Players will get complete justice only

Editorial:खिलाड़ियों को पूरा न्याय तब मिलेगा, जब सच साबित होगा

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Players will get complete justice only

Players will get complete justice only, when proven true भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष एवं भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज कर ली। यह अपने आप में अचंभित करने वाली बात है कि जब देश देश का कानून सभी के लिए समान है, तब एक सांसद एवं कुश्ती महासंघ जैसे भारी भरकम पद पर बैठे व्यक्ति पर केस दर्ज करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को सामने आना पड़ा है। अगर खिलाड़ियों के पास कोई शिकायत है तो पुलिस ने जनवरी में ही क्यों नहीं केस दर्ज कर उसकी जांच शुरू की।

हालांकि केंद्र सरकार ने इस संबंध में एक कमेटी का गठन किया, उस कमेटी ने आरोपों की जांच शुरू की और फिर उस कमेटी की रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई। क्या यह सब किसी को बचाने की कवायद नजर नहीं आती। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पर आरोप लगाने वाली महिला खिलाड़ी सामान्य नहीं हैं, उन्होंने विश्व पटल पर देश का मान बढ़ाया है। इन खिलाडिय़ों ने खेल में देश के लिए पदक जीते हैं, क्या यह उनका स्वार्थ समझा जाए? नहीं, यह उनका जुनून था, अगर किसी नेता को कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद पर बने रहने का स्वार्थ है तो फिर इन खिलाडिय़ों को अपने स्वाभिमान और देश के मान-सम्मान के लिए खेलने और लडऩे का अधिकार है।

कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण पर महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोप गंभीर है। खेल संघों में महिला खिलाडिय़ों के साथ क्या होता है, यह रहस्य ही बना रहता है। टीम में चयन के नाम पर उन्हें किन परिस्थितियों से गुजर कर अवसर मिलता है, यह भी वही जानती हैं। आगे बढऩे की चाह या फिर हालात से टकराने की मंशा उन्हें हो सकता है, ऐसी परिस्थितियों की अनदेखी करने को विवश करें लेकिन यह तय है कि खेल संघों में पुरुष खिलाडिय़ों या फिर चयनकर्ताओं की ही चलती है।

भारतीय कुश्ती महासंघ में लंबे समय से एक ही व्यक्ति का काबिज होना भी सवाल खड़े करता है, लोकतंत्र में बहुमत के सामने सक्षमता भी बौनी सिद्ध हो जाती है। अगर किसी के पास कुबेर के खजाने से भी ज्यादा धन दौलत है तो फिर उसके लिए हर पद बच्चों के खिलौनों की भांति हो जाता है। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह अपने प्रभाव से वर्ष 2011 के बाद से इस पद पर काबिज हैं। अब बेशक, इस पर सवाल नहीं उठाए जा रहे, लेकिन उन पर लगे आरोपों की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? क्या महिला पहलवानों ने उनके खिलाफ झूठी शिकायतें दी हैं, आखिर ऐसा क्यों किया जाएगा?

हर आपराधिक मामले में आरोपी खुद के बचाव के तरीके ढूंढ़ता है, वह अपने ऊपर लगे आरोपों के संबंध में विरोधियों को जिम्मेदार ठहराता है या फिर शिकायतकर्ता को ही कठघरे में खड़ा करने की चेष्टा करता है। लेकिन वह सच्चाई जोकि शिकायतकर्ता के जेहन में दर्ज होती है, को एकाएक स्वीकार्यता नहीं मिलती। केंद्र सरकार की इस मामले में भूमिका शोचनीय है।

सरकार को यह मामला गंभीरता से लेना चाहिए था। इस वर्ष जनवरी में जब महिला पहलवानों ने पहली बार धरना शुरू किया तो उन्हें आश्वासन देकर घर भेज दिया गया। सरकार ने मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन कर दिया। क्या कमेटी इसकी सिफारिश कर सकती थी कि कुश्ती संघ के अध्यक्ष पर केस दर्ज होना चाहिए। फर्ज करें, किसी खेल सेंटर में महिला खिलाडिय़ों से यौन शोषण हुआ है तो क्या कमेटी उन खिलाडिय़ों का सम्मान लौटा लाएगी, हालांकि अगर संबंधित आरोपी पर केस दर्ज होता है, अदालत उसे सजा सुनाती है तो यह जरूर उस मानहानि की भरपाई की दिशा में एक कदम होगा।

ऐसे में सरकार को किसी जांच कमेटी का गठन भी तब करना चाहिए था, जब संबंधित कुश्ती महासंघ अध्यक्ष पर केस दर्ज हो जाता। यानी एक तरफ पुलिस अपनी जांच करती और दूसरी तरफ सरकार की कमेटी अपनी जांच करवाती। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह साबित कर दिया है कि न्यायपालिका के भरोसे ही देश चलायमान है।

माननीय अदालत ने अपनी सर्वोच्चता को साबित करते हुए दिल्ली पुलिस को दो केस दर्ज करने को जो निर्देशित किया है, वह न्यायसंगत है। बेशक, यह आरोपी के लिए भी जरूरी है, क्योंकि अगर वे सच्चे हुए तो कानून उन्हें बाइज्जत बरी कर ही देगा। ऐसे में वे क्यों डर रहे हैं। इस मामले में राजनीतिक दखल अनावश्यक है, आज विपक्ष में बैठे दल इस मामले के जरिये केंद्र सरकार पर हमलावर हैं, लेकिन उनकी सरकार के वक्त भी तमाम ऐसे मामले हो सकते हैं, जब शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। बहरहाल, यह जरूरी है कि इस पूरे प्रकरण की सघनता से जांच हो और दूध का दूध एवं पानी का पानी हो। देश संविधान से चल रहा है तो यहां प्रत्येक को कानून की प्रतिरक्षा मिलनी चाहिए। किसी को किसी के सम्मान से खेलने का हक नहीं होना चाहिए।

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