समरसता, भक्ति और ज्ञान के प्रकाशपुंज रैदास (रविदास)
Devotion and Knowledge
Devotion and Knowledge: समाज में वरिष्ठतम पायदानों पर बैठे लोग जब अपने दायित्वों का निर्वहन निष्ठां से नहीं करते तो कुरीतियों का जन्म हो जाता है और ये कुरीतियाँ फिर समाज में इतनी विषमता पैदा कर देती है, जिसका ऋण फिर आने वाली सैकड़ों पीढियां चुकाती है । हिन्दू समाज ने ऐसे कितने ऋण अभी तक चुकाएं है और कितने चुकाने बाकि है, इसकी गणना शायद ही की जा सके। यूँ तो समाज की कोई भी विकृति हो उसका असर सम्पूर्ण समाज पर होता है, परन्तु हिन्दूओं में व्याप्त इन कुरीतियों के सबसे अधिक शिकार अंतिम पायदान पर खड़ी जातियां और सभी वर्गों की महिलाएं ही रही। कितनी ही प्रथाएं थी, जो विकृत हो कर महिलाओं और वंचितों के लिए काल के समान बन गई थी। सती प्रथा, बाल विवाह,शिक्षा का अधिकार न होना, स्पर्श मात्र से अपवित्र हो जाना, विधवा विवाह न होना, पूजा के अधिकार का न होना, सिर और शरीर ढकने पर प्रतिबंध,मंदिर समेत सभी सामुदायिक स्थानों पे जाने पर प्रतिबंध आदि आदि। लेकिन जहाँ निराशा होती है, वहां आशा भी होती है। अंधेरे के साथ ही उजाले का भी अस्तित्व होता है, ठीक उसी तरह हिदू समाज में भी कुरीतियों के इन अंधेरों को दूर करने समय-समय पर ईश्वरीय अंशों ने अवतार धारण कर मानवीय मूल्यों की रक्षा की। रैदास उसी अवतार परम्परा के दीप्तमान सितारे है। माघ मास की पूर्णिमा को जन्में रैदास ने अपने सम्पूर्ण जीवन को उन्होंने समरसता, भक्ति और ज्ञान के प्रकाशपुंज के रूप में स्थापित कर समाज को नई दिशा देने का काम किया ।
जाति आधारित संकीर्ण सोच के विरोधी
रैदास ने अपनी कलम से जाति आधारित परम्पराओं, जो समाज में भेद पैदा कर रही थी उनपर कड़ा प्रहार किया और लिखा :-
जनम जात मत पूछिए, का जात अरू पात।
रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात॥
अर्थात सभी मनुष्य ईश्वर की ही संतान है, कोई भी व्यक्ति जन्म एवं जाति से हिन या नीच नहीं होता। वे राजा और रंक दोनों को ही ईश्वर की संतान मानकर व्यवहार करने की बात करते है। समाज में बराबरी और समरसता के लिए पग-पग संघर्ष करते रैदास (रविदास) हिन्दुओं और मुसलमान दोनों को आडम्बरों से दूर करके एक नई दिशा दिखाने का काम कर रहे है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भारत भ्रमण कर समरसता के भाव को जागृत किया। वे समाज की जाति आधारित संकीर्ण सोच को धर्म और मोक्ष के राह में बाधक मानते थे । उनके जीवन से जुड़ी कई घटनाएँ तो ऐसी है, जिसमें समाज के कुछ उच्च जाति के लोगों ने योजना बनाकर न केवल उनको नीचा दिखाने का प्रयास किया बल्कि उनको मृत्यु दण्ड मिले इसके लिए भी यत्न किए। उनकी रचनाओं से पता लगता है उन्होंने न जाने कितने ही स्थानों पर शास्त्रार्थ में ब्राह्मणों और मौलवियों को हराकर धर्म के नाम पर हो रहे आडम्बरों को चुनौती दी। संघर्ष से भरे इस प्रकार के जीवन में एक साधारण मानव विचलित होकर विपरीत प्रतिक्रिया दे सकता है जो समाज के लिए कदापि हितकर नहीं होता। परन्तु जैसे पानी में रहने के बाद भी जल की बुँदे कमल के फूल पर नहीं ठहरती उसी प्रकार रैदास के स्वभाव में विपरीत परिस्थितियों के बाद भी समाज के प्रति या किसी विशेष वर्ग के प्रति कोई दुर्भाव नहीं, उल्टा वे तो प्रेम, सद्भाव और समरसता के गीत गाते हुए अपने कर्म को करते रहते है ।
भक्ति और धर्म के सिरमौर
रैदास का समय भारतीय इतिहास में ऐसा समय था। जब विदेशी आक्रान्ताओं ने धार्मिक आधार पर परिवर्तन कर हजारों-लाखों की संख्या में हिन्दुओं को मुसलमान बना दिया था। ऐसी स्थिति में हिन्दुओं के लिए अपनी पूजा पद्धति और धार्मिक मान्यताओं को सही एवं सुरक्षित रख पाना बहुत मुश्किल था। एक तरफ तो बाहरी आक्रमणकारी लोगों का धर्मपरिवर्तन करवा रहे थे, दूसरी तरफ हिन्दू धर्म में पाखंडवाद और आडम्बरों ने घर कर लिया। जिससे आम लोग धर्म और भक्ति से दूर होते जा रहे थे। ऐसे में रैदास शांत कैसे रहते :-
''वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान,
फिर मै क्यों छोडू इसे पढ़ लू झूठ कुरान.
वेद धर्म छोडू नहीं कोसिस करो हज़ार,
तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार''
बाबर और सिकंदर लोदी जैसे इस्लामिक आक्रमणकारी ये जानते थे कि अगर रैदास ने इस्लाम कबूल कर लिया तो हजारों-लाखों की संख्या में हिन्दू इनके साथ मुस्लिम धर्म अपना लेंगे। इसलिए उन्होंने इसके भरसक प्रयास किये। परन्तु हुआ इसका उल्टा जिस-जिस को रैदास के पास इस्लाम कबूल करने के लिए भेजा जाता रैदास उसी को या तो हिन्दू धर्म में शामिल कर लेते या फिर वो बाबर की तरह उनका अनुयाई बना जाता। रैदास को एक स्थान पर तो मुस्लिम धर्मावलम्बियों से जूझना पड़ रहा था, दूसरा हिन्दू धर्म में भी उन्हें धार्मिक पक्षपात का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने बहुत से स्थानों पर हिन्दू ब्राह्मणों को चेताते हुए ईश्वर की सच्ची भक्ति करने का सन्देश दिया। उनके आध्यात्मिक चिंतन से प्रभावित होकर बहुत से राजा और नवाब भी उनके शिष्य बन गए। उनके विचारों के प्रभाव के कारण ही लोग सगुण के साथ निर्गुण भक्ति की तरफ आकर्षित हुए। रैदास सभी आडम्बरों से परें मानव को सच्चे ईश्वर की भक्ति करने बारे कहते हुए लिखते है :-
हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति।
रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥
सच्चे ज्ञान और सत्संग का प्रकाश
रैदास की आध्यात्मिक चेतना से प्रभावित होकर मीरा ने उनको गुरु मान लिया और उनके बताए मार्ग पर चलकर कृष्ण भक्ति में लीन हो गई। मीरा अपनी आध्यात्मिक यात्रा का सारा श्रेय अपने सतगुरु रैदास को ही देती है :-
मीरा सतगुरु देव की, कर बंदना आस।
जिन चेतन आतम कह्या, धन भगवान रैदास।।
गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुर से कलम भिड़ी।
सतगुरु सैन दई जब आके, ज्याति से ज्योत मिलि।।
केवल मीरा ही नहीं वरन उस समय के कई आध्यात्मिक चिन्तक संत रैदास के विचारों से प्रभावित थे। सदना मीर, रानी झाली, राणा सांगा, संत कबीर, सिकंदर लोधी और बाबर समेत दर्जन भर नाम है, जो रैदास के सत्संग के कारण अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर मानव सेवा में लग गए। आज अगर आंकलन किया जाए तो एक संत के लिए इससे बड़ी उपलब्धी कोई नही हो सकती, कि उसके प्रभाव से लोग परोपकार और सद्कर्मों की ओर बढ़ चले। रविदास इस आकंलन पर सही बैठते है। इतना ही नहीं रैदास ने अपनी वाणियों के माध्यम से वेदो और भगवद्गीता के सच्चे और पवित्र ज्ञान को भी उनकी गूढता से निकालकर आम जन मानस तक सरल और सहज भाषा में पहुँचाने का काम किया, वे लिखते है :-
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।
“मन चंगा तो कठोती में गंगा”
इस एक वाक्य से रैदास के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और दर्शन के प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। गंगा जैसी पवित्र नदी जिसे हिन्दू माता की संज्ञा देते है, जिसमें स्नान मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते है। वह गंगा माँ नीच कुल में जन्मे रैदास की कठोती में आ जाती है और उनके मन में मानवता के प्रति प्रेम की साक्षी बन जाती है। सीना चीर कर बाहर आया यज्ञोपवीत उनके ब्रह्मत्व को बाकि सभी शिखाधारी ज्ञानियों और शास्त्रों के जानकारों से बड़ा कर देता है। जिनके सत्संग ने बहुतों को भव से पार लगा दिया ऐसे संत शिरोमणि गुरु रैदास के पावन जन्मोत्सव पर उनसे आशीर्वाद स्वरूप हम सब मानवमात्र भलाई ही मांग सकते है ।
लेखक :-- दीपक कुमार आर्य (जनसंचार के शोधार्थी है)
यह पढ़ें:
Jaya Ekadashi: करें भगवान विष्णु के प्रिय स्तुति का पाठ, पूर्ण होंगी सभी मनोकामनाएं