स्माइल प्लीज! खिच... खिच... खिच; चांद पर रोवर प्रज्ञान ने लैंडर विक्रम की धांसू तस्वीर खींची, अंगद की तरह पांव जमाए है
Rover Pragyan Clicked Image Of Lander Vikram
Rover Pragyan Clicked Image Lander Vikram: मिशन चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर अपनी चहलकदमी जारी रखे हुए है और इस दौरान वहां की रहस्यमयी खोजें भी कर रहा है। रोवर प्रज्ञान द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पास पल-पल की जानकारी पहुंच रही है। वहीं अब रोवर प्रज्ञान ने अपने विमान यानि लैंडर विक्रम की एक प्यारी सी तस्वीर इसरो के पास भेजी है। जिसके बाद इसरो ने भी इस तस्वीर को दुनिया के साथ शेयर किया है।
चांद पर अंगद की तरह पांव जमाए खड़ा है अपना विक्रम
रोवर प्रज्ञान ने जो लैंडर विक्रम की जो तस्वीर खींची है उसमें दिख रहा है कि विक्रम चांद पर अंगद की तरह पांव जमाए खड़ा हुआ है और उस पर लगे ChaSTE पेलोड जैसे उपकरण अपना काम बखूबी कर रहे हैं। तस्वीर शेयर करते हुए इसरो ने रोवर प्रज्ञान की तरफ से लिखा- स्माइल प्लीज... इसरो ने बताया कि रोवर में लगे नेविगेशन कैमरे के जरिए ये तस्वीर 30 अगस्त को आज सुबह ली गई है। इसरो ने यह भी बताया कि, चंद्रयान-3 मिशन के लिए NavCams इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम प्रयोगशाला (LEOS) द्वारा विकसित किए गए हैं।
बताया जाता है कि, रोवर प्रज्ञान 14 दिन तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा। धरती के 14 दिन चंद्रमा के एक दिन के बराबर हैं। जब धरती पर 14 दिन पूरे होंगे तो चंद्रमा का एक दिन पूरा होगा। ऐसे में इसरो की कोशिश है कि रोवर प्रज्ञान चंद्रमा के सतह पर अधिकतम दूरी को कवर करे। प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर पर सभी उपकरण सामान्य ढंग से काम कर रहे हैं।
रोवर ने ऑक्सीजन की खोज कर ली है
इसरो ने बीते मंगलवार (29 अगस्त) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट के जरिए चंद्रयान-3 की अभी तक की खोज के बारे में जानकारी दी थी। चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान के पेलोड ने जिन तत्वों की खोज की है, उनमें- एल्युमिनियम (Al), सल्फर (S), आयरन (Fe), क्रोमिशियम (Cr), टाइटेनियम (Ti), मैगनीज (Mn), सिलिकॉन (Si) और ऑक्सीजन (O) शामिल हैं। इसके साथ ही चंद्रयान-3 हाइड्रोजन की तलाश कर रहा है। खास बात ये है कि अगर ऑक्सीजन के बाद चांद पर हाइड्रोजन भी खोज लिया जाता है, तो ये चांद पर पानी की खोज की दिशा में बड़ा कदम होगा। हालांकि, वैज्ञानिक चांद की सतह पर H2 मिलने की पूरी उम्मीद कर रहे हैं।
23 अगस्त की शाम 6:04 बजे हुई चंद्रयान-3 की लैंडिंग
बता दें कि, 23 अगस्त की शाम 6:04 बजे चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग की। साउथ पोल चांद का हाई रिस्क जोन माना जाता है। यही वजह है कि, अब तक जितने भी देशों ने चांद पर अपने यान भेजे हैं। उनमें से किसी ने भी चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग नहीं की है। भारत ऐसा पहला देश बन गया है जिसने चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग की है। जबकि चांद पर सिर्फ सॉफ्ट-लैंडिंग के मामले में अमेरिका, चीन और तत्कालीन सोवियत संघ के बाद भारत चौथा देश बन गया है। भारत से पहले इन तीन देशों ने ही अपने यान चांद पर सफलतापूर्वक उतारे हैं।
14 जुलाई को लॉन्च हुआ था मिशन चंद्रयान-3
मालूम रहे कि, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 14 जुलाई को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-3 की LVM3-M4 रॉकेट के जरिए सफल लॉन्चिंग की थी। वहीं लॉन्च होने के बाद चंद्रयान-3 ने रॉकेट से इजेक्ट होके अंतरिक्ष में धरती की कक्षा में प्रवेश किया और यहां चक्कर लगाने लगा था। इसके बाद 5 अगस्त को चंद्रयान-3 धरती की कक्षा को पार कर गया और चांद की कक्षा में प्रवेश किया था।
भारत दो बार फेल हुआ, मगर हिम्मत नहीं हारी
बतादें कि, इससे पहले भारत ने चांद पर उतरने की दो बार कोशिश की है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पहली बार 22 अक्टूबर 2008 में चंद्रयान-1 लॉन्च किया था। जिसके बाद 8 नवंबर 2008 को चंद्रयान-1 ने चांद की कक्षा में सफलता पूर्वक प्रवेश किया और पानी की खोज भी की। लेकिन 28 अगस्त 2009 को अचानक चंद्रयान-1 से इसरो का संपर्क टूट गया।
इसके बाद भारत ने फिर से तैयारी की और 22 जुलाई 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च किया। मगर चंद्रयान-2 भी चांद पर सफल लैंडिंग नहीं कर सका। दरअसल, 20 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया. मगर बाद में चंद्रयान-2 से संपर्क टूट गया. लेकिन भारत ने फिर भी हार नहीं मानी।
चंद्रयान-3 मिशन में आई इतनी लागत
अगर चंद्रयान-3 को बनाने में आई लागत की बात करें तो जानकारी के मुताबिक चंद्रयान-3 मिशन की पूरी लागत करीब 75 मिलियन डॉलर यानी भारतीय रुपये में 615 करोड़ रुपए है। कई देशों ने कम लागत पर चंद्रमा पर उतरने की कोशिश की लेकिन हमने ये पहले करके दिखाया है। चंद्रयान-3 मिशन के तीन अहम हिस्से थे। प्रोपल्शन, लैंडर और रोवर। इसका कुल खर्च 600 करोड़ रुपये ज्यादा आया था । इस मिशन में इसरो के अलग-अलग विभाग के सैकड़ों वैज्ञानिक जुटे थे।
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