Protecting the life of farmer leader Dallewal should be of utmost importance

Editorial: किसान नेता डल्लेवाल के जीवन की रक्षा हो सर्वोपरि

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Protecting the life of farmer leader Dallewal should be of utmost importance

Protecting the life of farmer leader Dallewal should be of utmost importance: आमरण अनशन का अभिप्राय आंदोलन से होता है, न कि किसी को धीमी मौत मरने के लिए छोड़ देने से। एक किसान नेता अगर बीते 45 दिनों से बगैर कुछ भी खाए अगर अपनी मांगों को लेकर हठयोग कर रहे हैं और खुद सुप्रीम कोर्ट उनके स्वास्थ्य पर नजर रखे हुए है। इसके बावजूद केंद्र सरकार की ओर से उनसे बातचीत की कोशिश तो दूर अगर उसका संकेत तक नहीं दिया गया है तो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का स्वास्थ्य अब और ज्यादा बिगड़ गया है। इस तरह की सूचनाएं बेहद द्रवित करने वाली है कि अब वे पानी तक नहीं ले पा रहे और जैसे ही उन्हें पानी दिया जाता है, वे इसे उल्टी कर देते हैं। इसी प्रकार वे अब करवट तक नहीं ले पा रहे, वहीं उनके पैरों को ऊंचा करना पड़ रहा है, ताकि उनके मस्तिष्क तक रक्त पहुंच सके। इसके बावजूद यह बात निराशाजनक है कि न पंजाब सरकार उन्हें अस्पताल पहुंचा सकी है, और न ही किसान आंदोलनकारी इसकी हिमायत कर रहे हैं कि पहले उनकी जान पर आए संकट को खत्म किया जाए। क्योंकि जान रही तो आगे आंदोलन जारी रखा जा सकेगा। भारत जैसे देश में यह मामला काफी संगीन हो गया है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी को भी अपनी मांगों और जायज बात के लिए आंदोलन एवं अनशन करने का हक है, लेकिन यहां की स्थिति तो यह हो गई है कि 45 दिन बीतने के बावजूद कोई भी उत्तरदायी यह पूछने के लिए नहीं आया है कि मांगों को लेकर कोई रूपरेखा बना ली गई है, आप अपने अनशन को खत्म कीजिए और हम विचार करने को तैयार हैं।

 डल्लेवाल एक सच्चे किसान योद्धा हैं, वे किसान बिरादरी के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा चुके हैं। यह अपने आप में आज के समय में गांधीगिरी का अनूठा उदाहरण है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अनेक बार ऐसे अनशन किए। गांधी जी खुद ऐसे अनशनों के लिए विख्यात थे। लेकिन आज जैसे ऐसे अनशन बिल्कुल भी गंभीर नहीं रह गए हैं। इसकी वजह राजनीति में आई निम्नता को माना जाए या फिर विभिन्न स्तरों पर कायम हुए स्वार्थ। क्या किसानों की मांगें इतनी भी दुरूह हैं कि उन पर विचार नहीं किया जा सकता। बीते दिनों ऐसी रपट सामने आई थी कि केंद्र सरकार एमएसपी को लेकर कमेटी बना रही है, जोकि विभिन्न समूहों से इस पर विचार लेगी। बेशक, इस तरह के प्रयास किए जाने चाहिए लेकिन सबसे पहले हमें किसी की जान को बचाने की कोशिश होनी चाहिए। आखिर सभी पक्ष किसी अनहोनी की सूचना मिलने के इंतजार में क्यों हैं।

किसान आंदोलनकारी क्यों चाह रहे हैं कि ऐसा कुछ दुखद घटे और उसके बाद उन्हें केंद्र पर तोहमत लगाने का अवसर मिल जाए। चुनाव में जिसे भुनाया जा सके। वहीं पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्पष्ट निर्देश हैं कि डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराया जाए, लेकिन इन आदेशों की भी अभी पालना नहीं हुई है। यह भी कितना खूब है कि किसान आंदोलनकारी सुप्रीम कोर्ट से इसकी मांग कर रहे हैं कि वह एमएसपी को लागू करे, जबकि कोर्ट का कहना है कि वह ऐसा आदेश नहीं दे सकता। वहीं केंद्र सरकार की ओर से अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया है। आखिर सभी पक्ष अपनी-अपनी भूमिका से क्यों बंधे हैं, यह सब इतना जटिल क्यों है। बतौर इंसान हम भावनाओं के पुतले हैं, लेकिन व्यवहारिक रूप से हमारा जीवन इतना जटिल है कि किसी की मांगों पर हम विचार नहीं कर सकते और किसान एवं किसानी को बेहतर बनाने के लिए कुछ निर्णायक फैसले नहीं ले सकते। जबकि उद्योग और बाकी काम-धंधों के लिए निरंतर फैसले लिए जाते और उन्हें लागू किया जाता रहता है। यह आरोप क्या सच जान नहीं पड़ता कि किसानों के प्रति सरकारों को कोई मोह नहीं है, जबकि किसान इस देश का अन्नदाता है।

अगर कभी प्याज, टमाटर जैसी सब्जियों पर संकट जा जाए तो देश में कोहराम मच जाता है, सरकारें गिर जाती हैं। लेकिन इन्हीं सब्जियों को उगाने वाले किसानों की जिंदगी में झांकने की कोई कोशिश नहीं करता। केंद्र सरकार को चाहिए कि इस मामले का बीच का रास्ता निकाला जाए। लेकिन तब तक किसान नेता डल्लेवाल के स्वास्थ्य की सुरक्षा हो और उन्हें अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ मिले। राजनीति की निर्ममता में उनके जीवन की बाजी नहीं लगाई जा सकती, संभव है संवेदनशीलता से इस पर विचार होगा। खेत, किसान हमारी निधि हैं, उनको सर्वोपरि रखा जाना आवश्यक है। 

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