Rahul Gandhi role as leader of opposition welcomed

Editorial: नेता विपक्ष के रूप में राहुल गांधी की भूमिका का स्वागत

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Rahul Gandhi role as leader of opposition welcomed

Rahul Gandhi role as leader of opposition welcomed: इस बार के लोकसभा चुनावों के परिणामों ने पूरे देश को चौंकाया है।  इस बार कुछ ऐसा परिवर्तन देखने को मिला है, जोकि अपने आप में अनूठा है। चुनाव से पहले किसने सोचा था कि देश चाहता है कि नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बनें लेकिन विपक्ष भी मजबूत हो। और देश ने अपना यही दृष्टिकोण सामने भी ला दिया जब एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला लेकिन भाजपा को एकल बहुमत नहीं दिया गया। वहीं विपक्ष जोकि एक तरह से छिन्न-भिन्न था, को भी सम्मानजनक जनमत प्रदान किया गया। दो लडक़ों की जोड़ी अब संसद में देश के मुद्दे उठाएगी। इन दो लडक़ों यानी राहुल गांधी और अखिलेश यादव में से एक राहुल गांधी अब नेता विपक्ष की भूमिका में होंगे। राहुल गांधी लंबे समय से राजनीति में हैं, वे कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।

सांसद भी रहे लेकिन इस बार उन्होंने जिस बड़ी जिम्मेदारी को स्वीकार किया है, वह कांग्रेस पार्टी एवं देश के लिए अनूठी बात है। गौरतलब यह है कि राहुल गांधी को अभी तक गंभीर राजनीतिक नहीं माना जाता था, लेकिन दो बार राष्ट्रीय स्तर की यात्राएं करके और साल 2024 के लोकसभा चुनाव में दमदार प्रचार करके उन्होंने अपनी छवि को बदल दिया है। संभव है, यह राहुल गांधी का ही करिश्मा है कि कांग्रेस पार्टी ने इस बार इतना शानदार परिणाम हासिल किया है।

दरअसल, लोकसभा चुनाव परिणामों के साथ ही कांग्रेस के भीतर से इसकी मांग उठने लगी थी कि राहुल को नेता प्रतिपक्ष का पद संभालना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से उनके पास कांग्रेस की कोई जिम्मेदारी नहीं थी। सदन के भीतर पहली बार वह एक अहम पद को संभाल चुके हैं। निश्चित रूप से यह पूरे विपक्ष के लिए भी एक नई बात है। राहुल गांधी अपने बयानों की वजह से हमेशा चर्चित रहे हैं। आखिर देश चलता कैसे है। यह सवाल अहम है। देश में लोकतंत्र है और सभी को कानून सम्मत तरीके से कारोबार करने की इजाजत है। लेकिन राहुल गांधी एक या दो कारोबारियों पर आरोप लगाते आ रहे हैं। नेता विपक्ष की जिम्मेदारी सिर्फ अपने दल या फिर विपक्ष के मुद्दों को उठाने की नहीं है, अपितु पूरे देश के संबंध में भी उन्हें विचार करना होता है।

ऐसे में राहुल के सामने चुनौती होगी कि कैसे पूरे विपक्ष को साथ लेकर चलते हुए रचनात्मक विरोध की भूमिका को आकार देते हैं। गौरतलब है कि कई प्रमुख समितियों और महत्वपूर्ण नियुक्तियों में नेता प्रतिपक्ष प्रतिभागी होता है। नेता प्रतिपक्ष को शैडो पीएम भी कहा जाता है। वह सरकार के मुखिया पीएम की परछाई की तरह होता है, उसके हर काम पर नजर रखता है और देश को इससे अवगत कराता है कि क्या चल रहा है। राहुल गांधी चुनाव के दौरान विपक्ष का असल चेहरा थे। चुनाव के दौरान विपक्ष के सारे दलों को एकजुट रखने के लिए उन्होंने भरपूर प्रयास किए। चुनाव परिणाम पर उसका असर दिखता है। लेकिन नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी केवल कांग्रेस ही नहीं, उन सभी दलों का प्रतिनिधित्व करेंगे, जो इन चुनावों में सरकार के खिलाफ उतरे थे। चुनौती न केवल सदन में विपक्षी दलों की भूमिका को अधिकाधिक प्रभावी बनाने की होगी बल्कि इस प्रभाव का सही दिशा में और उपयुक्त लक्ष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल सुनिश्चित करने की भी है।

गौरतलब है कि राहुल गांधी ने अपनी दो यात्राओं के दौरान जिस प्रकार देश के लोगों से संवाद किया था, उस दौरान उन्हें तमाम आवाजें सुनने को मिली थी। उन यात्राओं ने देश को आंदोलित करने का काम किया था, हालांकि देश की जनता के मन में तमाम प्रश्न उमड़ते रहते हैं। वह अनेक तरह से सोचती है और अंतिम क्षणों में जो निर्णय लेती है, वही अंतिम हो जाता है।

 कांग्रेस ने मोदी सरकार के बीते दस वर्षों के कार्यकाल को अन्याय काल करार दिया था और चुनाव के दौरान भी इसे मुद्दा बनाया गया। संविधान बचाने की लड़ाई का नाम देकर इस मुद्दे पर विपक्ष ने चुनाव लड़ा। हालांकि देश की जनता सब जानती है, जनता को यह भी मालूम है कि वास्तव में संविधान को कब-कब नुकसान पहुंचा है।  दरअसल, कांग्रेस को देश में अन्याय या न्याय की बात करने से पहले खुद के यहां इसकी जरूरत पर बल देना चाहिए। पार्टी के अंदर दिशाहीनता है और उसके नेता उसे छोड़ रहे हैं। बीते वर्षों में अनेक नेताओं ने उससे किनारा कर लिया। कांग्रेस में वन मैन शो का दौर खत्म नहीं हुआ है। स्थिति ऐसी है कि उसे विपक्ष के छिटपुट दलों, जिनका उबार पिछले दस-बारह वर्षों के दौरान हुआ है, के साथ चलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

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