Rishi Sunak, Britain and India

ऋषि सुनक, ब्रिटेन और भारत 

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Rishi Sunak, Britain and India

Rishi Sunak, Britain and India : एक देश जिसने 200 वर्षों तक गुलामी झेली और जोकि अब अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहो, अगर उस देश जिसने उसे गुलाम बनाकर रखा के प्रधानमंत्री पद पर अपने एक वंशी को काबिज होते देखे तो क्या यह दुखी होने की घटना है? निश्चित रूप से यह खुशी और हर्षोल्लास की बात है। हालांकि भारत में आजकल हर बात राजनीति के घोल में लपेट कर आगे बढ़ा दी जा रही है, तब बहुसंख्यकवाद और हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई का राग अलाप कर इस घटना को नकारात्मक बनाने की भरपूर कोशिश की जा रही है। यह भी कितना हास्यास्पद है कि ब्रिटेन में अगर कोई भारतवंशी और एक हिंदू अगर प्रधानमंत्री बन रहा है तो उसकी तर्ज पर भारत में किसी गैर हिंदू के प्रधानमंत्री बनने की कल्पना की जा रही है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दस वर्षों के कार्यकाल में एक सिख ही देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज थे, उस समय यह सवाल नहीं उठाया गया। वैसे, भारतीय संविधान में ब्रिटेन के संविधान से भी बहुत कुछ लिया गया है, लेकिन इसके बावजूद भारत और ब्रिटेन समान नहीं हैं। दोनों के भूगोल, समाज, संस्कृति, मूल्यों-सिद्धांत, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि तमाम बातों में बहुत अंतर है। भारतीय लोकतंत्र देश में रहने वाले किसी भी जाति, धर्म और क्षेत्र के व्यक्ति को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और अन्य पदों पर आसीन होने की अनुमति देता है। फिर किसी में राजनीतिक क्षमता हुई तो वह चाहे फिर गैर हिंदू हो, मुस्लिम हो या फिर सिख-ईसाई वह प्रधानमंत्री भी बन जाएगा। बाकी पदों पर भी समय-समय पर इन धर्मों के लोग आसीन रहे हैं।

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वास्तव में ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने पर भारतीयों की खुशी इसलिए नहीं है कि वे एक हिंदू धर्मावलंबी हैं। अपितु यह खुशी इसलिए है कि जिस ब्रिटेन ने भारत को सैकड़ों वर्षों तक गुलाम बनाए रखा और कितनी कुर्बानियों, कितने संघर्षों के बावजूद देश ने उस गुलामी से निजात पाई, आज उसी ब्रिटेन में प्रधानमंत्री के पद पर एक भारतवंशी बैठे हैं। ऋषि सुनक का कहना है कि वे पूरी तरह एक ब्रिटिश हैं, यह उनका घर और देश है, लेकिन उनकी सांस्कृतिक विरासत भारतीय है। एक भारतवंशी का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने का मतलब यह तो नहीं है कि ब्रिटेन अब भारत पर अपनी कृपा बरसाने लगेगा। देश की नीति के तहत ही प्रधान मंत्री ऋषि सुनक को काम करना होगा। ऐसे में भारत में वे लोग न जाने क्यों परेशान हैं, जोकि देश के लोगों को ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने पर खुशी जताते देख रहे हैं। आज से दस वर्ष पहले तक ब्रिटेन में ऐसा सोचा तक नहीं जा सकता था। लोगों को भारत की आजादी के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के उन शब्दों को याद करना चाहिए कि भारतीयों में शासन करने की काबिलियत नहीं है, जाहिर है विंस्टन चर्चिल आज अगर जिंदा होते तो अपना चेहरा सार्वजनिक नहीं कर पाते। सुनक ने यह पद अपनी काबिलियत से पाया है, भारत में भी कोई गैर हिंदू अपनी काबिलियत से इस पद को प्राप्त कर सकता है।

बेशक, पश्चिम के ज्यादातर देशों में दूसरे देशों से आए लोगों को राजनीति में आगे बढऩे का अवसर मिलता है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन समेत दूसरे अनेक देशों में भारतीय मूल के लोग राजनीति में हैं और कई जगह तो प्रधानमंत्री पद भी संभाल रहे हैं। हालांकि भारत में यह संभव है या नहीं, इस पर चर्चा और बहस की जरूरत है। वर्ष 2004 का वह वक्त याद कीजिए जब कांग्रेस  नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने जीत हासिल की थी और सोनिया गांधी के समक्ष प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव आया था। कांग्रेस चाहती थी कि वे प्रधानमंत्री बने लेकिन भाजपा ने उनकी दावेदारी का प्रबल विरोध किया था। आखिर इस समय कांग्रेस के नेता सोनिया गांधी बनाम ऋषि सुनक को मुद्दा बनाकर भाजपा पर क्यों निशाना साध रहे हैं। क्या ब्रिटेन ने किसी देश की गुलामी झेली है? क्या भारत में जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनका विरोध किया गया था। या फिर जब डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जब राष्ट्रपति बने तो उनका विरोध किया गया था? भारत अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत की रक्षार्थ अगर एक विदेशी को प्रधानमंत्री या फिर किसी भी दूसरे उच्च पद पर आसीन होने पर असहज महसूस करता है तो इसके मायने यही हैं, भारत अनूठा देश है और इसकी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समझ पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। 

कांग्रेस नेता शशि थरूर का कहना है कि डॉ. मनमोहन सिंह अल्पसंख्यक समुदाय से थे, लेकिन ज्यादातर हिन्दू सिखों को खुद से अलग नहीं देखते हैं, वहीं बहुसंख्यकवाद के राजनीतिक उभार में क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि कोई गैर हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध देश का प्रधानमंत्री बनेगा? जिस दिन यह होगा भारत वाकई एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में उभरेगा। ऐसी ही बात जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी कही है। दरअसल, ऐसे बयान काफी हताशापूर्ण और निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए दिए गए ज्यादा लगते हैं। कांग्रेस के हालात तो ऐसे हैं कि उसे अपने अलावा देश में कोई अन्य प्रधानमंत्री बनने लायक ही नजर नहीं आता है। नरेंद्र मोदी को कांग्रेस बतौर प्रधानमंत्री स्वीकार करती भी या नहीं, यह तो वह स्पष्ट करे। एक दिन ऐसा हो सकता है कि देश अपने दिल के दरवाजे खोलते हुए एक गैर हिंदू, सिख या किसी अन्य धर्मावलंबी को प्रधानमंत्री चुन ले, हालांकि उस दिन कांग्रेस और अन्य के पास कुछ नए प्रश्न होंगे। तब संभव है, यह कहा जाए कि अगर ऐसा होता है तो देश और बेहतर लोकतंत्र होगा।

भारत वह देश है, जिसकी भूमिका हमेशा गुरु समान रही है। वह संकल्प, संघर्ष, साहस, समानता, उदारता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक सापेक्षता, ज्ञान, नीति, प्रेरणा का उद्गम है। ब्रिटेन अगर एक भारतवंशी को अपना प्रधानमंत्री बना रहा है तो इसे भारत के संदर्भ में तंज की तरह पेश किया जा रहा है, लेकिन कोई इस पर ध्यान देगा कि इसी भारत ने सदियों से तमाम धर्मों को अपने में समेटा है, जबकि वे धर्म बाहर से आए हैं। आखिर इतनी बड़ी उदारता और कहां मिलेगी?