संसद ही कर सकती है पंजाब डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट,1952 में बदलाव: बंसल

संसद ही कर सकती है पंजाब डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट,1952 में बदलाव: बंसल

संसद ही कर सकती है पंजाब डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट

संसद ही कर सकती है पंजाब डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट,1952 में बदलाव: बंसल

क्रॉसर:बिल्डिंग मिसयूज वायलेशन चार्ज 50 रुपये से 400 गुणा बढ़ाकर 2 लाख रुपये करने का पूर्व सांसद ने किया विरोध

चंडीगढ़, 11 अप्रैल (साजन शर्मा)

पूर्व सांसद पवन बंसल ने कैपिटल ऑफ पंजाब (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1952 को लेकर प्रशासन के पास आपत्ति दर्ज की है। पूर्व सांसद ने कहा कि एक्ट में संशोधन के बाद बिल्डिंग मिसयूज वायलेशन चार्ज 500 रुपये से बढ़ाकर 400 गुणा किया जाना (दो लाख से भी ज्यादा) निहायत ही गलत है। केवल संसद ही इस अधिनियम में कोई संशोधन कर सकती है। चंडीगढ़ प्रशासन को इसमें संशोधन का हक नहीं है।

बंसल ने कहा है कि पंजाब की राजधानी (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1952 (बाद में अधिनियम के रूप में संदर्भित) पंजाब के विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किया गया था। पंजाब री-आर्गेनाइजेशन एक्ट, 1966 के अधिनियमन के बाद, केवल संसद ही इसमें कोई संशोधन कर सकती है।  प्रशासन इसमें कोई संशोधन नहीं कर सकता। इस अधिनियम का संशोधन बिल्डिंग बॉयलॉज (भवन उप-नियमों) के अमेंडमेंट (संशोधन) के समान नहीं है। बिल्डिंग बॉयलॉज का संशोधन यूटी प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में आता है। बंसल ने कहा कि कैपिटल ऑफ पंजाब डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1952 कहता है कि भवन स्थलों की बिक्री को विनियमित करने और नगर उप-नियमों की तर्ज पर भवन नियमों को लागू करने के लिए राज्य सरकार को कानूनी अधिकार के साथ निहित करना आवश्यक माना जाता है, जब तक कि उचित रूप से गठित स्थानीय निकाय प्रशासन को अपने हाथ में नहीं लेता है। चूंकि केंद्र शासित प्रदेश में संसद के एक अधिनियम के तहत एक विधिवत गठित नगर निगम है, लिहाजा पंजाब नगर निगम कानून (चंडीगढ़ तक विस्तार) अधिनियम, 1994, के तहत शहर का प्रशासन चंडीगढ़ नगर निगम को सौंप दिया जाना चाहिए। अधिनियम द्वारा इसे निर्धारित किया गया है।

बंसल ने कहा कि अगर चंडीगढ़ प्रशासन अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजता है तो उसमें भी कई आपत्तियां हैं। इसमें अधिनियम की धारा 13, 14 और 15 में संशोधन करके जुर्माना 500 रुपये से  2 लाख और प्रत्येक दिन के हिसाब से 20 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना 8 हजार रुपये किया जाना बहुत ही अधिक है। इसे उपयुक्त रूप से कम किया जाना चाहिए। जुर्माने की राशि 400 गुना यानि 40 हजार प्रतिशत तक बढ़ाये जाने का कोई औचित्य नहीं है। दशकों पुराने मामलों में भी, उप-नियमों के मामूली उल्लंघन पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान रखा गया है। इस मद को प्रस्ताव में सम्मलित करना अनावश्यक है क्योंकि अधिनियम में किसी भी संशोधन के लिए इस तरह की पुनरावृत्ति की आवश्यकता नहीं है। मौजूदा धारा 23 राष्ट्रपति के अधिनियम 5, 1952 के निरसन को संदर्भित करती है। साथ ही, धारा 23 में सटीक संशोधन के संदर्भ में अब प्रस्तावित संशोधन अधिनियम की व्याख्या नहीं की गई है।