अब नहीं कर सकेंगे जाली हस्ताक्षर से धोखोधड़ी जालसाज़

Commit Fraud by using Fake Signatures

Commit Fraud by using Fake Signatures

पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ ने जाली और वास्तविक हस्ताक्षरों की पहचान करने के लिए एआई मॉडल विकसित किया -

 जालसाजो की अब खैर नहीं 

अर्थ प्रकाश / खुशविंदर धालीवाल 5 दिसम्बर : Commit Fraud by using Fake Signatures: पंजाब विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग और फोरेंसिक विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने असली और जाली हस्ताक्षरों की पहचान करने के लिए एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित मॉडल विकसित किया है। भारत सरकार के कॉपीराइट कार्यालय ने एआई मॉडल को कॉपीराइट पंजीकरण प्रदान किया है। इस मॉडल का उपयोग महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर जालसाजी जैसे धोखाधड़ी की पहचान करने के लिए किया जा सकता है।

एआई मॉडल विकसित करना प्रो. केवल कृष्ण का विचार था ,जोकि इस सारे प्रोजेक्ट के सृजनहार है देश के  प्रसिद्ध फोरेंसिक वैज्ञानिक हैं और उन्होंने विभिन्न आपराधिक जांच विधियों को तैयार किया है। श्री राकेश मीना अपने पीएचडी शोध के लिए हस्ताक्षर सत्यापन पर काम कर रहे हैं, जो अपने पीएचडी शोध के लिए इस मॉडल का उपयोग करेंगे।

Commit Fraud by using Fake Signatures

एआई मॉडल को प्रो. केवल कृष्ण और उनकी शोध टीम अर्थात् श्री राकेश मीना, सुश्री दामिनी सिवान, सुश्री पीहुल कृष्ण, सुश्री अंकिता गुलेरिया, सुश्री नंदिनी चितारा, सुश्री रितिका वर्मा, सुश्री आकांक्षा राणा और सुश्री आयुषी श्रीवास्तव द्वारा विकसित किया गया था। प्रो. अभिक घोष और डॉ. विशाल शर्मा ने भी इस मॉडल को बनाने में विद्वानों का मार्गदर्शन किया। पीहुल कृष्ण यूआईईटी की पूर्व छात्रा हैं और अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी, हिमाचल प्रदेश के स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी शोध छात्रा हैं।

एआई मॉडल एसवीएम (सपोर्ट वेक्टर मशीन) पर आधारित है, जो एक पर्यवेक्षित मशीन लर्निंग एल्गोरिदम है जो व्यावहारिक स्थितियों में वास्तविक और जाली हस्ताक्षरों में अंतर करता है। मॉडल ने 1400 हस्तलिखित हस्ताक्षरों (700 असली और 700 जाली) पर वास्तविक और जाली हस्ताक्षरों को वर्गीकृत करने में 90% की सटीकता प्राप्त की है l

एआई मॉडल अद्वितीय है और इसका उपयोग फोरेंसिक परीक्षाओं और आपराधिक जांच में किया जा सकता है जहां हस्ताक्षर जालसाजी शामिल है। फॉर्म, चेक, ड्राफ्ट, ट्रेजरी दस्तावेजों, संपत्ति के पंजीकरण और अन्य बैंक दस्तावेजों आदि पर हस्ताक्षरों की पहचान करने में मॉडल की प्रत्यक्ष उपयोगिता है। यह निश्चित रूप से फोरेंसिक वैज्ञानिकों और दस्तावेज़ परीक्षकों के कीमती समय को बचाएगा और जाली और असली हस्ताक्षरों की पहचान करने के लिए उनके काम के बोझ को कम करेगा। कुलपति, प्रोफेसर रेणु विग ने इस तरह के व्यावहारिक मॉडल को विकसित करने के लिए टीम को बधाई दी और पंजाब विश्वविद्यालय के अन्य शोधकर्ताओं और संकाय सदस्यों को अनुसंधान में एआई के ज्ञान का उपयोग करने और नए विचारों को उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया।

पंजाब विश्वविद्यालय के मानव विज्ञानं व फॉरेन्सिक विज्ञानं संस्थान की टीम की वर्षो की मेहनत के बाद आज हमने जो अविष्कार किया है आज भारत सरकार ने इसे कॉपीराइट दे दिया ये पूरी तरह से पंजाब विश्व विद्यालय का उत्पादन है जो असली और नकली हस्ताक्षर की पहचान करने में 100% सटीक है इसका उपयोग फॉरेन्सिक लैबस, बैंक्स या ऐसा कोई भी संस्थान जहाँ जाली हस्ताक्षर कर जलसाज़ी की जा सकती हो वहाँ उपयोगी होगा भविष्य में यदि ज़रूरत पड़ी तो बड़े स्तर पर उत्पादन कर पंजाब विश्व विद्यालय का राजस्व भी बढ़ाया जा सकता है 

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प्रोफेसर केवल कृष्ण 
प्रोजेक्ट इंचार्ज