राहुल गांधी ने पार कर लिया मील का पत्थर, लेकिन 'यात्रा' अभी बाकी है
भारत जोड़ो यात्रा को मिल चुकी कामयाबी पर इस तपस्या का फल चखना बाकी
Bharat jodo yatra : एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक नया शब्द पढ़ने को मिला। यह शब्द था डीप डेमोक्रेसी (Deep democracy) यह शब्द कहां से उपजा पता नहीं, लेकिन इसे इस्तेमाल किया गया है, कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा के लिए। इसका मतलब कुछ ऐसा है कि लोकतंत्र की गहन धारणा का आभास हो, यह धारणा संविधान में निहित वैचारिक आजादी, विकास की तमाम संभावनाओं की प्राप्ति और निर्भिकता से जीवन जीने की परिस्थितियों का निर्माण है। भारत जोड़ो यात्रा का मकसद कांग्रेस यही बता रही है। राहुल गांधी अपनी हर पत्रकारवार्ता में यही कह रहे हैं कि आज देश में आजादी छिन गई है, बेरोजगारी, गरीबी बढ़ी है। देश का पैसा कुछ लोगों के हाथ में सिमट गया है। नफरत फैलाई जा रही है, तब यह विचार करना जरूरी है कि क्या सच में ऐसा कुछ देश में है या यह सिर्फ कांग्रेस का खुद को चर्चा में लाने का एक माध्यम है।
पहले यात्रा की बात
52 वर्ष की आयु पूरी कर चुके (Rahul Gandhi in bharat jodo yatra) राहुल गांधी ने बीते वर्ष 7 सितंबर को देश के धुर दक्षिण कन्याकुमारी से जब यात्रा को शुरू किया था तो सवाल यही था-क्या यात्रा को कामयाबी मिल पाएगी? और आज जब 10 राज्यों के 52 जिलों को पार कर यह यात्रा श्रीनगर की तरफ बढ़ रही है, तब देश समझ चुका है कि राहुल गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन का मील का वह पत्थर पार कर लिया है, जिसके लिए इतिहास उन्हें याद रखेगा। 3570 किलोमीटर का सफर पूरा करने के बाद यह यात्रा जब अवसान लेगी तो राहुल गांधी कहां होंगे?
तो अर्जुन ने नहीं बताया था आगे क्या करना है
दरअसल, यह सवाल राहुल गांधी से हरियाणा के करनाल में पूछा गया था। और उन्होंने इसका दार्शनिक जवाब दिया था। उन्होंने महाभारत के पात्र अर्जुन का उदाहरण देते हुए उलटे पूछा था कि जब अर्जुन ने चिड़िया की आंख पर तीर मारा, तब क्या उन्होंने बताया था कि अब आगे वे क्या करेंगे? सहज बात है कि अर्जुन एक लक्ष्य को हासिल कर चुके थे और इसके बाद दूसरे लक्ष्य के बारे में सोच रहे होंगे। इस उदाहरण के जरिए राहुल गांधी ने अपने संबंध में बात कही थी। यात्रा के पूरा होने के बाद एक और काम होगा और उसे पूरा करने के बाद एक और काम। कांग्रेस के सामने इस समय अनेक काम हैं, सबसे बड़ा काम पार्टी की गिरती शाख को कायम रखने का है। एक समय पूरे देश में कांग्रेस का एकछत्र राज होता था, लेकिन आज पार्टी द्वीप की भांति सिमट चुकी है।
कांग्रेस के संवाद पर है देश की नजर
भारत जोड़ो यात्रा ने देश को क्या दिया है, इस यात्रा के जरिए कांग्रेस देशवासियों से क्या संवाद कर रही है, इस पर मंथन जारी है। यह माना जा रहा है कि बीते करीब दस वर्षों के दौरान देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक ढांचे में एक बड़ा बदलाव आया है। अब कुछ कहते हुए मन में डर लगता है कि सरकार देख रही है। क्या यह डर स्वाभाविक है? अगर कोई गलत करेगा तो सरकार का डंडा पड़ेगा ही, लेकिन अगर कोई अपनी वैचारिक आजादी जोकि उसे संविधान प्रदान की है, के बूते सरकार और उसके संगठनों की आलोचना करता है, तब भी उसे खौफ में जीना चाहिए?
सबसे ऊपर डीप डेमोक्रेसी नामक जिस शब्द का इस्तेमाल किया गया है, दरअसल, उसकी जड़ें इसी माहौल के खिलाफ लड़ाई का बिगुल प्रदर्शित होती हैं। देश में एक वर्ग ऐसा है जोकि मान रहा है कि अब देश में विचार की वह आजादी खत्म हो गई, जो कभी कांग्रेस की सरकारों के दौरान होती थी, या जो कभी 9 वर्ष पहले तक होती थी।
तो डीप डेमोक्रेसी की चाह रखने वालों की आवाज हैं राहुल
अब राहुल गांधी इसी डर पूर्ण माहौल और डीप डेमोक्रेसी की चाह रखने वाले लोगों की आवाज को अपनी यात्रा के दौरान नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान खोलने का नाम दे रहे हैं। उनसे जब यह पूछा जाता है कि यह यात्रा राजनीतिक है या फिर जन आंदोलन तो वे एक मंजे हुए राजनेता की तरह जवाब देते हैं। वे इसे एक तपस्या का नाम देते हैं, हालांकि उनकी यात्रा में उनके ईद-गिर्द जो नेता चल रहे होते हैं, उनका एकमात्र मंतव्य यात्रा को वोट यात्रा में बदलना है। ऐसे में सवाल यह है कि देश में क्या सच में ऐसा डर का माहौल है या फिर वोट के लिए इसे जुमला बना दिया गया है।
तो डर, नफरत कांग्रेस के नए जुमले हैं
क्योंकि कांग्रेस यह तो कहने से रही कि मोदी सरकार अच्छा कर रही है। यह कार्य तो उसने कोरोना काल में भी नहीं किया, जबकि भारत की स्थिति दुनिया के अन्य देशों की तुलना में काफी बेहतर थी। अगर कांग्रेस यह कहेगी कि मोदी सरकार अच्छा कर रही है तो फिर उसके हाथ में क्या रह जाएगा। राहुल गांधी ने कांग्रेस के चुनाव चिन्ह हाथ को अभय मुद्रा बताया था। उनका कहना था कि भगवान शिव को देखो, उनका हाथ इसी मुद्रा में दिखेगा। तो यह माना जाए कि कांग्रेस अभय मुद्रा में है और देश के लोगों को अभयदान दे रही है, मोदी सरकार की कथित डर, धर्म-जाति के नाम पर बांटने की नीति के खिलाफ।
पहले भी होते रहे हैं धर्मों में झगड़े, दंगे
राहुल गांधी कहते नहीं थक रहे कि भारत जोड़ो और डर के खिलाफ खड़े हो। क्या हिंदू-मुस्लिम और अलग-अलग जाति के लोगों के बीच झगड़े इसी समय हो रहे हैं। क्या आजादी के ठीक बाद भारत-पाक के बंटवारे के दौरान जो कत्लेआम हुआ था, वह इतिहास से मिट चुका है। 84 के दंगे क्यों हुए थे, देश में एमरजेंसी लगाने की नौबत क्यों आई थी। आखिर इन सुलगते सवालों के जवाब देने के बजाय कांग्रेस और राहुल गांधी आज किस तरह के मुद्दे लेकर देश के समक्ष हैं।
अब इस यात्रा में जिस प्रकार से जनसैलाब उमड़ रहा है। लोग राहुल गांधी को देखने, उनसे बात करने पहुंच रहे हैं, वह अद्भुत नजारा पेश करता है। यह तब है, जब वे वोट मांगने के लिए नहीं निकले हैं। तो क्या जनता यह मानती है कि देश में डर का माहौल है और राहुल गांधी इससे छुटकारा दिला सकते हैं। कहा जा रहा है कि युवा बेरोजगार है और डिग्रियां बेकार हो रही हैं। बदलाव लाएगा युवा, नफरत का हल यात्रा बेहतरीन पल, बिकते देश को बचाओ, यात्रा में आओ। मुझे गर्व है, मैं बना इतिहास का हिस्सा।
यात्रा का गुणा भाग क्या है
वास्तव में भारत जोड़ो यात्रा का गुणाभाग क्या है, इसका पता अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में लगेगा। राजनीतिक यात्राएं मकसद विहीन तो होती ही नहीं हैं, वे तपस्या होती हैं लेकिन किसी मंतव्य के लिए। राहुल गांधी के पास कौनसी जादू की छड़ी है, जिसके घूमाने से देश की समस्याएं छूमंतर हो जाएंगी। राजनीतिक विचारधारा लोगों को किसी दल विशेष के प्रति लगाव रखने को मजबूर करती हैं। यह मानवीय स्वभाव है कि अगर उसे कहीं से उम्मीद नजर नहीं आती तो वह दूसरी तरफ मुड़ जाता है। हालांकि इस पर बहस जारी रखने की जरूरत है कि क्या वास्तव में देश में डर, नफरत का माहौल है या फिर देश बदल चुका है और बदलाव से नाक भौं सिकोड़ने वाले यह डर फैला रहे हैं?
-लेखक पंजाब यूनिवर्सिटी में लॉ स्टूडेंट हैं।