Editorial: दलों को चंदे के स्रोत को जानने का अधिकार होना चाहिए
- By Habib --
- Tuesday, 31 Oct, 2023
Parties have the right to know the source of donations
Parties have the right to know the source of donations केंद्र सरकार की ओर से यह व्यवस्था प्रश्न खड़े करती है कि राजनीतिक फंडिंग का स्रोत जानने का अधिकार लोगों को नहीं है। सरकार का कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत यह अधिकार नहीं है। ऐसे में विपक्ष का यह सवाल जायज है कि आखिर किस बात को छिपाने के लिए ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं। सूचना का अधिकार कानून को लागू करने में भी ऐसे ही सवाल खड़े हुए थे, लेकिन बाद में यह कानून लागू हुआ। हालांकि अब भी अनेक ऐसे विषय होते हैं, जिनके संबंध में जनता को जानकारी नहीं दी जाती। बेशक, देश की सुरक्षा और अन्य गोपनीय विषयों के संबंध में जानकारी सार्वजनिक करना मुनासिब नहीं है, लेकिन किसी दल को होने वाली राजनीतिक फंडिंग के स्त्रोत की जानकारी क्यों सार्वजनिक नहीं की जा सकती, यह बात अचंभित करती है।
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार ने चुनावी बांड के जरिये चंदा देने वालों का नाम सार्वजनिक नहीं करने का बचाव किया है। देश में राजनीतिक दलों को अपार पैसा मिलता है, लेकिन उस पैसे का स्त्रोत क्या है, यह कभी सामने नहीं आ पाता। उद्योग जगत और राजनीतिक दलों के रिश्ते हमेशा से सुर्खियों में रहे हैं, यह भी खूब देखने और सुनने को मिलता रहा है कि किस प्रकार उद्योगपतियों को सत्ताधारी दलों की ओर से चंदे के लिए दबाव बनाया जा रहा है। आज के समय के अनेक प्रमुख उद्योग घरानों ने बीते दौर में राजनीतिक दलों को चंदा देकर अपने प्रोजेक्ट पूरे किए हैं, अब यह और बात है कि वे घराने देश की अर्थव्यवस्था में मील का पत्थर बन चुके हैं। यानी आगे बढ़ने की कीमत उन्होंने पैसे देकर चुकाई।
दरअसल, चुनावी बांड को यह कहकर लाया गया था कि इससे चुनावी चंदे में पारदर्शिता आएगी हालांकि अगर इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती कि किसने कितना चंदा दिया है तो फिर किस प्रकार की पारदर्शिता रह जाती है। चंदे को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में अनेक याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनके ऊपर अब माननीय अदालत ने सुनवाई शुरू की है। अब केंद्र सरकार का कहना है कि उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना नागरिकों को कुछ भी या सब कुछ जानने का अधिकार नहीं है। उसका यह भी कहना है कि बांड के जरिये बैंकिंग माध्यम से राजनीतिक दलों को फंड दिया जाता है, इसलिए यह नियमित है।
हालांकि यह भी बड़ा सच है कि बैंक अपनी जानकारी को सार्वजनिक नहीं करते और जनता को यह जानकारी भी दुर्लभ हो सकती है कि आखिर किस बैंक के जरिये किस राजनीतिक दल को कितना चंदा दिया गया। बैंक इस जानकारी को अपने लिए बेहद मूल्यवान समझते हैं और संबंधित राजनीतिक दल के साथ अपने संबंधों को क्षति नहीं पहुंचाना पसंद करेंगे। सरकार का दावा है कि इलेक्ट्रॉल बॉन्ड योजना में चंदा देने वाले को गोपनीयता का लाभ मिलता है। यानी इस योजना का संबंध उन लोगों से है जोकि किसी राजनीतिक दल को चंदा देते हैं, यह उन लोगों से वास्ता नहीं रखती है जोकि उस चंदे का हिसाब मांगते हैं। केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए तर्कों का विरोध किया। केंद्र सरकार ने कहा कि अभिव्यक्ति के लिए जरूरी जानने का अधिकार कुछ उद्देश्यों के लिए हो सकता है। जवाब में ये भी कहा गया कि लोकतंत्र के सामान्य स्वास्थ्य के लिए जानने का अधिकार अधिक व्यापक होगा।
निश्चित रूप से यह मामला देश के लोकतांत्रिक स्वरूप को प्रभावित करने वाला है, यही वजह है कि याचिका में कहा गया था कि यह मामला संवैधानिक महत्व का है और यह देश में लोकतांत्रिक राजनीति और राजनीतिक दलों की फंडिंग को प्रभावित कर सकता है। वास्तव में इलेक्ट्रॉल बॉन्ड स्कीम के तहत एक बॉन्ड खरीदकर किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दिया जा सकता है। बॉन्ड को कोई भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म के द्वारा खरीदा जा सकता है। हालांकि, वह शख्स भारतीय नागरिक हो या कंपनी भारत में हो। इसका मकसद राजनीतिक दलों को चंदा देना है।
इस मामले पर कांग्रेस की ओर से सवाल उठाए गए हैं। पार्टी का आरोप है कि सत्ताधारी दल कारपोरेट घरानों से गुपचुप और षड्यंत्रकारी तरीके से चंदा एकत्रित कर रही है। हालांकि इस प्रकार के आरोप राजनीतिक ही कहे जाएंगे, क्योंकि प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए चंदा जरूरी है, कौन सा दल बगैर चंदे के चल सकता है। पार्टी का यह कहना चिंतन का विषय हो सकता है कि बांड की जगह छोटे दानकर्ताओं के चंदे के द्वारा पारदर्शिता आ सकती है। जरूरत इसकी है कि जनता को यह मालूम होना चाहिए कि पैसा कहां से आ रहा है और कहां जा रहा है। तब इस प्रकार के तथ्य एकपक्षीय लगते हैं कि जनता को चंदे के स्त्रोत को जानने का अधिकार नहीं है।
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