Editorial: पंजाब के किसान अब भी अड़े, हरियाणा के मान गए
- By Habib --
- Monday, 22 Jul, 2024
Punjab farmers are still adamant
Punjab farmers are still adamant, Haryana farmers have agreed: एक तरफ पंजाब के किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली बॉर्डर पर जाने को आतुर हैं, वहीं हरियाणा के किसानों ने राज्य सरकार के साथ बैठक में आंदोलन न करने की मंशा जाहिर की है। हरियाणा के किसान सरकार से हुई बातचीत से संतुष्ट हैं। यह विडम्बनापूर्ण है कि किसानों की मांगें एक हैं तो फिर वे राज्य-राज्य बंटे हुए क्यों हैं। क्या पंजाब के किसानों की मांग अलग हैं या फिर हरियाणा के किसानों को कोई समस्या नहीं है।
वास्तव में इस प्रकरण में राजनीतिक निहित स्वार्थ भी शामिल हैं, यह तब है जब पंजाब के किसान दिल्ली जाने को कमर कसे हुए हैं और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से हरियाणा सरकार को शंभू बॉर्डर खोलने के आदेश दिए जा चुके हैं। बेशक, ऐसे मामलों में दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में हरियाणा सरकार के इस तर्क को क्यों नहीं समझा जा रहा है कि किसानों की मंशा दिल्ली बॉर्डर पर जाकर समस्या खड़ी करना है और यह सभी जानते हैं। राज्य सरकार का काम अपने प्रदेश में व्यवस्था कायम करना होता है, और इस मामले में प्रदेश सरकार यही कर रही है।
हरियाणा में संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से सरकार के उच्चाधिकारी के साथ बैठक की गई है। इस बैठक के बाद किसानों ने जिन मांगों को सामने रखा, उनके समाधान का आश्वासन मिलने का दावा किया गया है। निश्चित रूप से किसानों की मांगों को पूरा किया जाना चाहिए लेकिन यह भी जरूरी है कि किस प्रकार मांगों को उठाया जा रहा है। पंजाब के किसानों की ओर से एमएसपी की सरकारी गारंटी की मांग की जा रही है, जोकि आज के समय में असंभव जान पड़ती है। क्योंकि अगर सरकार ने यह फैसला कर लिया कि उसे किसान का प्रत्येक दाना खरीदना है तो देश के गोदामों, दुकानों और सार्वजनिक मंडियों में कहीं पैर रखने तक की जगह नहीं होगी।
बेशक, केंद्र सरकार ने भी इस मामले में बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी किसानों को इससे संतुष्टि हासिल नहीं हुई है और वे अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। अदालत का यह कहना सर्वथा उचित ही है कि किसानों का हक है कि वे आंदोलन करें, ऐसे में उन्हें नहीं रोका जा सकता। लेकिन मामला यही है कि आखिर किसान जत्थेबंदियां हालात को बेकाबू करने के लिए क्यों जा रहे हैं। उनका कहना है कि वे वहां जाकर शांतिपूर्वक एक जगह बैठ जाएंगे। क्या इस पर विश्वास किया जा सकता है, क्योंकि हजारों की तादाद में ट्रैक्टर-ट्राली दिल्ली के चारों तरफ घेरा डाल लेंगी। इससे पहले भी यह हो चुका है। किसानों के आंदोलन की वजह से व्यापारियों के काम-धंधे और आम आदमी का जीवन प्रभावित हो जाता है। यह समझने की जरूरत है कि आंदोलन किया जाना है, लेकिन उससे जनता को परेशानी देने का हक आखिर किसी को कैसे मिल गया।
गौरतलब है कि इससे पहले पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को शंभू बॉर्डर को खोलने के आदेश दिए थे। सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाह रही है, लेकिन शंभू बार्डर पर ही एक युवा किसान की मौत के मामले की सुनवाई चल रही है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को शंभू बॉर्डर को खोलने के भी आदेश दिए। हालांकि अब सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि यह आदेश नहीं है, महज ऑब्जर्वेशन है। बेशक, ऐसा है लेकिन जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मामले में टिप्पणी की गई है, वह वस्तुस्थिति का सही आकलन संभव है, नहीं है।
हाईकोर्ट की ओर से इससे पहले किसानों के ही एक मामले में यह कहा जा चुका है कि सडक़ को नहीं रोका जा सकता। आखिर यह भी कैसे मान कर चला सकता है कि किसान सिर्फ नारे लगाएंगे और चले जाएंगे। पंजाब से जो किसान दिल्ली जाना चाहते हैं, वे ऐसा बंदोबस्त करके चलते हैं कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, वे वहां से नहीं हटेंगे।
क्या इसकी जरूरत नहीं है कि किसान आंदोलनकारी अपनी जिद पर नरम हों और हालात को सामान्य बनाने में सहयोग करें। वास्तव में एक राज्य में कानून और व्यवस्था को बनाए रखना संबंधित सरकार की जिम्मेदारी है, निश्चित रूप से सरकार को इसकी तैयारी करनी होगा कि आंदोलनकारी किसानों की वजह से राज्य एवं दिल्ली के आसपास के हरियाणा के इलाके में समस्या पैदा न हो। दिल्ली में केंद्र सरकार एवं हरियाणा में प्रदेश सरकार भी एक ही दल की है। ऐसे में राज्य सरकार, केंद्र के समक्ष समस्या पैदा नहीं होने देना चाहेगी।
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