ओबीसी आरक्षण: जस्टिस रोहिणी पैनल क्या है?

जस्टिस रोहिणी पैनल: ओबीसी आरक्षण को सुधारने का मिशन

जस्टिस रोहिणी

ओबीसी आरक्षण: जस्टिस रोहिणी पैनल क्या है?

रिपोर्ट का उद्देश्य

2017 में, भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जब वह दिल्ली हाई कोर्ट की रिटायर्ड चीफ जस्टिस जी. रोहिणी की अगुआई में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग का मुख्य उद्देश्य था सभी अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) की पहचान करना और उन्हें सभी कैटेगरीज में क्लासिफाइड करना। इसका मतलब है कि यह आयोग ओबीसी आरक्षण को नये और सुधारे हुए ढंग से लागू करने के लिए जिम्मेदार था।

जस्टिस रोहिणी पैनल की रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य था ओबीसी आरक्षण को और भी प्रायोजित करना और इसे व्यावहारिक बनाना। इसका मतलब है कि यह रिपोर्ट ओबीसी आरक्षण को बेहतर तरीके से प्रबंधने के उपायों को ढ़ूंढने का प्रयास करती है ताकि सभी ओबीसी लोगों को इसके लाभ मिल सकें।

रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बातें

रिपोर्ट के दो भाग हैं - पहला भाग ओबीसी आरक्षण कोटा के न्यायसंगत और समावेशी वितरण से जुड़ा है और दूसरा भाग देश में वर्तमान में लिस्टेड 2,633 पिछड़ी जातियों की पहचान, उनके प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन, और अब तक की आरक्षण नीतियों के आधार पर है। रिपोर्ट के द्वारा प्रस्तावित किये गए सुझाव ओबीसी आरक्षण के ढंग को पुनः विचारित करने की दिशा में हैं।

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रिपोर्ट का प्रमुख ध्यान

रिपोर्ट का प्रमुख ध्यान ओबीसी आरक्षण को बेहतर तरीके से प्रायोजित करने और सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने पर है। इसका मतलब है कि रिपोर्ट विभिन्न जातियों और उप-जातियों को वर्गीकृत करने के पीछे का मकसद नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य सभी को समान अवसर पर रखना है। इसके माध्यम से, यह सभी जातियों और उपजातियों के बीच समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।

ओबीसी आरक्षण को सुधारने और व्यावहारिक बनाने के उपायों को खोजने के लिए जस्टिस रोहिणी पैनल की रिपोर्ट है। इसके माध्यम से, सरकार को ओबीसी आरक्षण के प्रावधान को और भी सुधारकर ओबीसी लोगों को इसके अधिक लाभान्वित करने के उपाय देखने का मौका मिल सकता है। यह रिपोर्ट देश के कुल मतदाताओं में से 40 प्रतिशत से अधिक यानी ओबीसी वोटर्स के भविष्य के साथ एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दे का हिस्सा है और लोकसभा चुनाव के आसपास एक महत्वपूर्ण बहस की ओर जा सकता है।

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