रघुराम राजन ने दिया था ₹10000 के नोट का छापने का आइडिया, क्यों हुआ था रिजेक्ट
2000 Currency Note Ban
2000 Currency Note Ban: रिजर्व बैंक की तरफ से 2000 रुपये के नोट को चलन से वापस लेने के फैसले के बाद विवाद गहरा रहा है. आरबीआई (RBI) का कहना है कि साल 2016 में शुरू किए गए 2000 रुपये के नोटों का मकसद नोटबंदी के बाद इंडियन इकोनॉमी को जल्द से जल्द प्रचलन में लाना था. केंद्रीय बैंक की तरफ से अक्सर कहा जाता रहा है कि वह सर्कुलेशन में हाई वैल्यू वाले नोटों को कम करना चाहता है. यही कारण है कि आरबीआई ने पिछले चार सालों में 2000 रुपये के नोट की छपाई बंद कर दी.
चुनाव में बढ़ जाता है नकदी का उपयोग (The use of cash increases in elections)
हालांकि, आरबीआई के इस कदम पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि 2,000 रुपये नोट ने काला धन रखने वालों को अपना धन जमा करने में मदद की. सरकार और केंद्रीय बैंक की तरफ से इस कदम का कारण नहीं बताया गया. विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला देश में राज्य और आम चुनावों से पहले आया है जब नकदी का उपयोग आमतौर पर बढ़ जाता है.
यह था 10000 का नोट लाने के पीछे का सुझाव (This was the suggestion behind bringing 10000 note)
नोटबंदी और 2000 रुपये का नोट बाजार में आने से पहले एक और विवादास्पद आइडिया सामने आया था- यह था 10,000 रुपये का नोट. पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के समय आरबीआई की तरफ से 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट पेश करने का सुझाव दिया गया था. लोक लेखा समिति को आरबीआई की तरफ से दी गई जानकारी से पता चला कि केंद्रीय बैंक ने अक्टूबर 2014 में इस बारे में सिफारिश की थी. 10000 रुपये का नोट लाने के पीछे यह आइडिया था कि 1,000 रुपये के नोट का मूल्य महंगाई से कम हो रहा था.
2,000 रुपये के नोटों की नई सीरीज पेश की (New series of Rs 2,000 notes introduced)
इस सुझाव के करीब ड़ेढ साल बाद सरकार ने मई 2016 में आरबीआई को 2,000 रुपये के नोटों की नई सीरीज पेश करने के अपने निर्णय के बारे में जानकारी दी. इसके लिए प्रिंटिंग प्रेसों को जून 2016 में निर्देश दिये गए. बाद में, तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार ने 5,000 और 10,000 रुपये के नोटों की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया.
बड़े नोटों को रखना काफी मुश्किल (Very difficult to carry large notes)
बाद में रघुराम राजन ने कहा था कि जालसाजी के डर से बड़े नोटों को रखना मुश्किल है. सितंबर 2015 में उन्होंने कहा था, 'यह देखते हुए हमें अपने पड़ोसी मुल्क से चिंता है. देश की सीमा पर जालसाजी को लेकर चिंता बनी हुई है. इन नोटों को लाने के लिए ऐसे तर्क भी दिये गए कि हमारे पास बहुत मोटा बटुआ है, क्योंकि हमें सामान्य भुगतान करने के लिए बहुत से नोटों की जरूरत होती है.'
आपको बता दें देश में 1938 में 10000 रुपये का नोट शुरू हुआ था. बाद में इसे 1946 में चलन से बाहर कर दिया गया. 1954 में इसे फिर से पेश किया गया और इस बार 1978 में इसे डिमोनिटाइज कर दिया गया. हाई वैल्यू वाले नोट अधिकतर उच्च महंगाई दर वाले देशों में प्रिंट किये जाते हैं. यह स्थिति तब आती है जब करेंसी का मूल्य इतना कम हो जाता है कि छोटी खरीद के लिए भी बड़े नोटों की जरूरत होती है.
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