Situation abnormal due to pollution

Editorial: प्रदूषण से हालात असामान्य, कब निकलेगा स्थायी समाधान

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Situation abnormal due to pollution

Pollution causes abnormal conditions, when will a permanent solution be found: आजकल दिल्ली, हरियाणा और पंजाब, चंडीगढ़ के आसमान में जो फॉग छाया है, क्या उसे प्राकृतिक कहा जा सकता है? आजकल धूप नहीं निकल रही है और सबसे चिंता की बात यह है कि प्रत्येक वर्ष दिवाली के बाद ऐसा ही नजारा इस पूरे इलाके में देखने को मिलता है। ऐसे में वह कौन है, जिसे पर्यावरण की चिंता करनी चाहिए। क्या यह दायित्व सिर्फ अदालत का है। निश्चित रूप से सरकारें भी अपने प्रयासों में लगी हैं, लेकिन क्या जनता को सीधे अदालत रोक सकती है।

यह कार्य सरकार के हिस्से में आता है। हालांकि ऐसा देखने में आ रहा है कि सरकारें अपने इस दायित्व को पूरा नहीं कर पा रही हैं, कि प्रदूषण की रोकथाम की जा सके। अब अगर सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई, तो इसे समझा जाना चाहिए। क्योंकि इस बार दिवाली पर पटाखे जलाने पर रोक जैसी बात सामने आ रही थी, लेकिन फिर हर बार की तरह खूब पटाखे फोड़े गए हैं और पूरे जोश से दिवाली का पर्व मनाया गया है। क्या हम दिवाली इसलिए ही मनाते हैं कि बाद में प्रदूषण की मार भी झेलें। पटाखों की रोकथाम के मामले में अक्सर त्योहार आ जाते हैं। यह धर्म का मामला भी बन जाता है, कहा जाता है कि एक धर्म के लोगों को पटाखे फोड़ने से रोक दिया जाता है, जबकि दूसरे धर्म पर ऐसी पाबंदी नहीं होती। हालांकि इस बीच हम यह भूल जाते हैं कि आजकल दिवाली एक धर्म के लोग नहीं मनाते अपितु पूरा देश मनाता है क्योंकि इसमें बाजार भी शामिल हो गया है। बाजार ही कहता है कि किस प्रकार के पटाखे वह लेकर आ रहा है और वही यह तय करता है कि कौन कितने बजे दिवाली मनाएगा और फिर पटाखे फोड़ेगा।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस बार पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए यह भी कहा है कि ऐसा माना जाता है कि कोई भी धर्म किसी भी ऐसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता, जो प्रदूषण को बढ़ाती है या लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाती है। पीठ का कहना कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

इस भी दिवाली के बाद विभिन्न शहरों में एक्यूआई का स्तर इतना गिर गया कि सांस लेने में दिक्कत महसूस की गई। क्या सच में त्योहार इसी तरह की मुसीबत झेलने के लिए रह गए हैं। आखिर किसने रोका है, खुशी और उल्लास मनाने से, लेकिन प्रश्न यही है कि क्या यह खुशी पटाखे फोड़ने से ही बढ़ती है, जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और हवा प्रदूषित हो जाती है।

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। मालूम हो, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ओर से भी बयान आया था, जिसमें उसने कहा था कि दिल्ली एनसीआर में नवंबर महीने में पराली के धुएं से जिस प्रकार गैस चैंबर जैसे हालात बनते हैं, उसके लिए अकेले एक राज्य जिम्मेदार नहीं है। प्रत्येक वर्ष पंजाब, हरियाणा के किसानों पर आरोप लगते हैं कि उनकी वजह से राजधानी दिल्ली में धुएं की वजह से समस्या पैदा हो जाती है। क्या हरियाणा पर इसका दोषारोपण किया जाए या फिर यूपी पर। या फिर किसी अन्य राज्य पर। बेशक, हरियाणा की ओर से तमाम प्रयास किए गए हैं, वहीं पंजाब ने भी सक्रियता दिखाई है, लेकिन फिर भी पराली जलाने से हुए संकट का समाधान नहीं हो पाता।

दरअसल, यह मामला जिस प्रकार गोल-गोल घूम रहा है, उस के स्थायी समाधान की जरूरत है। स्वास्थ्य के लिए अगर पटाखों और दूसरे अनावश्यक प्रदूषण कारकों पर अगर रोक लगानी पड़े तो इसमें बुराई ही क्या है। धर्म और रवायतों के नाम पर हानिकारक प्रथाओं की रोकथाम जरूरी है।  

 

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