Pakistan itself ended the round of talks with India

Editorial: पाक ने खुद खत्म किया, भारत से वार्ता का दौर  

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Pakistan itself ended the round of talks with India

Pakistan itself ended the round of talks with India: पाकिस्तान में अगले महीने शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रण दिया गया है, हालांकि इस संबंध में आधिकारिक रूप से अभी तक कोई बयान केंद्र सरकार की ओर से नहीं आया है, लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि पाकिस्तान से बातचीत का दौर अब खत्म हो गया है। वास्तव में विदेश मंत्री एस जयशंकर की टिप्पणी देश के उन तमाम नागरिकों की भावनाओं का समर्थन है, जोकि पाकिस्तान से किसी भी प्रकार का नाता न रखने के इच्छुक हैं।

आजादी के बाद जितने दर्द पाकिस्तान ने भारत को दिए हैं, उतने किसी भी अन्य देश ने नहीं दिए हैं। पाकिस्तान ऐसे कुंठित सोच के हुक्मरानों का देश है, जिन्होंने अपने देश की तरक्की पर कम लेकिन भारत के साथ दुश्मनी पर ज्यादा ध्यान दिया है। यही वजह है कि पाकिस्तान की जनता आज समस्याओं से बेहाल है, भूख-बेकारी और महंगाई ने पाकिस्तान को त्रस्त कर दिया है, लेकिन उसके शासक यह बात न समझ कर भारत के जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को शह देने में लगे हैं। ऐसे में देश के स्तर पर पाकिस्तान से किसी भी तरह का संवाद होना ही नहीं चाहिए।

शंघाई सहयोग संगठन में भारत, चीन और पाकिस्तान के पूर्ण सदस्य हैं, वहीं रूस समेत तीन अन्य समवर्ती देश भी इसके सदस्य हैं। इसका कार्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना है। पिछली बार जब एससीओ की दिल्ली में बैठक हुई थी तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री वीडियो माध्यम से इससे जुड़े थे, लेकिन अब जब पाकिस्तान के अंदर ही इस बैठक को आयोजित किया जा रहा है तो पाकिस्तान ने भारत को भी न्योता दिया है। यह वास्तव में एक गहन प्रश्न है कि आखिर पाकिस्तान में होने वाले कार्यक्रम में भारत की मौजूदगी होनी चाहिए या नहीं। आखिर इस बात से कौन इनकार करेगा कि एससीओ का जो मकसद है, पाकिस्तान उसके उलट जाकर काम कर रहा है।

इस समय इलाके में चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ काम कर रहा है और दोनों मिलकर भारत के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे हैं। बांग्लादेश में जो हुआ है, उसके पीछे पाकिस्तान और चीन का हाथ है, यह अब रहस्य नहीं रहा है। पाकिस्तान का मकसद भारत में अशांति कायम कर यहां के माहौल को बिगाड़ने का रहा है। भारत में मौजूदा सरकार के समय में पाकिस्तान की हरकतों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा चुका है और इसी सरकार के वक्त ऐसा हो रहा है, जब पाकिस्तान से बातचीत बंद कर दी गई है।

हालांकि अन्य किसी सरकार के होने की स्थिति में संभव है, पाकिस्तान से बातचीत की जाए। कश्मीर में विपक्षी दल इसकी पुरजोर मांग कर रहे हैं कि पाक से बात हो। लेकिन कोई यह तो बताए कि आखिर पाक से क्या बात करनी चाहिए। बजाय भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान और उसके भेजे आतंकियों को कड़ा सबक दे और अपनी शर्तों पर कहे कि अब बताओ क्या चाहिए। निश्चित रूप से इस समय ऐसा ही हो रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान के संबंध में जो बयान दिया है, वह पूरी तरह से मुखर है और पाकिस्तान को यह बताने के लिए काफी है कि भारत की जनता और उसकी सरकार क्या सोचती है।

पाकिस्तान ऐसा कोई अवसर नहीं छोड़ता जब वह वैश्विक मंच पर कश्मीर का राग न अलापे। उसके मंत्री, प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख आदि हर मंच पर कश्मीर का राग अलापते हैं, लेकिन इस दौरान आतंकवाद की फैक्ट्री बनने की अपनी असलियत को छुपाए रखते हैं। पूरा विश्व यह समझता है लेकिन इसके बावजूद कूटनीतिक दांव ऐसे चले जाते हैं जिसमें भारत जैसे निष्पक्ष और शांतिप्रिय देश का विरोध होने लगता है।

हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल में विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है। अब वे देश जोकि एक समय पाकिस्तान परस्त थे और जिहाद के नाम पर धार्मिक कट्टरता से बंधे हुए थे, अब भारत के साथ चल रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पश्चिम के ज्यादातर देश अब भारत का समर्थन करते हैं। चीन के साथ जारी संघर्ष में अब अमेरिका ने खुलकर अगर भारत का समर्थन किया है तो इसकी वजह भी विदेश नीति ही है। अगर दुनिया भारतीय सुरक्षा चिंताओं को अब बेहतर तरीके से समझने लगी है तो यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। पाक की बेहतरी भारत के लिए जरूरी है, पर इसकी शुरुआत उसे ही करनी है कि वह आतंकवाद को शह देना बंद करे। अगर ऐसा हुआ तो भारत उसकी तरक्की और खुशहाली में पूर्ण योगदान देगा, लेकिन जब तक सीमा पर भारतीय जवानों और नागरिकों का खून बहता रहेगा, पाकिस्तान से न बातचीत होनी चाहिए और न ही उसे कोई अन्य सहयोग मिलना चाहिए।

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