Mahalaxmi Temple

महाराष्ट्र: कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर भक्तों का है आस्था केंद्र 

Mahalaxmi Temple

Kolhapur Mahalaxmi Temple is the faith center of the devotees

Mahalaxmi Temple: आमतौर पर लोग अपने घर पर ही लक्ष्मी पूजन करते हैं पर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित महालक्ष्मी मंदिर देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। हर घर में धन और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। अगर इनसे जुड़े प्रमुख तीर्थ स्थलों की बात की जाए तो महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित महालक्ष्मी मंदिर एक ऐसा शक्तिपीठ है, जिसका उल्लेख धर्मग्रंथों में भी मिलता है।

कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर मुंबई से मात्र  400 किमी. की दूरी पर स्थित है। प्रत्येक लाखों की तादाद में पर्यटक यहां लक्ष्मी माता के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के बाहर लगे शिलालेखों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि शालिवाहन वंश के राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण करवाया था। आमतौर पर मंदिरों का मुख्यद्वार पूर्व दिशा में स्थित होता है लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां चारों दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर के स्तंभों पर बहुत सुंदर नक्काशी की गई है।  साल में दो बार सूर्य की किरणें देवी के विग्रह पर सीधी पड़ती हैं, जो चरणों को स्पर्श करती हुई उनके मुखमंडल तक आती हैं।

इस अद्भुत प्राकृतिक घटना को किरणोत्सव कहा जाता है। इसे देखने के लिए भारत के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु कोल्हापुर आते हैं। यह प्राकृतिक घटना प्रत्येक वर्ष माघ मास की रथ सप्तमी (जनवरी माह में मकर संक्राति के बाद) को संभावित होती है। कोल्हापुर में यह उत्सव तीन दिनों के लिए मनाया जाता है। पहले दिन सूर्य की किरणें देवी मां के पैरों पर गिरती हैं, दूसरे दिन मध्यभाग में और तीसरे दिन मां के मुखमंडल को छूकर अदृश्य हो जाती हैं।

यहां प्रत्येक वर्ष दीपावली के अवसर पर देवस्थान तिरुपति के कारीगर सोने के धागों से बुनी विशेष साड़ी महालक्ष्मी को भेंट करते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में शालू कहा जाता है। दीपावली की रात में माता का विशेष पूजन और शृंगार किया जाता है। इस पूजन में दूर-दूर से लोग आते हैं और महाआरती में अपने मन की मुरादें मांगते हैं। ऐसी मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी माता जीजा बाई भी यहां पूजन करने आती थीं। तिरुपति बाला जी मंदिर की तरह यहां भी माता को भरपूर मात्रा में सोने-चांदी का चढ़ावा अर्पित किया जाता है। 
 

केशी नामक राक्षस के बेटे कोल्हासुर के अत्याचारों से परेशान देवताओं ने देवी से प्रार्थना की, तब महालक्ष्मी ने दुर्गा का रूप धारण किया और ब्रह्मशस्त्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। मरने से पहले उसने वर मांगा था कि इस इलाके को करवीर और कोल्हासुर के नाम से जाना जाए। इसी कारण यहां माता को करवीर महालक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। कालांतर में कोल्हासुर शब्द कोल्हापुर में परिवर्तित हो गया। इस मंदिर में दो मुख्य हॉल हैं-दर्शन मंडप और कूर्म मंडप। दर्शन मंडप में श्रद्धालु जन माता के दिव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं और कूर्ममंडप में भक्तों पर पवित्र शंख द्वारा जल छिडक़ा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में देवी महालक्ष्मी के विग्रह. की ऊंचाई 3 फुट है। 
 

माता के चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल का पुष्प है। चांदी के भव्य सिंहासन पर विराजमान मां के पीछे शेषनाग के फन का छत्र है। मराठी में इन्हें आई या अंबाबाई भी कहा जाता है। इन्हें धन-धान्य और सुख-संपत्ति की अधिष्ठात्री माना जाता है। दीपावली के अवसर पर मंदिर को हज़ारों दीपकों से सजाया जाता है। इसके आसपास ज्योतिबा मंदिर, रनकला झील, छत्रपति साहू संग्रहालय आदि कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं, जहां पूरे वर्ष पर्यटकों की भीड़ रहती है। प्रत्येक वर्ष दीपावली के अवसर पर भक्तजन यहां आकर माता के गजलक्ष्मी स्वरूप का दर्शन करते हैं।