Rahul's message is commendable, filled the gap between the leader and the public

राहुल का संदेश तारीफे काबिल, नेता व जनता के बीच भरे खाई

Rahul's message is commendable, filled the gap between the leader and the public

Rahul's message is commendable, filled the gap between the leader and the public

Rahul's message is commendable, filled the gap between the leader and the public- काग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का हरियाणा (Haryana) में आगमन और प्रदेश के कांग्रेस नेताओं का एक मंच पर आना पार्टी के लिए संतोषजनक है, हालांकि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की यह एकजुटता कब तक ठहरेगी, यह सवाल बना रहेगा। बहरहाल, हरियाणा (Haryana) में दो उपचुनाव हार चुकी और भारी गुटबाजी का शिकार पार्टी के नेताओं को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का यह संदेश जोकि वे अपनी राजनीतिक विरोधी भाजपा को दे रहे हैं कि यात्रा के दौरान नफरत के बाजार में वे मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं, पर हरियाणा कांग्रेस (Haryana Congress) के नेताओं को भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

आदमपुर उपचुनाव में जिस प्रकार पार्टी उम्मीदवार के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Ex CM Bhupinder Hooda) और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा जुटे रहे, उससे यह साबित हो गया था कि पार्टी में अन्य नेताओं के सुर अलग ही रहने वाले हैं। हालांकि बीते कुछ दिनों के दौरान राहुल गांधी के स्वागत की तैयारियों में जुटे प्रदेश के कांग्रेसियों की ओर से यह भी सुनने को मिला कि इस समय एकजुटता दिखाना जरूरी है, मतभेद अगर हैं तो उन पर बाद में भी सोचा जा सकता है। बेशक, इस यात्रा का नाम भारत जोडऩे का रखा गया है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यह यात्रा कांग्रेस को भी जोडऩे का काम कर रही है।

राहुल गांधी की यात्रा केरल से शुरू होकर हरियाणा तक पहुंची है, इस दौरान अनेक पड़ाव आए हैं, लेकिन यात्रा अनवरत जारी रही है, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े का चुनाव भी यात्रा के मध्य ही हुआ है, इस दौरान राहुल गांधी यात्रा से समय निकाल कर वहां पहुंचे थे। वे अपने भाषणों में भाजपा और मोदी सरकार पर लगातार हमलावर हैं। उनकी बातों को सभी सुन और समझ रहे हैं, हालांकि आजकल संसद का शीतकालीन सत्र भी चल रहा है और राहुल लोकसभा सांसद हैं।

सवाल यह है कि वे अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के दौरान यात्रा से समय निकाल कर दिल्ली पहुंच जाते हैं लेकिन संसद के सत्र में हिस्सा लेना उचित नहीं समझ रहे। क्या एक राजनेता संसद से बड़ा है? अगर देश संसद का सम्मान नहीं करेगा तो फिर उस लोकतंत्र की महिमा का बखान क्या मतलब रखता है, जिसका गुणगान प्रत्येक राजनेता करता रहता है। राहुल गांधी अगर सत्र में हिस्सा लेकर अपनी बात रखें तो उस नियमावली से खुद को आबद्ध करना होगा जोकि प्रत्येक सांसद के लिए आवश्यक है।

अब यह भी सामने नहीं आ रहा है कि उन्होंने अपनी यात्रा के लिए लोकसभा में अपने अवकाश के संबंध में लिखित में कुछ दिया है या नहीं। यहां गौरतलब यह है कि हरियाणा कांग्रेस ने मुख्यमंत्री से इसका अनुरोध किया था कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र को आगे बढ़ाया जाए, क्योंकि राहुल गांधी की यात्रा हरियाणा आ रही थी। भाजपा गठबंधन नीत सरकार ने कांग्रेस के इस अनुरोध को स्वीकार भी किया। क्या यह माना जाए कि केंद्र सरकार को भी संसद के सत्र को आगे बढ़ा देना चाहिए था, ताकि राहुल गांधी अपनी यात्रा को पूरी कर सकें?

राहुल गांधी ने अपने भाषण में जो बात कही है वह गौर करने लायक है। राहुल गांधी का यह संदेश वाक्य तारीफे काबिल है। उनका यह कहना सही है कि आजकल नेताओं और जनता के बीच खाई बढ़ रही है। जनता का दर्द समझने के लिए नेताओं को कार, हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर का सफर छोडक़र जनता के बीच संपर्क बढ़ाना होगा।

यदि देश के नेता उनके इस संदेश को सही मायने में लेंगे तो देश की भाग्य बदल सकता है और मतदाता नेताओं पर विश्वास करना शुरू कर देंगे लेकिन यह अभी तक देखने को आता है कि  यह हर दौर की कहानी है। नेताओं को जनता की याद तभी आती है, जब चुनाव आते हैं। जिस समय चुनाव आते हैं, नेता हर घड़ी जनता के बीच रहते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव बीतते हैं, सत्ता हासिल होती है, या फिर वे विपक्ष में बैठते हैं, वे या तो विदेश यात्रा पर निकल जाते हैं या फिर अपने आशियानों में खुद को बंद कर लेते हैं। यह अच्छी बात है कि इस मसले पर उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को भी शुमार किया है।

उन्होंने कहा है कि यह बात कांग्रेस ही नहीं सभी पर लागू होती है। दरअसल, आजकल चुनाव में उसी पार्टी की जीत हो रही है जोकि जनता के बीच खुद को रखती है। कांग्रेस के लिए यह विचार का विषय होना चाहिए कि आखिर हिमाचल प्रदेश में उसे कैसे जीत हासिल हो गई और गुजरात में वह क्यों हार गई? कांग्रेस ने बीते सालों में बिहार और पश्चिमी बंगाल के चुनाव भी हारे हैं, वह गोवा में भी हार चुकी है। जबकि इन राज्यों में कभी उसका जनाधार होता था। अब राहुल गांधी इन राज्यों में अपनी यात्रा लेकर भी नहीं गए हैं, यानी इन राज्यों के कांग्रेस समर्थकों की कौन सुनेगा।  

वास्तव में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष को यह जवाब भी देना चाहिए कि अगर पार्टी उन्हें अपना अध्यक्ष बना रही थी तो उन्होंने इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने से मना क्यों कर दिया। भारत जोड़ो यात्रा के समान पहले भी नेताओं ने यात्राएं निकाली हैं, उन यात्राओं के केंद्रबिंदु में रहे नेता को सुनने के लिए व्यापक जनसमूह उमड़ पड़ता था।

अब राहुल गांधी की यात्रा में भी जनसमूह जुड़ रहा है लेकिन उन्हें देखने के लिए ज्यादा। वे बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों की बात कर रहे हैं, हालांकि कांग्रेस की ओर से ऐसा कोई एजेंडा पेश नहीं किया गया है कि अगर वह सत्ता में आएगी तो ऐसी समस्याओं का किस प्रकार निराकरण करेगी। कांग्रेस के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रत्येक विचार को पहले अपने आप पर लागू करे, अगर घर ठीक हो गया तो फिर बाकी जगह भी सब ठीक ही होगा। कांग्रेस नेताओं को राहुल गांधी के इस संदेश कि जहां पार्टी की सरकार है, वहां मुख्यमंत्री और मंत्री-विधायक हर माह पदयात्रा अवश्य करें, पर अगर अमल हुआ तो यह पार्टी का जनाधार मजबूत करेगा। 

 

यह भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें: