ध्यान का अर्थ है अपने भौतिक शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना: मनीषी संत मुनि श्री विनय कुमार जी आलोक

ध्यान का अर्थ है अपने भौतिक शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना: मनीषी संत मुनि श्री विनय कुमार जी आलोक

Limits of your Physical Body and Mind

Limits of your Physical Body and Mind

चंंडीगढ, 7 सिंतबर: Limits of your Physical Body and Mind: ध्यान ने खुद को विभिन्न धर्मों में एक प्रमुख अभ्यास के रूप में स्थापित किया है, लेकिन गैर-आध्यात्मिक व्यक्ति अभी भी शरीर और मन पर इसके प्रभावों से लाभ उठा सकते हैं। ध्यान का सही तरीके से उपयोग करने पर यह मस्तिष्क के कार्य और समग्र स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है, जिससे हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। ध्यान का अर्थ है अपने भौतिक शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना। जब आप अपने शरीर और मन की सीमाओं से परे जाते हैं, केवल तभी आप अपने अंदर जीवन के पूर्ण आयाम को पाते हैं। ध्यान शब्द के साथ लोगों के दिमाग में कई तरह की गलत धारणाएं हैं। सबसे पहली बात तो यह कि अंग्रेजी के मेडिटेशन शब्द का कुछ सार्थक मतलब नहीं है। अगर आप बस आंखें बंद कर बैठ जाएं तब भी अंग्रेजी में इसे मेडिटेशन करना ही कहा जाएगा। आप अपनी आंखें बंद करके बैठे हुए बहुत से काम कर सकते हैं- जप, तप, ध्यान, धारणा, समाधि, शून्य कुछ भी कर सकते हैं। जिसे हम ध्यान मेडिटेशन कहते हैं?  ये शब्द मनीषीसंत मुनिश्रीविनयकुमारजी आलोक ने पर्युषण पर्व के 7 वे दिन ध्यान दिवस पर अणुव्रत भवन सैक्टर -24सी के तुलसीसभागार मे धर्मसभा को संबोधित करते हुए  कहे।

मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा  अपने आपको देखने के लिए ही प्रेक्षा ध्यान का अभ्यास करें।  ध्यान चार प्रकार के होते हैं। भगवान महावीर की साधना के दो अंग तपस्या और ध्यान । आचार्य तुलसी ने आचार्य महाप्रज्ञ को ध्यान की विधियों को खोजने को कहा। प्रेक्षाध्यान से तनाव मुक्ति व कार्य क्षमता का विकास संभव है। भौतिकवादी युग में तनाव जटिल समस्या है।  मनीषीसंत ने कहा कि प्रेक्षाध्यान से आत्म साक्षात्कार हो सकता है तथा अपनी सोई शक्ति को जगाया जा सकता है। ध्यान द्वारा आत्मा में रमण कर सकते हैं। अपने जीवन को उज्ज्वल बना सकते हैं। ध्यान से मन पर काबू पाया जा सकता है। वहीं साथ में जीवन में योग प्राणायाम करना चाहिए। जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। योग करने से कई बीमारियां दूर हो जाती है। 

ध्यान का अर्थ है अपने भौतिक शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना। जब आप अपने शरीर और मन की सीमाओं से परे जाते हैं, केवल तभी आप अपने अंदर जीवन के पूर्ण आयाम को पाते हैं। जब आप खुद को शरीर के रूप में देखते हैं तो आपकी पूरी जिंदगी बस भरण पोषण में निकल जाती है। आप खुद को मन के रूप में देखते हैं तो आपकी पूरी सोच सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक नजरिए से तय होती है। आपकी सोच एक तरह से गुलाम बन जाती है। फिर आप उससे आगे देख ही नहीं सकते। जब आप अपने मन की चंचलता से मुक्त हो जाएंगे, केवल तभी आप शरीर और दिमाग से परे के पहलुओं को जान पाएंगे। यह शरीर और यह मन आपका नहीं है, इन्हें आपने धीरे-धीरे समय के साथ इकठ्ठा किया है। आपका शरीर उस भोजन का बस एक ढेर भर है, जो आपने खाया है। आपका मन भी बस बाहरी दुनिया के असर और उससे मिले विचारों का ढेर है। आपके मकान और बैंक बैलेंस की तरह ही आपके पास एक शरीर और एक मन है। 

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया मेडिटेशन नहीं कर सकते, लेकिन आप मेडिटेटिव हो सकते हैं। ध्यान एक खास तरह का गुण है, कोई काम नहीं। अगर आप अपने तन, मन, ऊर्जा और भावनाओं को परिपक्वता के एक खास स्तर तक ले जाते हैं, तो ध्यान स्वाभाविक रूप से होने लगेगा। यह ठीक ऐसे है, जैसे आप किसी जमीन को उपजाऊ बनाए रखें, उसे वक्त पर खाद पानी देते रहें और सही समय पर सही बीज उसमें डाल दें तो निश्चित तौर से इसमें फूल और फल लगेंगे ही। एक पौधे पर फूल और फल इसलिए नहीं आते हैं, क्योंकि आप ऐसा चाहते हैं। बल्कि इसलिए आते हैं, क्योंकि आपने उनके खिलने के लिए एक उचित वातावरण और अनुकूल परिस्थितियां पैदा कर दी है। ठीक इसी तरह अगर आप अपने भीतर भी एक उचित और जरूरी माहौल पैदा कर लें, अपने सभी पहलुओं को सही परिस्थितियां प्रदान कर दें तो मेडिटेशन आपके भीतर अपने आप होने लगेगा। यह तो एक खास तरह की खुशबू है, जिसे कोई इंसान अपने भीतर ही महसूस कर सकता है।

संवत्सरी दिवस आज
मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक के सानिध्य में संवत्सरी दिवस अणुव्रत भवन सैक्टर 24सी तुलसीसभागार में मनीषीश्रीसंत का विशेष प्रवचन 9 बजे।

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