200 हवन कुण्डों में डाली आहुतियाँ बनी डीएवी मंडी में मनाई महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती की गवाह
Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti
यज्ञ हमारे समाज की प्राचीन परंपरा,हमे यज्ञ की इस परंपरा को जीवंत रखना चाहिए: गुलेरिया
मंडी, राजन पुंछी : Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti: 200 हवन कुण्डों में आहुतियाँ डालकर खुले आसमान के नीचे महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जयंती डीएवी मंडी द्वारा पड्डल मैदान में मनाई गई। मंत्रो उच्चारण द्वारा 200 हवन कुण्डों में आहुतियो से पूरी मंडी पवित्र व शुद्ध ही गई। पूरे डीएवी मंडी के अध्यापक और विद्यार्थी इस अवसर के गवाह बने। पड्डल में बनाए 200 हवन कुण्डों में स्कूल के लगभग 5 विद्यार्थियों का समूह प्रति कुण्ड से समीप बैठाया गया और उनके द्वारा यज्ञ में आहुतियाँ डाली गई । 200 कुण्डीय यज्ञ का भव्य आयोजन महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया।
इस यज्ञ में हिसार से वेद प्रवक्ता , शास्त्री और प्रवचन वेता उपस्थित रहे और संपूर्ण मैदान सहित पूरी मंडी को मंत्रो उच्चारण द्वारा पवित्र व शुद्ध कर दिया गया। यज्ञ हवन विद्यार्थियों द्वारा मुख्य शास्त्री प्रवक्ता के दिशानिर्देश से मंत्रोचारण द्वारा संपन्न हुए। मंडी का सारा वातावरण वेद मंत्रों और गायत्री मंत्र की मधुर ध्वनि से गुंजायमान हो गया।
हवन संध्या उपरांत विद्यार्थियों द्वारा भजन कीर्तन भी किया गया और प्रसाद बांटा गया। कार्यक्रम में मुख्यातिथि के रूप में आदरणीय रवीन्द्र तलवार सचिव डीएवी कॉलेज प्रबंधकर्त्री समिति नई दिल्ली उपस्थित रहे। उनके साथ उनकी धर्मपत्नी आदरयुक्त ललिता तलवार भी उपस्थित रहीं |
इसके अतिरिक्त विशिष्ठ अतिथियों में प्रधानाचार्य के एस गुलेरिया डीएवी मंडी व मैडम वंदना गुलेरिया, यज्ञ के ब्रह्मा डॉ आचार्य प्रमोद महाजन आचार्य रोहतक गुरुकुल हिसार, आदि गणमान्य अतिथियों के सानिध्य से यज्ञ का कार्य संपन्न किया गया । स्कूल के प्रिंसिपल के एस गुलेरिया ने महर्षि जी की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों को ऋषि द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने और वेदों के प्रचार और प्रसार पर बल देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि यज्ञ हमारे समाज की प्राचीन परंपरा है जो पर्यावरण को स्वच्छता प्रदान करती है, साथ ही हमारे हृदय को भी स्वच्छ तथा सकारात्मक सोच से परिपूर्ण बनती है। गुलेरिया ने कहा कि हमें यज्ञ की इस परंपरा को जीवंत रखना चाहिए ।
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