Rahul Gandhi has reached Rae Bareli to take over the legacy.

Editorial: परिवार की विरासत संभालने रायबरेली पहुंचे हैं राहुल गांधी

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Rahul Gandhi has reached Rae Bareli to take over the legacy.

Rahul Gandhi has reached Rae Bareli to take over the family legacy. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दो सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। एक सीट केरल में वायनाड तो दूसरी उत्तर प्रदेश में रायबरेली। वायनाड सीट वह लोकसभा क्षेत्र है, जिससे वे निवर्तमान सांसद हैं, लेकिन रायबरेली सीट वह संसदीय क्षेत्र है, जिससे उनकी माता सोनिया गांधी बीते दो दशक से सांसद रही हैं। कांग्रेस के लिए यह बेहद दुविधापूर्ण रहा है कि वह राहुल गांधी को महज वायनाड से चुनाव लड़वाए या फिर यूपी में अपनी परंपरागत सीटों अमेठी और रायबरेली में से किसी एक से चुनाव लड़वाए। हालांकि अब रायबरेली से नामांकन दाखिल कर राहुल गांधी ने इसकी पुष्टि कर दी है कि वे इसी सीट जोकि गांधी परिवार से जुड़ी है, से चुनाव लड़ेंगे।

हालांकि प्रश्न यही है कि जीतने के बाद राहुल गांधी किस सीट का प्रतिनिधित्व करेंगे, वे वायनाड अपने पास रखेंगे या फिर रायबरेली? क्या कांग्रेस को इसका विश्वास नहीं है कि वह यूपी में रायबरेली या फिर अमेठी सीट जीत सकती है। यह सब इसलिए पूछा जा रहा है, क्योंकि कुछ समय पहले तक अमेठी सीट पर प्रियंका गांधी वढेरा के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन अब इस सीट से कांग्रेस ने केएल शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़े थे, लेकिन वे हार गए थे। अब वे यूपी से चुनाव में जरूर उतरे हैं, लेकिन अमेठी नहीं अपितु रायबरेली से।  

अब राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि राहुल गांधी के अमेठी छोड़ रायबरेली चुनने का अहम कारण सोनिया गांधी की लगातार जीत में छिपा है। 2019 के चुनाव में भले ही राहुल गांधी अमेठी हार गए हों लेकिन सोनिया गांधी ने रायबरेली में परिवार का झंडा बुलंद रखा था। यूपी में कांग्रेस की ये एकमात्र जीत थी। लेकिन 2024 में क्या? क्या राहुल गांधी आसानी से मां की विरासत संभालने में कामयाब रहेंगे? 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को समझें तो सोनिया गांधी ने रायबरेली से आसान जीत दर्ज की थी। हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में उनका जीत का अंतर कम जरूर हो गया था। इस चुनाव में सोनिया गांधी ने करीब 56.41 प्रतिशत के साथ 5 लाख 34918 वोट हासिल किए। वहीं भाजपा उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह काफी कोशिश के बाद ही 38.78 प्रतिशत यानी 3 लाख 67,740 वोट ही हासिल कर सके थे।

इससे पहले सोनिया गांधी ने महज 33 प्रतिशत वोट हासिल कर भाजपा के अजय अग्रवाल को करीब 3 लाख वोटों से मात दी थी। उस चुनाव में सोनिया गांधी को 5 लाख से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि अजय अग्रवाल 1 लाख 73 हजार के करीब वोट ही हासिल कर सके थे। इससे जाहिर है कि 2014 से 2019 के बीच पांच साल में भाजपा ने यहां काफी मेहनत की। जिस पार्टी को 2014 के चुनाव में महज 10.89 प्रतिशत वोट मिले थे, उसी पार्टी ने दिनेश प्रताप सिंह की अगुवाई में 38.78 प्रतिशत वोट तक का सफर तय कर लिया।

खास बात यह है कि दिनेश प्रताप सिंह इस बार भी चुनाव मैदान में हैं। रायबरेली सीट गांधी परिवार का गढ़ कही जाती है। गौरतलब है कि भाजपा उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह पुराने कांग्रेसी नेता हैं। वे कभी सोनिया गांधी के करीबियों में शुमार थे। 2010 में वह कांग्रेस से पहली बार विधान परिषद सदस्य बने थे। फिर 2016 में भी कांग्रेस ने उन्हें एमएलसी बनाया। लेकिन 2017 में यूपी में योगी सरकार आने के बाद सियासी गणित बदल गई। विधानसभा में प्रचंड जीत हासिल करने के फौरन बाद से ही भाजपा ने रायबरेली में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। इसी क्रम में दिनेश प्रताप सिंह 2018 में कांग्रेस का दामन छो? भाजपा का साथ हो लिए। इसके बाद साल 2019 में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर दिनेश प्रताप सिंह ने भाजपा को मजबूती दी।  राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी के सामने आने से दिनेश प्रताप सिंह की दावेदारी में कोई कमी नहीं आने वाली, हालांकि इससे मुकाबला और ज्यादा कड़ा हो गया है। वास्तव में इस बार के लोकसभा चुनाव भाजपा समेत सभी दलों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है।

इस बार के चुनाव में कम वोट प्रतिशत भी चौंका रहा है। कोई नहीं जान पा रहा कि यह कम वोट प्रतिशत क्या गुल खिलाने वाला है। भारतीय मतदाता वोट को भी पैसे की भांति संजो कर रखता है और सही समय पर उसका भुगतान कर देता है। निश्चित रूप से यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के बीच महाभारत है। देखना है, बाजी किसके हाथ लगती है। 

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