न अंतिम संस्कार--न अंतिम अरदास---केवल तर्कशील ढंग से विदा किया घर के बज़ुर्ग को
लुधियाना: 8 दिसंबर 2022: (कार्तिका सिंह):: A new Rational-Logical System to perform last rites
कहा न कोई स्वर्ग होता है न ही कोई नर्क--ये सभी भय पुरोहित वर्ग ने खड़े किए
जब मौत अपना रंग रूप दिखलाती है तो बड़ों बड़ों को नानी याद आ जाती है। वे लोग अनदेखे ईश्वर को ज़ाद करने लगते हैं। बहुत काम लोग होते हैं जो उस वक्त भी अपनी सोच और सिद्धांतों पर कायम रहते हैं। कुछ ऐसा ही महसूस हुआ एक तर्कशील परिवार के वयोवृद्ध का देहांत होने पर।
जानेमाने तर्कशील नेता दलबीर कटानी के पिता श्री हरचेतन सिंह का आखिरी वक्त आया तो उस समय वह लुधियाना के हैबोवाल में अपने परिवार के साथ ही थे। परिवार ने प्रयास तो किए लेकिन उन्हें बचाया न जा सका। तर्कशील विचारधारा से जुड़े हुए दलबीर कटानीकलां ने अपने पिता का मृतक शरीर सीएमसी अस्पताल को सौंप दिया तांकि विज्ञान के क्षेत्र में नयी नै खोज की जा सके। इस तरह यह कदम पुरोहित वर्ग के खिलाफ एक प्रेक्टिकल बगावत भी थी। लोगों को फ़िज़ूल खर्चियों से बचने बचाने का संदेश भी था। स्वर्ग-नर्क और यमराज के उत्पीड़न भरे भी से बचने का एक सशक्त प्रयास भी था। इसी सिलसिले को आगे बढ़ते हुए तर्कशील समाज द्वारा बिना किसी धार्मिक समारोह के बापू हरचेतन सिंह को अंतिम अरदास या अखंडपाठ के स्थान पर सम्मान समागम कर के सम्मानित भी किया गया।
विशवास और आडंबर के नाम पर फ़िज़ूल खर्चों से रोकने का दिया संदेश
वास्तव में यह नास्तिकता की पराकाष्ठा थी। विज्ञान में विशवास और आडंबर के नाम पर फ़िज़ूल खर्चों से रोकने का संदेश भी था। यह आयोजन विज्ञान पर आधारित विचारधारा और आस्था के संबंध में एक नई मिसाल कायम करना भी था। तर्कवादियों ने न तो शोक के मरे कोई रोनाधोना किया, न ही अंतिम संस्कार और न ही कोई और समाजिक रस्म अदा की। उन्होंने अपने सम्मानीय वृद्ध के शव को वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक प्रतिष्ठित अस्पताल को भी सौंप दिया गया।
इसके बाद आम तौर पर अंतिम अरदास और अखंड पाठ इत्यादि होता है। उसके स्थान पर भी कोई आम श्रद्धांजलि समागम नहीं किया गया। किसी भी तरह के धार्मिक समारोह के स्थान पर बहुत ही सादगी से सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस तरह समाज को भी अनावश्यक कर्मकांडों से मुक्ति पाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
तर्कवादी नेता दलबीर कटानी के ससुर हैबोवाल निवासी हरचेतन सिंह की मौत के बाद उनकी इच्छा के अनुसार शव मेडिकल रिसर्च के लिए सीएमसी अस्पताल लुधियाना को सौंप दिया गया। दलबीर कटानी की धर्मपत्नी श्रीमती सुरिंदर कौर के साथ उनकी पुत्री मनिंदर कौर और पुत्र अशबीर सिंह भी तर्कसंगत विचार रखते हैं, उन्होंने भी तर्कसंगत समाज की समझ की रक्षा की और बिना किसी धार्मिक समारोह के बापू हरचेतन सिंह को श्रद्धांजलि दी। इस तरह यह अपनी किसिम का विशेष कार्यक्रम रहा।
यह रचनात्मक विचारों के अनुसार किया गया था। वर्तमान में रैशनल सोसाइटी पंजाब के नेता राजिंदर भदौर और जसवंत जीरख ने इस विशेष स्पष्ट किया कि किसी भी जीव का पूर्व जन्म नहीं होता और मरने के बाद किसी को तथाकथित स्वर्ग या नर्क में नहीं जाना पड़ता। स्वर्ग जाने का मोह और नर्क जाने का भय हमारे पुरोहितों ने अपनी दुकान चलाने के लिए ही पैदा किया है।
इसी प्रकार एक ओर आत्मा के नाम पर झूठी गवाही देकर यह प्रचारित किया जाता है कि आत्मा न मरती है, न जन्म लेती है, न अग्नि में जलती है और न जल में डूबती है। लेकिन दूसरी ओर यह भी कहा जाता है कि नरकों में इसे खौलते हुए गर्म तेल की कड़ाही में उबाला जाता है या आग जैसे गर्म खंभों से लगाया जाता है। उन्होंने सम्बोधित करते हुए उन्होंने प्रश्न किया कि यदि आत्मा मरती और सड़ती नहीं है तो सब कुछ तुम्हारे विरुद्ध क्यों किया जाता है? नेताओं ने इस तरह के सवाल उठाने और हर अंधविश्वास कर्मकांड को त्यागने का संदेश दिया।
जानबूझकर किया जा रहा है भाग्यवादी दर्शन का प्रचार
पुरोहित वर्ग ने मानव जन्म मरण के अनावश्यक संस्कारों को दान के धंधे से जोड़कर प्रसाद ग्रहण करने का बहाना बना लिया है। सरकारों और धर्मगुरुओं की मिलीभगत से जानबूझकर भाग्यवादी दर्शन का प्रचार किया जा रहा है ताकि लोग अपने दुर्भाग्य को दोष देते रहें और कुशासन के वास्तविक कारण की उपेक्षा करते रहें। इसलिए पुजारी के चंगुल से निकलने के लिए लोगों को इस बात को समझना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस जन्म में स्वर्ग/नरक है, मजदूर वर्ग के लिए रहन-सहन की स्थिति अच्छी नहीं है जिसके कारण वे नर्क भोगते हैं, लेकिन इस वर्ग के श्रम को लूटने वाला वर्ग स्वर्ग का आनंद ले रहा है. इसीलिए इस डकैती को खत्म करने के लिए आवाज उठाने वालों पर हर समय की सरकारों ने जुल्म किया है। ऐसे लोग चाहे हमारे शहीद भगत-सराभा हों या गदरी बाबा या आज के संघर्षरत लोग। सीएमसी अस्पताल से विशेष रूप से पहुंचे डॉ कलश जी ने अस्पताल में चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को पढ़ाने के लिए शवों के उपयोग के बारे में स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने बापू हरचेतन सिंह की पुत्री मनिंदर कौर को भी पूरे परिवार की ओर से सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया। मनिंदर कौर ने भी अपनी भावनाएं साझा कीं। राजेंद्र कांडियाली ने मंच संचालन बखूबी किया। अंत में जोन लुधियाना के वित्त प्रमुख आत्मा सिंह ने सभी का धन्यवाद किया। इस अवसर पर लोकतान्त्रिक अधिकार परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रो. डीके मल्लेरी, बलविंदर सिंह चीफ लुधियाना, निर्मल सिंह, तारकशील यूनिट कोहरा से गुरदीप सिंह, मंजीत घंगास, रिफॉर्मेशन से मां करनैल सिंह, मलेरकोटला यूनिट से मोहन बदला मौजूद थे।