low voting percentage worrying

Editorial:कम मतदान प्रतिशत चिंताकारक, जनता के मन में क्या है

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Low voting percentage is worrying, what is in the minds of the public लोकसभा चुनाव 2024 के तहत अब तक दो चरण का मतदान हो चुका है, लेकिन दोनों ही बार मतदान का कम रुझान चिंता का विषय बन चुका है। यह तब है, जब चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास किए हैं। राजनीतिक दलों की ओर से रोजाना रैलियां की जा रही हैं और रोड शो निकाले जा रहे हैं। हैरत इस बात की है कि इन रैलियों में बड़ी तादाद में लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन मतदान बूथों तक मतदाता नहीं पहुंच रहा। भाजपा ने इस बार राजग के लिए 400 पार सीटों का नारा दिया है। कम मतदान प्रतिशत का असर आखिर किसकी सीटों पर पड़ सकता है।

पहले चरण की 102 सीटों पर और दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 सीटों पर अब तक मतदान हुआ है। महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में उम्मीद से कम वोटिंग ने चिंता को बढ़ाया है। कहा जा रहा है कि देश में इस समय महंगाई और बेरोजगारी जैसे बड़े मुद्दे हैं, लेकिन इन मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं कर रहा। इससे तीन आशंकाएं जन्म ले रही हैं। पहला यह कि 400 पार के नारे को चुनावी रैलियों में विपक्ष अपने हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। विपक्ष दलित या पिछड़ा वर्ग बहुल इलाकों में बार-बार यह बात कह रहा है कि भाजपा संविधान संशोधन करके दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म करना चाहती है।

ऐसे में अगर विपक्ष यह कहानी गढऩे में कामयाब हो जाता है तो वोटिंग के वक्त जनता का मूड बदल सकता है। दरअसल, भाजपा को दलितों और ओबीसी का भी वोट खूब मिलता रहा है। ऐसा देखा गया है कि राज्य में भले ही सरकार किसी की हो, मगर केंद्र में ज्यादातर लोग मोदी की सरकार ही चाहते हैं। इस समय चर्चा का विषय यह भी है कि भाजपा की ओर से 400 पार सीटों का जो नारा दिया गया है, वह कितना सार्थक हो पाएगा। क्योंकि देश में विपक्ष एकजुट है और उसके नेता बेशक अलग-अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके बीच काफी तारतम्य नजर आ रहा है। उनके वादे-इरादे भी सत्ताधारी भाजपा के लिए नई चुनौतियां खड़े कर रहे हैं।

इस बीच देश में विरासत टैक्स की चर्चा शुरू हो गई है। दूसरे चरण की वोटिंग से पहले इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के एक बयान से यह सियासी पारा चढ़ा है। सैम पित्रोदा ने इसका सुझाव दिया हालांकि यह विचार कांग्रेस के घोषणापत्र में शामिल नहीं है। लेकिन इसने ध्यान आकर्षित किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर आजकल देश में व्यापक बहस जारी है। प्रधानमंत्री मोदी इसे चुनावी मुद्दा बना चुके हैं। इन आरोपों पर कांग्रेस का कहना है कि  उसके न्याय पत्र का लक्ष्य हर जाति और समुदाय के युवाओं, महिलाओं, किसानों और हाशिए पर रह रहे लोगों को न्याय मुहैया करना है। मालूम हो, प्रधानमंत्री मोदी इसका आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि अगर कांग्रेस की सरकार बनेगी तो हर एक की प्रॉपर्टी का सर्वे किया जाएगा। महिलाओं के पास सोना कितना है, उसकी जांच की जाएगी, उसका हिसाब लगाया जाएगा आदि।

वास्तव में विरासत टैक्स का विचार कोई नया नहीं है। विदेश में कई देशों में यह कानून लागू है, लेकिन फिर भी अनेक देश इससे अछूते हैं। अमेरिका में संघीय उत्तराधिकार कर नहीं है। केवल छह राज्यों में, और वे राज्य नहीं जहां तकनीकी दिग्गजों के घर स्थित हैं, इसका विस्तार नहीं हुआ क्योंकि वे पूंजी के पलायन का कारण बन सकते थे। भारत में, यह चार दशकों की मजबूत जीडीपी वृद्धि और रोजगार की संरचना के बीच कमजोर संबंध के माध्यम से आता है। बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन आर्थिक विकास के साथ तालमेल नहीं रख पाया है, जिससे राजनीतिक दलों द्वारा क्षति नियंत्रण को बढ़ावा मिला है।

कल्याणकारी राज्य का विस्तार करना भारत के सभी राजनीतिक दलों के लिए एक दृष्टिकोण रहा है। दरअसल, इस बार के लोकसभा चुनाव बाकी चुनावों से काफी अलग हैं। इस बार धर्म की राजनीति भी अपने चरम पर है और जाति की राजनीति भी। हालांकि महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों की चर्चा ज्यादा नहीं हो रही। जबकि इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। कोई राजनीतिक दल यह नहीं बता पा रहा कि अगर वह सत्ता में आएगा तो महंगाई को किस प्रकार कम करेगा। भारतीय लोकतंत्र में चुनाव एक महापर्व होता है, जिसमें जनता हिस्सा लेती है। यह जरूरी है कि यह महापर्व पूरे उल्लास से मनाया जाए। इस बार जनता के मन में तमाम प्रश्न हैं, जिनका उसे जवाब चाहिए। 

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