MP Kangana Ranaut statement is personal
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Editorial: सांसद कंगना रनौत का बयान निजी, फिर भी विवाद क्यों

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MP Kangana Ranaut statement is personal

MP Kangana Ranaut statement is personal, yet why is there controversy: भाजपा सांसद एवं अभिनेत्री कंगना रनौत के लिए क्या यह जरूरी नहीं है कि वे अपनी पार्टी लाइन को समझें और उसके मुताबिक बयान दें। वास्तव में राजनीति में नीति शब्द अनावश्यक है। क्योंकि नीति कहीं नजर नहीं आती और सब तरफ राज ही राज नजर आता है। तीन कृषि कानूनों को संसद से पारित कराने के बाद भाजपा सरकार ने इन्हें लागू कराया था, लेकिन फिर किसानों के भारी विरोध की वजह से उन्हें वापस लेना पड़ा।

हालांकि इससे पहले सरकार ने तमाम मंचों पर उन कानूनों को सही ठहराया था। यह सब राजनीति और रणनीति के लिए हुआ। लेकिन अब जब हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्य में चुनाव में हो रहे हैं, तब भाजपा सांसद की यह टिप्पणी की उन कृषि कानूनों को दोबारा लाए जाने की जरूरत है, निश्चित रूप से किसानों और विपक्षी राजनीतिक दलों के लिए एक सुनहरा अवसर है। प्रश्न यही है कि एक सांसद को अपने शब्दों पर नियंत्रण होना चाहिए कि नहीं। बेशक, यह अभिव्यक्ति की आजादी का मामला भी है, लेकिन बार-बार ऐसे बयान देकर जिससे पूरी पार्टी असहज हो, एक सांसद अपने भविष्य की संभावनाओं पर फुल स्टॉप भी लगा रहा है। यह विषय सैद्धांतिक है, क्योंकि अगर ऑफ द रिकार्ड पूछा जाएगा तो भाजपा के तमाम बड़े नेता भी यह स्वीकार करेंगे कि हां ऐसे किसी कृषि कानून को लाए जाने की जरूरत है। वहीं कांग्रेस समेत दूसरे दलों के नेता भी संभव है, इसके पक्ष में बोलेंगे, लेकिन जब मामला राजनीति का हो तब कौन इस पर बोलकर अपनी आलोचना को मोल लेगा।

गौरतलब है कि कंगना रनौत ने इससे पहले किसान आंदोलन की यह कहकर आलोचना की थी कि इस दौरान उपद्रव हुआ और रेप एवं हत्या की गई। इस मामले पर अब पंजाब के किसान नेता जहां इसकी  तीखी आलोचना कर रहे थे वहीं विपक्ष की ओर से भी कड़ी बयानबाजी सामने आई। बेशक, यह सच है कि किसान आंदोलन के दौरान कुंडली बॉर्डर पर एक युवती के साथ दुष्कर्म हुआ था, वहीं यह भी सच है कि इस दौरान एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। हालांकि समय के साथ यह सब घटनाएं दफन कर दी गई हैं। किसान आंदोलन के संचालक अगर इस बात की दुहाई देते हैं कि उनका इन वारदातों से कोई लेना-देना नहीं है तो यह एक पक्ष हो सकता है। क्योंकि कुंडली बॉर्डर और वे तमाम  जगह जहां पर आंदोलनकारी जमा थे, वहां का माहौल काफी हद तक अस्तव्यस्त हो चुका था। इसके अलावा 15 अगस्त पर दिल्ली की सडक़ों और लाल किले पर जो कुछ घटा था, क्या उससे भी किसान आंदोलनकारी इनकार करेंगे। आखिर इतना बड़ा उपद्रव करके जिसमें एक ऐतिहासिक स्थल और देश की आन-बान-शान के प्रतीक स्थल को क्षति पहुंचाई गई और बाद में तिरंगे के स्थान पर एक धार्मिक ध्वज फहराया गया, क्या इससे भी इनकार किया जा सकता है।

सांसद कंगना रनौत उन लोगों की श्रेणी में आती हैं, जोकि दिल की सुनते और कहते हैं। निश्चित रूप से प्रत्येक नागरिक का वास्ता देश की घटनाओं से है। वे उनके संबंध में बोल सकते हैं। ज्यादातर लोग उचित बोलना जानते हैं, लेकिन वे हालात को समझ कर चुप रह जाना पसंद करते हैं। हालांकि कुछ लोग कुछ भी बोलते हैं और अपने निजी स्वार्थ को सामने रखकर बोलते हैं। देश में इस समय तमाम मुद्दे हैं, अब राजनीति और चुनाव को देखकर यह तय किया जाता है कि किस विषय पर कितना बोलना है और किस तरह बोलना है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के समय सत्ताधारी दल के नेताओं के ऐसे बयान भी आ रहे थे जिनमें किसानों की कड़ी आलोचना की जा रही थी। लेकिन अब उन बयानों का कहीं रिकार्ड भी शायद नहीं मिलेगा क्योंकि वक्त बदल चुका है। बेशक, राजनीति कुछ ऐसी ही है, जिसमें पुरानी बातों पर मिट्टी डाल दी जाती है। ऐसा कहा जा रहा है कि सांसद कंगना रनौत के बयान से उनकी पार्टी ने पल्ला झाड़ लिया है।

सांसद कंगना रनौत पर पंजाब में माहौल खराब करने का आरोप लगाया गया है। वहीं उनके खिलाफ एनएसए लगाने और उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की मांग की जा रही है। वास्तव में प्रत्येक की बात अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन अगर पार्टी लाइन पर चला जाए तो फिर ऐसे बयानों को अनुचित ही ठहराया जाएगा। यह भी जरूरी है कि पार्टी नेता अपने विरोधियों को ऐसे मुद्दे न थमाएं, जोकि पार्टी के लिए मुश्किल बनें। इस समय कांग्रेस ने कंगना रनौत के बयान पर भाजपा की घेराबंदी की है, लेकिन अब भाजपा और स्वयं सांसद कंगना रनौत ने इसे अपने निजी विचार बताया है। संभव है, यह विवाद अब निपट गया है। 

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