सुप्रीम कोर्ट में पहुंची महाराष्ट्र की लड़ाई, देखें डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर क्या लिया संज्ञान
- By Krishna --
- Monday, 27 Jun, 2022
Maharashtra's battle reached the Supreme Court, see what cognizance was taken on the notice of the D
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एकनाथ शिंदे की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने और डिप्टी स्पीकर नरहरि जरवाल की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। अदालत ने शिंदे गुट, महाराष्ट्र सरकार और शिवसेना की दलीलें सुनीं। इसके बाद कोर्ट ने विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर जवाब देने के लिए 12 जुलाई तक का वक्त तय किया। यह शिंदे गुट के लिए राहतभरा रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र भवन, डिप्टी स्पीकर, महाराष्ट्र पुलिस, शिवसेना विधायक दल के नेता अजय चौधरी और केंद्र को भी नोटिस भेजा है। कोर्ट ने सभी विधायकों को सुरक्षा मुहैया कराने और यथा स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है। कहा कि फैसले तक कोई फ्लोर टेस्ट नहीं किया जाएगा। डिप्टी स्पीकर को अपना जवाब 5 दिन के भीतर पेश करना है। मामले की अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में किसने क्या कहा :
शिंदे गुट : डिप्टी स्पीकर के पास सदस्यता रद्द करने का जो नोटिस दिया गया है, वो संवैधानिक नहीं है। हमारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, हमें धमकाया जा रहा है और हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। ऐसे में हम आर्टिकल 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट : आप जो धमकी की बात कह रहे हैं उसे सत्यापित करने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। डिप्टी स्पीकर के नोटिस में जो कम समय देने की बात कही है, उसे हमने देखा है। आप इस सवाल को लेकर के सामने क्यों नहीं गए?
शिंदे गुट : 2019 में शिंदे को सर्वसम्मति से पार्टी का नेता नियुक्त किया गया, लेकिन 2022 में स्वत: संज्ञान लेते हुए एक नया व्हिप जारी किया जाता है। शिंदे के खिलाफ यह कहा गया कि उन्होंने अपनी स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी। सबसे जरूरी मुद्दा यह है कि स्पीकर या डिप्टी स्पीकर तब तक कुर्सी पर नहीं बैठ सकते हैं, जब तक उनकी खुद की स्थिति स्पष्ट नहीं है।
शिंदे गुट : डिप्टी स्पीकर ने इस मामले में बेवजह की जल्दबाजी दिखाई। स्वाभाविक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया। जब स्पीकर की पोजिशन पर सवाल उठ रहा हो तो एक नोटिस के तहत उन्हें हटाया जाना तब तक न्यायपूर्ण और सही लगता, जब तक वे स्पीकर के तौर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए बहुमत न साबित कर दें। जब स्पीकर को अपने बहुमत पर भरोसा है तो वे फ्लोर टेस्ट से डर क्यों रहे हैं।
शिंदे गुट : स्पीकर के पास विधायकों को अयोग्य करने जैसी याचिकाओं पर फैसला करने का संवैधानिक अधिकार होता है, ऐसे में उस स्पीकर के पास बहुमत बेहद जरूरी है। जब स्पीकर को हटाए जाने का प्रस्ताव पेंडिंग हो, तब मौजूदा विधायकों को अयोग्य घोषित कर विधानसभा में बदलाव करना आर्टिकल 179 (ष्ट) का उल्लंघन है। इस मामले में बेवजह की जल्दी दिखाई गई। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल कि स्पीकर इस मामले को कैसे देख सकता है। आज उनके रिमूवल के नोटिस पर पहले बात हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा डिप्टी स्पीकर को चुनौती दी गई है। हमें उन्हें पहले सुनना चाहिए। इस पर डिप्टी स्पीकर के वकील राजीव धवन ने कहा कि शिवसेना की ओर से आए मेरे मित्र अभिषेक मनु सिंघवी को पहले बात रखने दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट : क्या इस मामल में स्पीकर के कुर्सी पर बने रहने को लेकर ही सवाल है? जब आर्टिकल 179 के तहत डिप्टी स्पीकर को हटाने का मामला पेंडिंग हो, तो क्या वे सदस्यता रद्द करने का नोटिस भेज सकते हैं? क्या आपने इस पर विचार किया है?
महाराष्ट्र सरकार और शिवसेना : बागी विधायक पहले हाईकोर्ट न जाकर सुप्रीम कोर्ट क्यों आए। शिंदे गुट बताए कि उन्हें इस प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया। किसी भी केस में ऐसा नहीं होता है, जब स्पीकर के सामने कोई मामला पेंडिंग हो और कोर्ट ने उसमें दखल दिया हो। जब तक स्पीकर फाइनल फैसला न ले ले, कोर्ट कोई एक्शन नहीं लेती। विधायकों ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ जो नोटिस दिया था, उसका फॉर्मेट गलत था। इसलिए उसे खारिज किया गया।
महाराष्ट्र सरकार और शिवसेना : 20 को विधायक सूरत चले गए, 21 को उन्होंने ये ई-मेल लिखा होगा और 22 को स्पीकर को नोटिस मिला। अब इसमें तो हम 14 दिन के कहीं आसपास भी नहीं हैं। ये अनऑथराइज्ड मेल से आया था और 14 दिन भी नहीं हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट : अच्छा, फिर इसे किस बुद्धिमत्ता से भेजा गया?
महाराष्ट्र सरकार और शिवसेना : ये रजिस्टर्ड ईमेल से नहीं भेजा गया था। इसे विधानसभा के दफ्तर में नहीं भेजा गया था। डिप्टी स्पीकर ने अपने अधिकार क्षेत्र में काम किया। अगर कोई खत देता है और वो रजिस्टर्ड दफ्तर से नहीं आया है तो स्पीकर पूछ सकता है कि आप कौन हैं। ये खत केवल एक एडवोकेट विशाल आचार्य ने भेजा था।