Political rivalry in Maharashtra

महाराष्ट्र में राजनीतिक रंजिश

Political rivalry in Maharashtra

Political rivalry in Maharashtra

महाराष्ट्र और देश के दूसरे राज्यों में आजकल हनुमान चालीसा और अजान को लेकर जैसी बातें घट रही हैं, वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं। राजनीति अपनी जगह है, लेकिन धर्म की आड़ में जैसा खेल खेला जा रहा है, वह सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा रहा है। हालांकि महाराष्ट्र में कभी धर्म की राजनीति की अगवा रही शिवसेना गठबंधन सरकार जिस प्रकार हनुमान चालीसा पढ़ने पर ही कुपित होकर विरोधियों को जेल भेज रही है, वह सवाल खड़े कर रहा है। कहते हैं, दुर्भावना की राजनीति हो रही है, लेकिन यहां जैसा घटनाक्रम सामने आ रहा है, उसमें लगता है यह राजनीति पूरी तरह से किसी का चरित्र, उसकी सोच और स्वरूप को खत्म करने की है। सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा का जुर्म अदालत ने यह माना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी की, लेकिन अदालत का कहना है कि राणा दम्पति पर देशद्रोह का मामला नहीं बनता। दरअसल, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आवास के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने की चेतावनी देने के बावजूद राणा दम्पति ने इसे अंजाम नहीं दिया था और इसे स्थगित कर दिया था। बावजूद इसके मुंबई पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और देशद्रोह का आरोप लगाते हुए उन्हें जेल भिजवा दिया। आखिर यह द्वेषपूर्ण राजनीति का उदाहरण नहीं है, आखिर गठबंधन सरकार ने ऐसा किस मंतव्य से किया।

मुंबई की विशेष अदालत ने राणा दंपती को जमानत दे दी है, और कहा कि भादंसं की धारा 124 ए के तहत देशद्रोह का मामला नहीं बनता है। दरअसल, मुंबई की अदालत के इस फैसले पर राजनीतिक टिप्पणी की गई है। यह टिप्पणी भी शिवसेना एक राजनेता की ओर से आई है। पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इसे राहत घोटाले का नाम दिया है। वे यहीं नहीं रूके हैं, उन्होंने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि केंद्र को देखकर लगता है कि ब्रिटिश शासन बेहतर था। देश में रिलीफ घोटाला चल रहा है, इसके कई पहलू हैं। अपराध व आरोप सिर्फ हमारे खिलाफ सिद्ध हो रहे हैं, लेकिन ऐसे ही आरोप अन्य के खिलाफ साबित क्यों नहीं हो रहे हैं? आखिर राउत के इस बयान के क्या मायने हैं? क्या इसका मतलब यह है कि अदालत ने राणा दंपती को जमानत का फायदा पहुंचाया है। क्या यह माना जाए कि देशद्रोह के आरोपों को स्वीकृति न देकर अदालत ने राणा दंपति की मदद की है। बेशक, किसी अदालत में मामला जाता है तो यह अदालत को तय करना होता है कि लगाए गए आरोपों पर केस आगे बढ़ाना है या नहीं। इस समय राणा दंपति को जमानत देते हुए अदालत ने यही पाया। लेकिन इस मामले में राउत की टिप्पणी अदालत की कार्यवाही में दखल प्रतीत होती है। महाराष्ट्र और मुंबई में कुछ भी हो तो वह उद्धव ठाकरे सरकार के समर्थन में होना चाहिए, लेकिन अगर कुछ विपरीत होता है तो यह सरकार के खिलाफ देशद्रोह होगा।  

राणा दंपती को 23 अप्रैल को मुंबई की खार पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उन पर भादसं की धारा 124 ए और 153 ए के तहत दो समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने के आरोप में देशद्रोह का केस दायर किया गया था। आखिर मुख्यमंत्री के आवास के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने से कैसे देशद्रोह हो सकता है और यह दो समुदायों के बीच द्वेष पैदा करने की बात भी कहां है। शिवसेना को अपनी गठबंधन सरकार की चिंता है, लेकिन क्या वह यह समझ पा रही है कि ऐसे अन्यायपूर्ण और औचित्यहीन मामलों के जरिए वह किस प्रकार महाराष्ट्र में अपने लिए हालात बिगाड़ रही है। आजकल मुंबई में हालात बेहद तनावपूर्ण हैं और भाजपा-शिवसेना कार्यकर्ताओं के बीच तो तकरार कायम है ही, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख एवं उद्धव ठाकरे के रिश्ते में चचेरे भाई राज ठाकरे भी मुंबई में मस्जिदों से लाउडस्पीकर लगाकर अजान देने के खिलाफ चेतावनी अभियान चलाए हुए हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले शिवसेना नेता राउत ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा भाजपा नेता किरीट सोमैया को विक्रांत युद्धपोत के संरक्षण के लिए चंदा जुटाने में हेराफेरी के मामले में राहत देने पर टिप्पणी की थी। राउत ने तब कहा था कि कैसे सिर्फ एक पार्टी के लोगों को कोर्ट से राहत मिल रही है? इस टिप्पणी को लेकर इंडियन बार एसो. ने उनके खिलाफ हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है। जाहिर है, राणा दंपति को जमानत देने के मामले में भी राउत की टिप्पणी के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत है। रवि राणा पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के बारे में बेहद आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। ऐसा करके उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा को पार कर लिया। अभिव्यक्ति के अधिकार के आधार पर इस तरह के अपमानजनक और आपत्तिजनक शब्दों का उपयोग नहीं किया जा सकता है, लेकिन फिर भी राणा दंपति पर देशद्रोह का आरोप लगाने के लिए यह कारण पर्याप्त नहीं है।  

मौजूदा दौर में छद्म धर्मनिरपेक्षता का आवरण हटता नजर आ रहा है। तुष्टिकरण की नीति के सहारे अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते रहे राजनीतिक दल आज खुद को संकट में पा रहे हैं। उन्हें लगने लगा है कि एक वर्ग की भावनाएं अगर उनके प्रति कठोर हो गई हैं तो दूसरे पक्षों को अपने साथ मिलाते हुए चलो। महाराष्ट्र में चल रही राजनीतिक रंजिश को जनता को समझना चाहिए और समय आने पर इसकी जवाबतलबी की जानी चाहिए।