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Editorial: उफ! बेमौसमी बारिश, फसलों को नुकसान का मिले तुरंत मुआवजा

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unseasonal rain मई-जून की चिलचिलाती गर्मी में अगर आसमान बादलों से ढक जाए तो किसका मन मयूर नहीं बन जाता। हालांकि मार्च-अप्रैल में जब आसमान बादलों से ढक कर न केवल लगातार बरस रहा है, अपितु ओलावृष्टि करके खेत-खलिहानों में सफेद चादर बिछा रहा है, तब न केवल किसान अपितु हर किसी का दिल कांप रहा है। उत्तर भारत में मौसम आजकल कहर ढाह रहा है। गेहूं समेत तमाम फसलों, सब्जियों-फलों को इस बारिश से भारी नुकसान हो रहा है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और तेज हवा के कारण आम की फसल को भी 20 फीसदी तक नुकसान हो चुका है। मार्च के मध्य में बारिश का यह सिलसिला शुरू हुआ था जोकि अब अप्रैल की शुरुआत तक आ गया है। यह समय फसलों के पूरी तरह तैयार होकर उनकी कटाई का है, लेकिन आजकल सरकार के नुमाइंदों को और विपक्ष के नेताओं को खेतों के चक्कर लगाकर फसलों को हुए नुकसान का आकलन करते देखा जा सकता है।

  दरअसल, पिछले चार-पांच दिनों से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में बारिश ने जिस प्रकार से फसलों पर सितम ढाया है, उसने जहां फसलों के पकने के समय को बढ़ा दिया है, वहीं फसल के नुकसान का अंदेशा भी बढ़ा दिया है। हालात ऐसे हैं कि हरियाणा और पंजाब में गेहूं की खड़ी फसल बिछ गई है। हरियाणा में तो विभिन्न स्थानों पर फसलों को 25 से 50 फीसदी तक नुकसान पहुंचा है। हालांकि खतरा अभी टला नहीं है। मौसम विज्ञानी बता रहे हैं कि चार अप्रैल तक मौसम का यह रवैया जारी रहेगा। हरियाणा में कई जिलों में बारिश के साथ ओलावृष्टि भी हुई है। हालांकि अब राज्य एवं केंद्र सरकार की ओर से इसकी रिपोर्ट मांगी गई है, जोकि उचित है। भारत कृषि प्रधान देश है और उसकी अर्थव्यवस्था का मूल आधार खेती है। हालांकि मौसम पर किसी का जोर नहीं चलता और कब आसमान से आफत बरसने लग जाए, यह कोई नहीं जानता।

कृषि मंत्रालय की ओर से निर्देश दिए गए हैं कि आंधी-बारिश से प्रभावित राज्य सरकारें अपने स्तर पर फसलों के नुकसान का आकलन करें। हालांकि अभी तक केंद्र को राज्यों की ओर से ऐसी कोई रिपोर्ट हासिल नहीं हुई है। बावजूद इसके सरकार की ओर से राज्यों को निर्देशित किया गया है कि किसानों को शीघ्र मदद देने के लिए राज्य सरकारें राज्य आपदा राहत कोष का उपयोग कर सकती हैं। इसके बाद राज्यों की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार की ओर से भी राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से अधिक पैसे दिए जा सकते हैं। वास्तव में केंद्र सरकार की यह कार्रवाई बताती है कि वास्तव में ही फसलों के नुकसान के प्रति सरकार संजीदा है और प्रभावित किसानों की मदद करना चाहती है। किसानों के लिए उनकी फसल ही आय का प्रमुख जरिया है, इस बार तय था कि फसल काफी बेहतरीन होनी थी, क्योंकि पिछले वर्ष नवंबर के बाद ऐसी कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई थी।

दरअसल, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में बेमौसमी बारिश से फसलों को होने वाले नुकसान का मामला राजनीतिक रूप लेता रहता है। हरियाणा में सरकार ने फसलों को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए विशेष गिरदावरी के आदेश दिए हुए हैं, सरकार की ओर से कहा गया है कि मई तक सभी किसानों को क्षतिपूर्ति कर दी जाएगी। हालांकि पंजाब सरकार फैसला ले चुकी है कि बैशाखी से पहले किसानों को मुआवजा दिया जाएगा। अब हरियाणा में आम आदमी पार्टी ने इसे मुद्दा बना लिया है। उसका कहना है कि पंजाब सरकार ने किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा देने में देर नहीं की है, लेकिन हरियाणा में अभी आकलन ही जारी है। हालांकि हरियाणा और पंजाब में व्यवस्थागत अंतर है।

हरियाणा में सरकार की ओर से इसके लिए क्षतिपूर्ति पोर्टल बनाया गया है, सरकार का कहना है कि इस पोर्टल के जरिये ही किसान अपनी फसल को हुए नुकसान का ब्योरा प्रदान करें, जबकि विपक्ष का कहना है कि क्षतिपूर्ति के लिए पोर्टल की बाध्यता को खत्म किया जाना चाहिए। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसानों को पांच सौ रुपये बोनस देने की मांग कर चुके हैं, उनका यह भी आरोप है कि सरकार की ओर से नुकसान का कम मूल्यांकन किया जा रहा है। जाहिर है, इस प्रकार के आरोप गंभीर है, लेकिन इनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि भी है।  हरियाणा में एक सच्चाई यह भी है कि यहां किसानों को मुआवजे के एक हजार करोड़ ट्रेजरी में पड़े हैं, लेकिन किसान लेने ही नहीं आ रहे। वास्तव में सरकार और किसानों को एक-दूसरे का साथ देना होगा, क्षति की स्थिति में तुरंत सरकार एक्शन में आए वहीं किसान भी अपने तौर पर सक्रियता दिखाएं। फसलों को नुकसान किसान नहीं देश का नुकसान है।

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