत धाम है। मतलब सालासर बालाजी धाम की महिमा का वर्णन जितना भी किया जाए उतना ही कम है। यह कहा जाता है कि, सालासर बालाजी के सामने जो भी नस्मस्तक होता है फिर उसके कल्याण में देर नहीं लगती। पर हां एक शर्त भी है कि सालासर बालाजी के सामने आपकी भक्ति तन और मन से एकदम निर्मल होनी चाहिए। बालाजी के सामने कोई कपट नहीं चलता. बस कपट न हो तो फिर चमत्कार का मजा देखते ही बनता है। कई लोगों इसके साक्षी भी हैं।

यहां साक्षात बैठे हैं हनुमानजी, स्वयं प्रकट हुए

धार्मिक ग्रन्थों में यह वर्णन है कि, कलयुग में हनुमानजी धरती पर ही वास कर रहे हैं। वह इसी धरती भगवान नारायण के अगले अवतार के प्रतीक्षा में हैं। इसलिए सालासर बालाजी धाम बेहद दिव्य है। यहां हनुमानजी साक्षात बैठे हुए हैं और स्वयं प्रकट हुए हैं। यहां की एक और विशेष बात यह है कि, सालासर बालाजी धाम में बाबा बालाजी दाढ़ी मूंछ के स्वरुप में सुशोभित हैं। माना जाता है कि यह भारत का ऐसा पहला मंदिर है जहां बालाजी की दाढ़ी मूंछ वाली प्रतिमा स्थापित है। बाबा बालाजी का ऐसा रूप देश में कहीं और नहीं देखना को मिलता है।

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कैसे प्रकट हुए सालासर बालाजी?

दरअसल, 1800 शताब्दी की बात है, जब सालासर में बालाजी के एक परमभक्त हुआ करते थे। जिनका नाम था मोहन दास। एक बार बालाजी ने मोहन दास को साक्षात दर्शन दिए। इस दौरान मोहन दास ने बालाजी को सालासर में स्थापित होने को कहा। जहां बालाजी ने परमभक्त मोहन दास को वचन दिया कि वह जल्द ही सालासर में आकर स्थापित होंगे। इसके बाद जब कुछ समय बीता तो नागौर जिले के आसोटा गाँव में एक खेत से बालाजी मूर्ति के रूप में प्रकट हुए। इसके पीछे भी एक पूरी कहानी है।

दरअसल, जिस खेत से बालाजी निकले उस खेत में हल चल रहा था। एक किसान बैलों को लेकर अपने खेत जोतने में लगा हुआ था। इसी बीच अचानक से किसान का हल खेत में अटक गया। जब किसान ने देखा तो हल एक पत्थर से अटका हुआ था। जिसके बाद किसान ने खेत से उस पत्थर को निकाला और बाहर रख दिया और कुछ देर बाद जब उस पत्थर को साफ़ किया तो उस पत्थर में उसे बालाजी की झलख दिखने लगी। इस बीच किसान और उसकी पत्नी ने चूरमे का भोग भी बालाजी को लगाया।

वहीं, इधर बालाजी के खेत से निकलने की बात इलाके में फ़ैल गई। इसी बीच इलाके के एक जागीरदार को इस बारे में पता चला। इधर, जैसे ही जागीरदार को पता चला तो रात में उसके सपने में बालाजी आये और उससे कहा कि वो खेत से निकली उनकी मूर्ती को कहीं और न रखे। इस मूर्ती को सालासर पहुंचा दिया जाये। बताते हैं कि उधर जहां बालाजी ने जागीरदार को सपने में मूर्ती को सालासर पहुंचाने की बात कही तो वहीं इधर सालासर में मौजूद अपने परमभक्त मोहन दास को भी सपना दिया।

बालाजी ने परमभक्त मोहन दास से कहा कि वह मूर्ती रूप में प्रकट हो गए हैं। बैलगाड़ी से उनकी मूर्ती आ रही है। जब बैलगाड़ी सालासर पहुंच जाए तो फिर उस बैलगाड़ी को कोई न चलाये। सालासर आकर बैलगाड़ी अपनेआप जहां भी रुकेगी। वहीं, उनकी मूर्ती की स्थापना कर दी जाए। बस इसके बाद जहां बैलगाड़ी रुकी। वहीं सावन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को शनिवार के दिन बालाजी की मूर्ती स्थापित की गई थी और तबसे इस जगह को सालासर धाम के रूप में जाना जाता है।

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दाढ़ी मूंछ में क्यों आए बालाजी?

सालासर में दाढ़ी मूंछ में ही बालाजी क्यों आए? इसके पीछे एक कहानी है। बताया जाता है कि, जब बालाजी ने पहली बार मोहनदास जी को दर्शन दिए थे तो बालाजी दाढ़ी मूंछ में ही आये थे। जहां मोहनदास जी को बालाजी का यह रूप बड़ा पसंद आया और उन्होंने कहा कि बालाजी आप जब भी प्रकट हों तो इसी रूप में हों। जिसके बाद बालाजी उनकी यह इच्छा पूरी की। जब बालाजी प्रकट हुए तो दाढ़ी मूंछ के रूप में हुए। उनकी दाढ़ी मूंछ वाली मूर्ती हनुमान जी के व्यस्क रूप को प्रदर्शित करती है।

सालासर में सैकड़ों सालों से जल रही मोहनदास जी की जलाई धुनि

सालासर धाम में बालाजी के साथ-साथ मोहनदास जी की भी प्रतिमा भी स्थापित है। मोहनदास जी ने यहां जीवित समाधि ले ली थी। बताते हैं कि, सालासर धाम में जो धुनि मोहनदास जी सैकड़ों साल पहले प्रज्वलित कर के गए थे वह आज भी जल रही है। जब भक्त सालासर धाम में दर्शन करने आते हैं तो इस धुनि की राख को अपने सर-माथे जरुर लगाते हैं। मान्यता है कि इस अग्नि कुण्ड की विभूति से समस्त दुख व कष्ट नष्ट हो जाते हैं।

इसके अलावा सालासर धाम में पास में ही बालाजी की माता अंजना देवी का मंदिर भी है। यहां माता अंजना की गोद में बालाजी बैठे हुए हैं। इस मंदिर में दर्शन के बिना सालासर धाम आना अधूरा है। वहीं धाम परिसर में स्थित एक प्राचीन वृक्ष पर भक्तगण नारियल बांधकर मनोकामानाओं की पूर्ति की अभिलाषा करते हैं।

सालासर धाम करीब 260 वर्ष से अधिक प्राचीन

देश-विदेश में विख्यात यह सालासर धाम करीब 260 वर्ष से अधिक प्राचीन हो गया है। सालासर बालाजी धाम असंख्य लोगों की आस्था, श्रद्धा और विश्वास का धार्मिक स्थल बना हुआ है। यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से प्रतिदिन मनोकामना लेकर बालाजी के दर्शनार्थ आते हैं। चैत्र पूर्णिमा एवं आश्विन पूर्णिमा के अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है तथा यहां भव्य मेला लगता है।

सालासर बालाजी धाम में हनुमान जयंती, रामनवमी के अवसर पर भण्डारे और कीर्तन का विशेष आयोजन किया जाता है। बड़ी संख्या विदेशी सैलानी भी सालासर धाम पहुंचते हैं। (डिस्क्लेमर; सालासर धाम को लेकर यह सारी जानकारी प्राचीन ग्रन्थों और प्रचलित कहानियों पर आधारित है।)