संत हमेशा प्रभु के एहसास में ही जीवन को जीते हैं: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
- By Habib --
- Sunday, 25 Dec, 2022
Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj
चंडीगढ़। संतों का प्रेम तो समस्त संसार के लिए ही होता है। संत किसी से भेदभाव नहीं करते। वह तो हमेशा ही निरंकार प्रभु के एहसास में जीवन जीते हैं। संत सदैव प्रभु की सच्चाई की आवाज को सभी तक पहुंचाने का निरंतर प्रयास करते है कि इस प्रभु परमात्मा से जुड़ जाओ और अपने जीवन को सफल बनाओ।
यह उदगार गुरूगाम मे सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने शनिवार देर सांय सत्संग में उपस्थित विशाल मानव परिवार को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। माता जी ने फरमाया कि संतो का दिल तो हमेशा निरंकार परमात्मा के एहसास में लगा रहता है कि इसी ने हर समय हमारे साथ रहना है। यही परमात्मा है जो हमारे जन्म लेने से पहले भी था और हमारे न रहने के बाद भी रहेगा। यहां सभी भक्तजन निरंकार से नाता जोडऩे के लिए इस सत्संग में एकत्रित हुए हैं कि यदि कोई जुड़ाव में कमी भी है तो सत्संग के द्वारा उस कमी को पूरा किया जाए। भक्त अपने आपको जब इस सत्संग से जोड़ लेता है तब हमारा ध्यान भी निरंकार में लगा होता है और केवल भक्तों की मधुर वाणी ही हम सुनते हैं।
इंसान के जीवन में रूहानियत और इंसानियत संग संग रहेगी तो जीवन सफल होगा। जितना हम परमात्मा के करीब होते जाएंगे उतने ही इंसानियत के गुण हमारे जीवन में आते रहेंगे। मन भी इस इलाही निरंकार के साथ जुड़कर ओर भी पाक साफ होता चला जायेगा।
सतगुरु ने फरमाया कि आत्मा द्वारा मोक्ष की प्राप्ति संभव है। उसके उपरांत ही जीवन की भटकन खत्म हो पाएगी। सतगुरु माता जी ने सचेत किया कि यदि जीते जी ही प्रभु से नाता नहीं जुड़ा तो जीवन की दिशा भी सही नहीं होगी और भटकन भी होगी। जीते जी संत महात्माओं का संग हो जाता है, इस ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तो जहां जीवन में भटकन खत्म होती है वहीं मोक्ष मिलता है।
अत: इस परमात्मा को जीवन में प्राप्त कर मोक्ष की प्राप्ति संभव है। जीते जी ही इस अंधकारमय जीवन को परमात्मा की रोशनी से प्रकाशमय कर लो। किसी उलझनो में नहीं फंसना है बल्कि अपने जीवन को सफल करते जाना है। जीवन के उतार-चढ़ाव के बावजूद भी एक बहुत ही सहज और स्थिर जीवन जिया जा सकता है। जाति पाती, पहरावा आदि छोटी-छोटी बातों से जब मन उठ जाता है तो फिर हर एक में यही परमात्मा दिखता है। सभी इंसान फिर सर्वश्रेष्ठ नजर आते हैं क्योंकि सभी में ही परमात्मा है और इसी परमात्मा का सभी में वास है।
फिर दिल से सभी के भले की ही प्रार्थना की जाती है। बिना किसी भेदभाव के दिल से यह जुड़ाव होगा। जब परमात्मा से प्यार हो गया तो हम स्वयं ही प्यार बन गए फिर सभी से प्यार ही होगा। फिर आसान हो जाएगा कि अलग-अलग दिखने वाले इंसान भी अपने ही नजर आएंगे और सभी को स्वीकार करने की भावना मन में आ जाएगी।
एक घर का उदाहरण देते हुए माता जी ने समझाया कि घर के सभी सदस्यों के स्वभाव अलग-अलग होते हुए भी वो प्यार से रहते हैं और अपनत्व के भाव से एक दूसरे को स्वीकार करते हैं। इसी तरह परमपिता परमात्मा के साथ ही संसार में अपनत्व के भाव से जिया जाता है। ऐसे मनुष्यों को संसार और समाज के लिए वरदान रूप कहा जाता है।
सतगुरु माता जी ने कहा कि विश्वास हर रिश्ते के लिए जरूरी है। यदि इस परमात्मा से प्रेमाभक्ति रूपी प्यार नहीं, इसके प्रति विश्वास नहीं तो फिर हम ज्ञानी भक्त भी नहीं कहला सकते। भक्ति तभी संभव है जब विश्वास के साथ, बिना किसी भय के, प्यार से प्रभु भक्ति की जाए। यही ब्रह्मज्ञानी संतो का जीवन होता है। यह प्यार किसी परिस्थिति की वजह से कम या ज्यादा नहीं होगा बल्कि रुह का रूह से प्रेम होगा।
उन्होंने कहा कि क्रिसमस का दिन है, ईसा मसीह जी लॉर्ड जीसस की शिक्षाओं की बात होती है। यही भाव कि संत तो सदा ही परोपकारी होते हैं। संत कुछ लोगों के लिए नहीं पूरे संसार के भले के लिए ही आते हैं। उनसे हमें यह प्रेरणा मिलती है की है की हम हर एक से प्यार, सत्कार, हर एक के प्रति दया करुणा की शिक्षा लें।
आप जी ने फरमाया कि सेवा सिमरन सत्संग से जुड़ते हुए पूरा वर्ष बीत गया। आने वाले वर्ष में भी प्रयास करें कि हम अपने जीवन में कुछ ओर बेहतर बन सके और निखार डाल सकें। सदैव रहने वाले परमात्मा के साथ जुड़कर हर समय जुड़ाव होगा तो निखार बढ़ता रहेगा।
निरंकारी राजपिता रमित जी सत्संग समारोह में मुख्य मंच पर सतगुरु माता जी के साथ उपस्थित रहे और सभी को दर्शन देकर आशीर्वाद प्रदान किया। इस सत्संग कार्यक्रम का स्वरूप समागम जैसा ही विशाल था।
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